8 साल में 845 हाथियों की मौत, वन विभाग के इस रिकॉर्ड से प्रदेश मची खलबली

क्‍बदलते पर्यावरण का असर अब हर तरफ दिखने लगा है. इंसान के साथ ही जानवरों पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है. मौजूदा समय में धरती के विशालतम जानवर पर नया संकट आ गया है. यह भारत के प्रोजेक्‍ट एलिफेंट के लिए तगड़ा झटका साबित हो सकता है. यहां बात हो रही है हाथी की. केरल में पिछले 8 साल के दौरान 845 हाथियों की मौत हो गई. प्रदेश के वन विभाग के इस रिकॉर्ड से खलबली मची हुई है. स्‍टडी में एलिफेंट डेथ रेट में समय के साथ वृद्धि होने की बात भी सामने आई है. यह ट्रेंड और भी खतरनाक है.

केरल फॉरेस्‍ट डिपार्टमेंट ने साल 2015 से 2023 का रिकॉर्ड तैयार किया है. हाथियों की गिनती में 8 साल की अवधि में 845 हाथियों की मौत की बात सामने आई है. बता दें कि हाथियों की औसत आयु 50 से 70 साल के बीच होती है. केरल फॉरेस्‍ट डिपार्टमेंट ने प्रदेश के 4 एलिफेंट रिजर्व में हाथियों की संख्‍या जाने के लिए सर्वे किया था. इसके साथ ही विभिन्‍न पहलुओं को लेकर स्‍टडी भी कराई गई थी. इसमें चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. स्‍टडी में एक और चौंकाने वाला ट्रेंड देखा गया है. इसके मुताबिक, 10 साल से कम उम्र के हाथियों की मृत्‍यु दर ज्‍यादा पाई गई है. हाथियों के इस वर्ग में मृत्‍यु दर 40 फीसद तक पाई गई है.

जानिये, क्‍यों मर रहे हाथी?
केरल वन विभाग की रिपोर्ट में हाथियों (खासकर हाथी के बच्‍चे) की मौत की वजह भी बताई गई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि हाथी एंडोथेलियोट्रोपिक हार्पीज वायरस हेमरेज डिजीज (ईईएचवीएचडी) की वजह से मर रहे हैं. आमतौर पर यह बीमारी हाथियों में पाई जाती है, लेकिन अब यह घातक बन गया है. केरल वन विभाग की रिपोर्ट में श्रीलंका में हाल में ही की गई स्‍टडी का भी हवाला दिया गया है, जिससे हाथियों की मौत की घटनाओं पर विस्‍तृत जानकारी दी गई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जो हाथी के बच्‍चे तुलनात्‍मक तौर पर बड़े झुंड में रहते हैं, उनका सर्वाइवल रेट ज्‍यादा है. रिपोर्ट से हर्ड इम्‍यूनिटी का भी पता चलता है.

नैचुरल हैबिटेट को बचाने की जरूरत
रिपोर्ट में एक और संकट की तरफ इशारा किया गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि हाथियों के प्राकृति आवास यानी नैचुरल हैबिटेट का दायरा लगातार सिकुड़ता जा रहा है. जमीन की उपलब्‍धता कम होने की वजह से यह समस्‍या आ रही है. दरअसल, नैचुरल हैबिटेट का दायरा सिकुड़ेने की वजह से हाथियों के झुंड भी छोटे होते जा रहे हैं. इसके अलावा क्‍लाइमेंट चेंज पर भी हाथियों पर व्‍यापक प्रभाव पड़ा है. बता दें कि हाथियों की संख्‍या भी पूरी दुनिया में कम होती जा रही है.