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धर्म निरपेक्ष राष्ट्रवाद की व्यवहारिकता वर्तमान भारत की मौलिक आवश्यकता

religions-indiaयह सर्वविदित है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के नागरिक हैं, तो हम सभी को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नामक शब्द समूह से अवश्य ही परिचित होना चहिए। समान्यतः धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र से तात्पर्य है कि एक ऐसा राष्ट्र जो धार्मिक मान्यताओं व परम्पराओं से रहित हो या धर्म विहीन हो। लेकिन यह व्याख्या अतिसंक्षिप्त है और यह अंग्रेजी के शब्‍द Secular में ही सिमट के रह गई है। परन्तु हमें धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र शब्द समूह की व्याख्या वृहद रूप से (अंग्रेजी व हिन्दी दोनों भाषाओं को परिपेक्ष्य में रखते हुए) करने की आवश्कता है।

धर्मनिरपेक्ष शब्द दो शब्दों (धर्म+निरपेक्ष) के संयोग से निर्मित है। यहाँ पर पहले हम निरपेक्ष शब्द की व्याख्या करेंगे। निरपेक्ष शब्द की अंग्रेजी Absolute होती है और Absolute शब्द (पूर्ण, शुद्ध व निरपेक्ष आदि) हिन्दी भाव रखता है। अतः निरपेक्ष शब्द के स्थान पर हम पूर्ण या शुद्ध आदि पयार्यवाची शब्दों का भी प्रयोग कर सकते हैं। अब हम दूसरे शब्द धर्म की संक्षिप्त व्याख्या करेंगे। सामान्यतः धर्म शब्द से हमारा आशय हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, वौद्ध, जैन आदि धर्मों से है। परन्तु हम यहाँ पर विश्व के सभी धर्मो के मूल स्तम्भों सत्य, प्रेम, सेवा, करूणा, क्षमा को ही धर्म के रूप में स्वीकार करेंगे। क्यो कि इन मौलिक गुणों के अभाव में धर्म की कल्पना ही नही की जा सकती है।

अब हम धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की व्याख्या करेंगे जो तीन शब्दों का संग्रह है।

{धर्म (सत्य, प्रेम, सेवा, करूणा व क्षमा)+निरपेक्ष (पूर्ण या शुद्ध)+राष्ट्र (देश)} इस प्रकार धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का भावार्थ है कि-

‘‘सत्य, प्रेम, सेवा, करूणा व क्षमा आदि भावों से परिपूर्ण देश।’’ या दूसरे शब्दों में कहें कि- ‘‘एक ऐसा देश जो शुद्ध रूप से सत्य, प्रेम, सेवा, करूणा क्षमा आदि गुणों द्वारा पोषित एंव संवर्धित हो।’’

इस व्याख्या के आाधार पर वो कौन भारतीय होगा ? जो विश्व के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का नागरिक होने पर फक्र महसूस नहीं करेगा ? अब हम पाते हैं कि एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्रवादी कहलाने के लिये हमारे देशवासियों को उपरोक्त वर्णित गुणों को आत्मसात् करना होगा। इन्हीं गुणों के आधार पर हम एक सच्चा व महान राष्ट्रवादी बन सकते हैं। क्यों कि व्यक्ति राष्ट्र की सबसे न्यूनतम व मौलिक इकाई हैं। तो क्या ऐसा माना जाए ? कि जो लोग धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद की अति संकुचित व्याख्या करते हैं ऐसे व्याख्याकारों को अपनी धारणा पर पुर्नविचार की आवश्कता हैं। वर्तमान समय में हमारें देश में उपरोक्त वर्णित धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की व्यवहारिकता का घोर अभाव दिखाई दे रहा है। इस अभाव के पीछे भी आम भारतीओं का हाथ नहीं है क्यों कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद की व्याख्याओं के पीछे भी घृणित राजनीति जिम्मेदार है। ऐसा इसलिए कि यदि भाजपा व आर.एस.एस. द्वारा प्रचारित राष्ट्रवाद की परिभाषा उग्र व हिन्दूवादी है तो दूसरी ओर कांग्रेस द्वारा अपनाया गया मुस्लिम तुष्टिकरण पर आधारित व राजनीति से प्रेरित राष्ट्रवाद भी राष्ट्रीय अखण्डता, एकता, व समरसता के दृष्टिकोण से अत्यन्त खतरनाक है।

हमारे प्रबुद्ध देशवासियों हमें इन संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिये प्रचारित किये जा रहे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद की सीमित परिभाषाओं व इनके संकीर्ण सोच रखने वाले व्याख्याकरों को सिरे से नकारना होगा। क्योकि ये लोग व्यक्तिगत व दलगत राजनीति स्वार्थों से ऊपर उठ कर कभी राष्ट्रीय हितों के बारे में सोचते ही नहीं है।

एक महान देश के नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम संकीर्णताओं से मुक्त समाज व राष्ट्र के निर्माण की आधारशिला रखें।