लद्दाख के मशहूर प्रसिद्ध शिक्षाविद् और पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक ने 6 मार्च को लेह में 21 दिनों की भूख हड़ताल शुरू की. उन्होंने इसे “जलवायु उपवास” (Climate Fast) नाम दिया. वांगचुक ने 26 मार्च को अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी, लेकिन अब लद्दाख की महिलाएं हड़ताल पर बैठ गई हैं. उन्होंने ऐलान किया है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो लद्दाख के युवा, बौद्ध भिक्षु और बुजुर्ग भी अलग-अलग चरण में इस भूख हड़ताल में शामिल होंगे.
अगस्त 2019 में, जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया गया. पहला- जम्मू और कश्मीर और दूसरा- लद्दाख. जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत, लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश बन गया. इस बदलाव के साथ यहां के लोगों की भूमि और नौकरी पर विशेष अधिकार भी समाप्त हो गया. अब लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के करीब 4 साल बाद यहां के लोग सड़क पर उतर आए हैं.
लद्दाख के लोग क्या चाहते हैं?
सोनम वांगचुक के साथ-साथ भूख हड़ताल कर रहे तमाम लोगों की मांग है कि पूर्वोत्तर राज्यों (North East States) की तरह लद्दाख को भी संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए और पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए. साथ ही आदिवासी दर्जा भी मिले, क्योंकि राज्य की कुल आबादी में 2.74 लाख या 97% से अधिक (2011 की जनगणना के मुताबिक) आदिवासी है. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी 2019 में सिफारिश की थी कि लद्दाख को छठीं अनुसूची में शामिल किया जाए.
प्रमुख मांगें
1- लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा
2- राज्य को आदिवासी दर्जा, छठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग
3- स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण
4- लेह और कारगिल जिलों के लिए संसदीय सीट की मांग
छठवीं अनुसूची में क्या है?
संविधान की छठवीं अनुसूची में जनजातीय क्षेत्रों को लेकर तमाम प्रावधान किये गए हैं. इस अनुसूची के आर्टिकल 244(2) और अनुच्छेद 275 (1) में कहा गया है कि यदि किसी जिले में अलग-अलग जनजातियां हैं जो कई ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट बनाए जा सकते हैं. ऐसे प्रत्येक स्वायत्त जिले में एक ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (ADCs) बनाने का प्रावधान है. इसके अलावा जल, जंगल जमीन से लेकर शादी, तलाक, विरासत जैसे अहम मसलों पर नियम-कानून बनाने का अधिकार दिया गया है.
कैसे लद्दाख के पर्यावरण को खतरा?
सोनम वांगचुक का आरोप है कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद से ही कुछ औद्योगिक गुट, लॉबी, माइनिंग कंपनियों की निगाहें लद्दाख पर टिकी हैं. यह लॉबी लद्दाख के प्राकृतिक संसाधनों के बेतहाशा दोहन में लगी है. विकास के नाम पर अंधाधुंध दोहन शुरू हो गया है. पर्यावरण की जरा भी चिंता नहीं है और इससे पूरे राज्य पर खतरा मंडरा रहा है. वांगचुक का कहना है कि अगर लद्दाख को संविधान की छठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया जाता है और पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाता है तो इस तरह की मनमानी पर रोक लग जाएगी.
केंद्र सरकार ने क्या किया?
लद्दाख में विरोध प्रदर्शन के बाद केंद्र सरकार ने गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय की अगुवाई में 17 सदस्यीय समिति का गठन किया था. इस समिति ने पिछले साल दिसंबर में लेह और कारगिल के दो प्रमुख संगठनों के साथ पहली बैठक की. उनकी मांगों पर चर्चा हुई. हालांकि बैठक का कोई खास नतीजा नहीं निकला.
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हाल के सालों में लद्दाख में पर्यटकों की संख्या में कई गुना इजाफा हुआ है. साल 2022 में अकेले लेह में 5 लाख से अधिक घरेलू पर्यटक पहुंचे. जबकि साल 2007 में कुल 50 हजार के आसपास घरेलू और विदेशी पर्यटक आए थे. 2018 तक यह संख्या बढ़कर 3.2 लाख हो गई थी. साल 2019 में प्रकाशित एक लेख में कहा गया था कि शहर की कुल रिहायश 1969 के 36 हेक्टेयर के मुकाबले 2017 तक बढ़कर 196 हेक्टेयर हो गई.
सोनम वांगचुक और लद्दाख की तमाम सामाजिक संस्थाओं का कहना है कि पर्यटकों की बढ़ती संख्या और शहरीकरण के कारण लद्दाख में संसाधनों, विशेषकर पानी पर काफी दबाव पड़ रहा है.