नई दिल्ली : 30 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस स्कूल में संग्रहालय का उद्घाटन करेंगे जहां महात्मा गांधी पढ़ा करते थे। हालांकि इस स्कूल से कुछ ही दूरी पर एक स्कूल स्थित है जिसकी 1921 में खुद महात्मा गांधी ने नींव रखी थी। हालांकि अब यह स्कूल फंड की कमी के कारण बंद होने की कगार पर पहुंच गया है। इसका नाम राष्ट्रीय शाला है जो स्कूल संग्रहालय से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर है।
जानकारी के अनुसार 1970 और 2000 के बीच यहां लगभग 1000 बच्चों का दाखिला हुआ था। लेकिन जब राष्ट्रीय शाला ट्रस्ट (आरएसटी) के पास दान आने बंद हो गए तब इस संख्या में कमी आने लगी। साल 2017-2018 के दौरान यहां केवल 37 बच्चे रह गए हैं। स्कूल के बंद होने की घोषणा से सभी बच्चे अब किसी और स्कूल में दाखिला लेंगे।
स्कूल को महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई के लिए छात्रों को तैयार करने के मकसद से खोला था। इसके संविधान को भी उन्होंने ही लिखा था। वह यहां प्रार्थना किया करते थे और 1939 में उन्होंने यहीं पर उपवास भी किया था। दक्षिण अफ्रीका से वापस आने के बाद बापू को लगा था कि गुलामी की असली जड़ ब्रिटिश शिक्षा है और इस व्यवस्था को बदलने की जरूरत है।
गांधी के इसी विचार का नतीजा राष्ट्रीय शाला थी। यहां स्थानीय भाषाओं में शिक्षा दी जाती है। हाल ही में आरएसटी ने एक बुकलेट जारी करके लोगों से इस ऐतिहासिक संस्थान को बचाने के लिए सहयोग करने की अपील की थी। बुकलेट में लिखा था, ‘हमें प्राथमिक स्कूल और म्यूजिक स्कूल के लिए सरकारी नियमों के अनुसार अनुदान नहीं मिल रहा है। संस्थान को 25 से 30 लाख रुपये हर साल चाहिए जिससे गांधीवादी विचारों की गतिविधियां चलती रहें।’
स्कूल के महासचिव और प्रबंधक ट्रस्टी जीतू भट्ट ने कहा, हमें हर साल 8.30 लाख रुपये स्कूल चलाने के लिए चाहिए लेकिन हमारे पास फंड नहीं हैं। हमारे पास स्कूल को बंद करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा है।’ पैसे की कमी के लिए स्कूल के ट्रस्टीज ने मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को भी खत लिखा है। भट्ट ने बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलने का समय मांगा था लेकिन पीएम के दौरे की वजह से यह मुलाकात आगे बढ़ गई है।