पिछले दिनों आठ राज्यों के उपचुनावों में भाजपा को सबसे ज्यादा झटका,नरेन्द्र मोदी के खुद उसके गढ़ गुजरात को छोड़ अगर और किसी राज्यों ने दिया है,तो वह है बिहार।
हांलाकि उत्तर प्रदेश,छत्तीसग़ढ,राजस्थान और उत्तराखंड को छोड़ दें तो पशिम बंगाल और असम ने बीजेपी को थोड़ी बहुत राहत अवश्य दी है,मगर कुल मिलाकर इन परिणामों का आंकड़ा,बीजेपी को निराशा के रूप में ही लगी है। इसके कारण की परिकल्पना करें तो शायद करोड़ों भारतीय को मँहगाई से मुक्ति,भ्रष्ट्राचार मुक्त व पारदर्शी सरकार,विदेशों से काले धन की वापसी तथा देश के सर्वांगीण विकास के साथ-साथ पडोसी देश पाकिस्तान और चीन के बढ़ते नापाक क़दमों का मुंहतोड़ जवाब देने जैसे सपने दिखाने वाले नरेंद्र मोदी के महज चार-पांच माह के शासनकाल बीते नहीं कि विपक्षियों ने अपने फटे ढोल पीटने आरंभ कर दिये,जबकि किसी भी सरकार के कार्यक्षमता व उसकी दक्षता का मुल्यांकण को आधार बनाकर इतने कम समय में आँका नहीं जा सकता। इसके लिए जनता के द्वारा भी थोड़ा धैर्य, और सरकार के प्रति एक-एक लोगों का भावात्मक सहयोग अति आवशयक है,तब किसी प्रकार की अपेक्षा लाजिमी होगी।
समय के साथ-साथ नरेंद्र मोदी की कथनी और करनी में जरा भी फर्क नज़र होता नहीं दिख रहा है,जिसके अंतर्गत मोदी ने अपने कई वादों में से एक वादा ”देश का सर्वांगीण विकास”के अंतर्गत जिस प्रकार ”मेक इन इंडिया” का नारा देकर सर्वप्रथम उन्होंने अपनी विकास यात्रा को स्वाभिमान व सम्मान के साथ उसी अमेरिका से आरम्भ किया जिस देश ने एक दिन इसी नरेन्द्र मोदी को अपने यहाँ आने पर प्रतिबंध लगाया था।
शायद यही वजह हो सकती है कि ”नरेंद्र मोदी”ने अपने देश के सम्मान और स्वाभिमान के मद्देनज़र अमेरिकी यात्रा की तारीख ऐसे दिन चुना,जब भारतीय हिन्दू संस्कृति के अनुसार देश का सबसे बड़ा त्यौहार नवरात और दशहरा का पर्व होता है,जिस दिन देवी के उपासक अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार अन्न-जल,नमक आदि-आदि को ग्रहण न करते हुए,पूजा-अर्चना में नौ दिनों तक तल्लीन रहते हैं,को ध्यान में रखते हुए प्रधान-मंत्री नरेंद्र मोदी ने उस यात्रा को भारत देश के सर्वांगीण विकास के मद्देनज़र,अमेरिका की धरती पर कदम तो रखा,मगर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा व उसकी पत्नी मिशेल ओबामा के द्वारा दिए गए भोज निमंत्रण और मनुहार के वावजूद,उन्होंने अमेरिका का एक अन्न भी नहीं छुआ,बल्कि उन्होंने सिर्फ जल ग्रहण के बल पर ही, वहां एक-एक दिन में चालीस-चालीस उधोगपतियों के साथ,चार दिनों तक लगातार वार्ता करते-करते इस यात्रा को,भारत देश का यादगार यात्रा बना दिया। किसी ने ठीक ही कहा है-”परिश्रम का फल मीठा होता है,” फलस्वरूप अन्तराष्ट्रीय सफलता की वजह ने नरेंद्र मोदी की फिकी लहर को एक बार फिर बीजेपी के रूप में विपक्षियों के लिए सुनामी बनकर ,हरियाणा विधान सभा पर काबिज होने के साथ-साथ महाराष्ट्र पर भी अपना दबदबा बना लिया है।
पिछले दिनों जैसा मोदी लहर को आज की तुलनात्मक दृष्टिकोण से देखें तो काफी फर्क नजर आती दिखती है,जिसकी वजह भाजपा का सांगठनिक स्तर व नेतृत्वता की नीति अधिनायकवाद में सिमटने लग रहा है।
सैद्धान्तिक विचारधारा रखने वाली ”भारतीय जनता पार्टी” कभी अटलबिहारी वाजपेयी,लालकृष्ण आडवाणी,डॉ0 मुरली मनोहर जोशी जैसे महान राष्ट्रीय नेता के उच्च विचारधारा व अनुशासन और सिद्धांत की वजह से अटूट थी,मगर आज जो यह स्थिति है,वह इन दिनों जिस प्रकार कुछ ख़ास और दो-ढाई लोगों के बीच सिमटती दिख रही है,वह पार्टी के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।
आने वाले विधानसभा के चुनाव की बात करें तो झारखण्ड के बाद बस अगले ही वर्ष बिहार को लेकर बीजेपी ने तैयारी जोर-शोर से शुरू कर दी है। हाँलाकि नरेंद्र मोदी द्वारा कई किये गए वादों में से एक प्रमुख वादा ”विदेशों से काले धन की वापसी” व सरकार बनने के उपरान्त लिए गए खास एजेंडे ”मेक इन इंडिया” के मद्देनज़र देश के सर्वागीण विकास को लेकर,दूसरे देशों के साथ,संबंध न बिगड़े का ध्यान रखते हुए,पार्टी नीति को कुछ मुलायम जरूर किया गया है,फिर भी बिहार विधान सभा चुनाव को लेकर बिहार को कुछ अच्छी सौगात देने में नरेंद्र मोदी शायद कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
हमेशा से बिहार में जातीय समीकरण चुनावी गणित का खास आधार रहा है,जिसको ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने भी अन्य पार्टियों की तरह मुसलामानों को सबसे ज्यादा तवज्जु देने में लगी है। शायद इसलिए बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी दूसरे राज्यों से गहरे पैठ वाले मुश्लिम नेताओं को यहाँ उमीदवार के रूप में उतरने की तैयारी में जुट गयी है, जिसके अंतर्गत बिहार अररिया जिला के प्रमुख विधानसभा क्षेत्र फारबिसगंज से मंजर खान की चर्चा इन दिनों जिस प्रकार जोरों पर है,इससे लगता है कि बीजेपी ने भी अब मुसलमान वोट को अर्जित करने के लिए मंजर खान जैसे बीजेपी के ख़ास चुनिंदे नेता को बिहार में दाव के रूप में,चुनावी पेंच लगाना आरम्भ कर दिया है।
हाँलाकि मंजर खान इसी नरपतगंज के पुलहा निवासी है,जिसका संबंध गोवा और कर्नाटका में बीजेपी के पुराने और सक्रीय नेता रहे मनोहर परिकर से है, जो वर्तमान में दूसरी बार गोवा के मुख्यमंत्री बने हैं। साथ ही वे बीजेपी के ही सबसे बड़े धुरंदर व जाने-माने राष्ट्रीय नेता मुख्तार अब्बास नकवी के भी ख़ास बताये जाते हैं।इस प्रकार बीजेपी के ही पूर्व केंद्रीय मंत्री सैयद शाहनवाज़ के छोटे भाई सरफराज और कई मुश्लिम नए चेहरे को बीजेपी, इस बिहार बिधान सभा चुनाव में उतारने का एक और नया दाव खेलने में दिलचस्बी लेती दिख रही है,मगर उन्हें अब बिहार में चुनावी लोहा लेने के लिए लालू और नितीश से भी दो-दो हाथ करनें होंगे।
साथ ही जिस प्रकार बिहार विधानसभा के उपचुनाव में नरेंद्र मोदी के नाम की लहर को बेअसर करने के लिए लालू और नितीश के बीच वर्षों से चल रहे विचार,सिद्धांत के नाम पर आपसी मतभेद थे, उसे एक ही झटके में तोड़कर उस लहर को जिस प्रकार मोड़ने में इन दोनों नेताओं ने जो कामयाबी हाशिल किया है,वह बीजेपी के लिए, बिहार में आने वाले विधानसभा चुनाव में, एक बार फिर से धूल चटाने के संकेत हैं। हांलाकि बिहार में सबसे ज्यादा गरिबी और अशिक्षा है, जिस वोट को बटोरने में बिहार के सबसे बड़े धुरन्धर नेता लालू एवं नितीश ,इन दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को महारथ हाशिल है।
बिहार विधान सभा चुनाव बीजेपी के लिए इस बार बहुत ही कठीण डगर है,अगर बिहार में ”भारतीय जनता पार्टी को अपना सिक्का ज़माना है तो उसे फिर से अपनी नीतिगत खुछ ख़ास तैयारी करनी होगी,जिसके मद्देनजर बीजेपी को सर्व-प्रथम लोकसभा और विधानसभा के उपचुनावों की कुछ समीक्षात्मक पहलूओं को ध्यान में रखते हुए,एक बार फिर पार्टी नीति में कुछ आमूल परिवर्तन करने होंगे,साथ ही पार्टी के अंदर आपसी सौहार्द बनाने के लिए एक अलग वातावरण तैयार करने होंगे और बिहार जैसे प्रमुख राज्य के सर्वागीण विकास के मद्देनजर,केंद्र के माध्यम से ” बिहार को विशेष राज्य का दर्जा ” देने जैसे नितीश सरकार की अनवरत पुरानी मांग को सूर्य के आगे मोमबत्ती जैसा हाल कर छोड़ने की कड़ी तैयारी करनी होगी,तब बीजेपी बिहार में ”सौ सोनार की ,एक लोहार की ”जैसे मुहावरे को चरितार्थ कर लालू और नितीश जैसे बिन पेंदी के लोटे को पछाड़ने में कामयाब हो पाएंगे।