नस्लवाद सामान्य ज्ञान से परे है, यादि यह हमारे समाज में उपस्थित न हो तो ही हम उत्कृष्ट समाज निर्माण कर सकेंगे। भारतीय संविधान की धारा १५ धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग,जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव निषेध करती है परंतु व्यावहारिक रूप मे ना तो नस्लवाद समाप्त होता नज़र आ रहा है और ना ही इसे स्माप्त करने के व्यापक प्रयास किय जा रहे है ।
चिरकाल से ही विकास के नाम प़र पिछड़ा हुआ पूर्वोत्तर भारत और पिछड़ता जा रहा है आजादी के लगभग ६५ वर्ष पश्चात भी ना तो दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिय पूर्वोत्तर भारतीय साधन जुटा पाने मे सक्षम है और ना ही अच्छी शिक्षा पाने मे। आखिर कब तक भारत की ७ बेटियों का संगम बद राजनीति से पीड़ित रहेगा ? क्यों हम पूर्वोत्तर निवासियों को भारतीय मुख्य धारा से जोड़ने मे अयोग्य है ?
29 जनवरी 2014 शुक्रवार को दक्षिण दिल्ली के बाजार में अरुणाचल प्रदेश के एक छात्र को कथित तौर पर लाठी और छड़ के साथ 7-8 पुरुषों के समूह द्वारा पीटा गया और 30 जनवरी 2014 को छात्र का स्वर्गवास हो गया। यादि यही घटना किसी भारतीय के साथ विदेश मे घटित होती तो मीडीया और राष्ट्रभक्त राष्ट्र कि प्रतिष्ठा का हवाला देकर सडको प़र उतर आते और सरकार को कोस राजनीतिक रोटिया सेकने लगते परंतु अपने अंदर छुपे जातिवाद को देखना नहीं चाहते।
वर्णभेद का उभरता रूप ना जाने कितनी और जाने लेगा, ना जाने कितनी और बलिदानी लेगा, ना जाने कितनी पूर्वोत्तर कि बहनों को बलात्कार का सामना करना पड़ेगा । पूर्वोत्तर सुरक्षा गुट्ट का गठन हर सरकार के घोषणापत्र मे होता है परंतु इस प़र अंगली जमा कोई नहीं पिनाता और स्थिति दिन प्रतिदिन निकृष्टतम होती जा रही है यदि बिगड़ते हालत को सुधारने का पुरजोर प्रयास नहीं किया गया तो आने वाले समय हाथ से रेत की भांती फिसल जाएगा और हम हाथ पर हाथ धरे बेठे रह जाएगे।
चुनाव जितना निकट आ रहे है उतना ही सुन्हेरा अवसर हमारे समीप आ रहा है यदि हम इस समय सरकार पर पूर्वोत्तर विकास और दिल्ली, मुम्बई जैसे बड़े नगरो मे रोटि,शिक्षा की तलाश मे पूर्वोत्तर से आये हमारे भाइयों और बहनों की सुरक्षा के लिय उचित कार्य करने की मांग करे तो शायद सत्ता के लालची हमारी मांग स्वीकार ले ।