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भारत की शिक्षा पद्धति में परिवर्तन कर इंडिया को बनाना होगा भारत

 

bharatवर्तमान समय में भारत, इंडिया मे खोता जा रहा हैं। मेरे इस लेख पर बहुत से तथाकथित बुद्धिजीवी मुझे ज्ञान की बाते बतायेंगे। आप सभी पाठकों से निवेदन हैं की इस लेख को लिखने की आवश्यकता मुझे क्यों पड़ी उसे समझने का प्रयास करें।

भारत को इंडिया से अलग करके देखने की मेरी कोशिश कइयों को नागवार लगेगी, और कई इसे मेरी सनक कह कर खारिज कर देंगे। लेकिन भारत इंडिया नही हैं यह कहने वाला मै अकेले नहीं हूँ। अंग्रेजों दवारा लागू की गई शिक्षा पद्धति एवं कुछ माक्र्सवादी इतिहास कारो ने भारत एवं इंडिया को एक दिखाने का प्रयास किया। मेरे कुछ सामान्य से प्रश्न उन बुद्धिजीवीयों से हैं जो भारत को इंडिया कहते हैं-

जब कोई उनसे हिन्दी मे पूछता है आप किस देश मे रहते हैं? तो सामान्य सा उत्तर आता हैं मैं भारत या हिन्दुस्तान में रहता हूँ। लेकिन जब उसी व्यक्ति से अंगेजी मे पूछा जाता हैं पदूीपबी बवनदजतल कव लवन सपअम तो वहीं बडे शौक से कहते हैं प् सपअम पद पदकपं। पूरे विश्व के अंदर किसी एक देश का नाम कोई बता सकता है जिसको दो अलग अलग भाषायों मे अलग अलग नाम से बुलाया जाता हो।

जब भारतीय क्रिक्रेट टीम क्रिक्रेट खेलती है तो टीवी पर नीचे लिख कर आता हैं इडिया। क्या किसी अन्य देश के साथ ऐसा होता है क्या कोई अन्य देश अपने गुलामी को अपने सर का ताज बना कर चलता है। सामान्य अंग्रेजी में कक्षा 4 में हमें नाउन की परिभाषा पढाई जाती हैं एव नाउन के सिद्धातों के अनुसार प्रापर नाउन का कभी ट्रांस्लेसन नहीं होता उदाहरण के तौर पर यदि मेरा नाम विश्व गौरव हैं तो क्या अंग्रेजी मे मुझे ”वल्र्ड प्राउड“ कहा जायेगा।

अंग्रजी की थोडी बहुत व्याकरण का ज्ञान मुझे भी है और उसके अनुसार प्रापर नाउन का अंग्रेजी में ट्रासलेसन करना व्याकरण के साथ खिलवाड करने जैसा हैं। हो सकता हैं बहुत से बु़द्धिजीवी यह बोले की आर्यावत, भारत, विश्वगुरू, हिन्दुस्तान, सोने की चिडिया की तरह ही इंडिया भी इस देश का नाम हैं लेकिन यदि नाम हैं तो व्याकरण के साथ एैसा भददा मजाक क्यूं क्या संविधान में लिखी एक लाईन पदकपं जींज पे इींतंज के लिए हम बचपन में पढी हुई व्याकरण को भूल सकतें हैं आज के संदर्भ में भारत को पहचानना बहुत आसान हैं।

भारत के लोग गॅावो और शहर की गरीब बस्तियों मे रहतें है, यह भी हो सकता हैं की वो उसी अटटालिकाओं मे रहतें हो लेकिन उनके मन में आज भी भारतीय संस्कति, भारतीय आचार-विचार, भारतीय संस्कार कहें-अनकहें रूप में दिख ही जातें हैं। भारत के लोग हमारी पंरम्परा का पालन करतें हैं, उसमें गर्व महसूस करतें हैं, ये लोग जमीन से जुडे हुए लोग हैं जो स्वयं में अपने देश को देखते हैं।

ये लोग इतनी झमता रखते हैं, कि विश्व पटल पर भारत का प्रतिनीधित्व कर सकें। उसी भारत के एक निवासी के रूप में भगवा वेशधारी स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागों धर्म सम्मलेन में इंडिया को नहीं भारत को प्रस्तुत किया था।

वर्तमान समय में यदि चर्चा इंडिया के विषय में की जाए तो ध्यान मे आता है कि इंडिया, भारत का शोषण करता हैं। भारत इंडिया का उपनिवेश बन के रह गया हैं। इंडिया अमीर हैं, उसके पास बेसुमार धन-दौलत, चल-अचल सम्पत्ति है इनके बच्चें इंग्लिस मीडियम मिशीनरी स्कुलो में पडते हैं तथा बडे होकर अमेरिका, इग्लैड, जर्मनी, आस्टेलिया में पढने जाते हैं । ये भारत वासियों को हेय दष्टि से देखते हैं। भारत में इनकों कुछ भी अच्छा नहीं  लगता ये इंग्लिस बोलना पंसद करते हैं।

भारतीय भाषायों को बोलने मे इन्हें शर्म महसूस होती हैं। इंडिया के लोग अपनी पंरम्परा के पालन मे हीन भावना महसूस करतें हैं। उनको भारत के इतिहास का कोई ज्ञान नहीं हैे वे विदेशी सभ्यता, संस्कति को अपनाने मे गर्व महसूस करते हैं। इन्हें भारतीय कला साहित्य संस्कति, विज्ञान नित्कृष्ट लगते हैं मुझे डर हैं कि भारत के अंदर एक ऐसी जड विहीन पीढी अस्तित्व में आ रही हैं जो न यहा की होगी न वहां की।

भारत में गॅाव हैं, गली हैं, चैवारा हैं। इंडिया में सिटी हैं, मॅाल हैं, पंचतारा हैं।
भारत में काका हैं, बाबा हैं, दादी हैं। इंडिया में अंकल, आंटी कि आबादी हैं।
भारत मे मटके है, दोने हैं, पत्तल हैं। इंडिया में पॅालिथीन हैं, वॅाटर हैं और वॅाईन हैं।
भारत में दूध हैं, दही हैं, लस्सी हैं। इंडिया मे खतरनाक कोक, विस्की और पेप्सी हैं।
भारत में मंदिर हैं, मंडप हैं, पंडाल है। इडिया में पब है, डिस्कों हैं और हॅाल हैं।
भारत मे आदर हैं, प्रेम हैं, सत्कार हैं। इंडिया मे स्वार्थ हैं, नफरत हैं और दुत्कार हैं।
भारत सीधा हैं, सरल हैं, सहज हैं। इडिया धुर्त हैं, चालाक हैं, कुटील हैं।
भारत में संतोष हैं, सुख हैं, चैन हैं। इडिया बदहबास, दुख्ी और बेचैन हैं।
क्यूं कि———-
भारत को देवों ने वीरों ने रचाया हैं। इंडिया को लालची अंग्रेजो ने बसाया हैं। मांइड इट से साभार

राष्टीयता, एकात्मता एवं भारतीय अर्थव्यवस्था को तोडने के लिए किया गया अंग्रेजो का प्रयास आज विकराल परिणामों के साथ भलीभूत होता दिख रहा हैं एवं इन सभी के लिए पूर्णरूप से मैकाले शिक्षा पद्धित जिम्मेदार हैं अब वास्तव में आवश्यकता हैं कि भारत को भारत कि शिक्षा दी जाये। जिससे कि भारत का बेटा अमेरिका और इग्लैड के सामनें हाथ फैला कर ना खडा हो।

इस बात का गर्व मुझे भी हैं कि न नासा के अंदर 46 प्रतिशत भारतीय काम करते हैं लेकिन एक पीढा यह भी हैं कि वह अपनी प्रतिभा को भारत से नाकार दिए जाने के बाद वहा जा कर वह सम्मान पाते हैं जो उन्हे भारत में मिलना चाहिए था। और यहीं पीडा जन्म देती हैं शिक्षा पद्धित में बदलाव के लिए किए जा रहे हैं