65 वर्षीय सामल चौधरी जैसे किसान के जज्बे को सलाम

कहते है जो इंसान स्वयं पर विश्वास रखकर निष्ठा से किसी काम को करने की मन में ठान ले तो सफलता भी उसकी चेरी बन जाती है। इस कथन को दुमका के 65 वर्षीय सामल चैधरी ने पूरा कर दिखाया है। सामल ने अकेले 1500 फीट लम्बा, 500 फीट चौड़ा और लगभग 22 फीट गहरा तालाब खोद कर एक मिसाल कायम कर दिया है।

हालांकि सरकारी स्तर पर सामल चैधरी को अब तक कोई सुविधा मुहैया नहीं करायी गयी है बावजूद इसके वह अपने बुलंद इरादों के साथ तालाब की खुदाई में आज भी लगे हुए है और यहीं तालाब उनके परिवार व समाज के लिए आर्थिक रुप से महत्वपूर्ण साबितहो रहा है।

दुमका के पेटसार पंचायत के कुरुवा गांव के सामल चौधरी इन दिनों चर्चा में है। चर्चा हो भी क्यों न! अपने जीवन के 65 बसंत देख चुके सामल चौधरी ने अपने मजबूत इच्छाशक्ति के बदौलत 14 सालों में अकेले ही एक गहरा तालाब खोदकर चर्चा में आ गए है। पतले दुबले और चेहरे पर झुरियां पड़ चुकी सामल के इस कारनामे के पीछे उनकी दर्द भरी कहानी छुपी है।

दरअसल 1996 में उन्होंने सिंचाई के लिए उक्त तालाब के निर्माण के लिए सरकारी दफतरों का खूब चक्कर लगाया था पर किसी ने उनकी नहीं सुनी थी। थक हारकर और अपनी मां की प्रेरणा से उन्होंने खुद तालाब खोदने की ठानी और तालाब की खुदाई में खून पसीना एक कर दिया।

फिर क्या था सामल की मेहनत रंग लायी और देखते ही देखते बंजर भूमि में पानी तैरने लगा। सामल इतने में ही हार नहीं माने है उनका जोश व जुनून आज भी बरकरार है और आज भी वह अपने मकसद में लगे हुए है। वे अंतिम सांस तक तालाब खुदाई के अपने एक सूत्री अभियान में लगे हुए इसके पीछे उनका यहीं तर्क है कि इससे गांव वाले को काफी राहत मिलेगी क्योंकि वह खुद एक किसान है और पानी के बिना किसानों को क्या क्या तकलीफें उठानी पड़ती है इसे वह बखूबी जानते है।

सामल के इस जुनून के आगे उनके परिवार वाले भी हार गये। कई बार उनके परिवार के लोगों ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन सामल ने 14 साल की वनवास की तरह अपने मकसद को पूरा करने की ठान रखी थी। बाद में सामल के इस जुनून में परिवार के लोग भी शामिल हो गये।

सामल तालाब की खुदाई करते और उनका एकमात्र बेटा खेती पर ध्यान देता। परिवार के लोगों को यह बात आज भी सालती है कि पिताजी की इतनी मेहनत और सरकारी दफतरों के चक्कर काटने के बावजूद किसी भी अधिकारी का न दिल पसीजा और न ही किसी ने इसे गंभीरता से लिया। एक बार उन्हें मछली उत्पादन के लिए प्रशिक्षण के लिए भेजा गया और अनुदान का आश्वासन भी दिया गया था लेकिन वह भी आज तक नहीं मिला।

सामल अपने तालाब से खुद के खेतों में भी सिंचाई करते और गांव के लोग भी। हालांकि सामल की स्थिति यह है कि सिंचाई के लिए भी इन्हें पंपसेट किराये पर लाना पड़ता। घर और परिवार की स्थिति बहुत अच्छी नहीं, दो जून की रोटी भी किसी तरह जुगाड़ हो पाती है। गांव के वैसे लोग जो कभी इनके जुनून को पागलपन समझते थे वो आज सामल की तारीफ करते नहीं थकते।

सामल चौधरी जैसे गरीब किसान अपने आप में मिसाल हैं। तंगहाली और आर्थिक बोझ के तले दबने के बावजूद सामल चौधरी अपनी लग्न और मेहनत से पीछे नहीं हटे, उनके जज्बे और जुनून को सलाम। सामल के इस जुनून ने जहां और लोगों के लिए प्रेरणा का काम कर रही है वहीं यह सरकारी योजनाओं को हमेशा धरातल पर पहनायी जाने वाली दावे को भी झुठला रही है। सामल का 14 साल से किये गए अथक प्रयास अब जाकर रंग ला रही हैं लेकिन कब तक उन्हें सरकारी मदद मिल पाती हैं यह देखनेवाली बात होगी।