पत्रकारों से वार्ता के दौरान उत्तर प्रदेश के श्री राज्यपाल महोदय ने कहा कि ‘‘ईवीएम पर अब आपत्ति जताने का आधार नहीं! उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने जब चुनौती दी थी तब कोई नहीं आया’’! श्री राज्यपाल महोदय ईवीएम का प्रमुख कम्पोनेंट विदेश से आयात होता है तो चुनौती विश्वपटल पर क्यों नहीं दी जाती।
देश के विभिन्न राज्यों से करोड़ों लोग इलेक्ट्राॅनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के विरोध में खड़े हुए हैं। उत्तर प्रदेश में चल रहे निकाय चुनावों में भी जनता द्वारा ईवीएम से धांधली को लेकर प्रदर्शन किया जा रहा है। जनता के विरोध के कई वीडियोज़ सोशल मीडिया के जरिए वायरल भी हो रहे हैं। चुनावों के दौरान ईवीएम में गड़बड़ी की बात चुनाव अयोग भी स्वीकार कर चुका है। ईवीएम को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी भी ‘डैमोक्रेसी एट रिस्क’ किताब में लिखा है, जीएल नरसिम्वाराव, सुब्रमन्यम स्वामी जैसे देश के दिग्गज नेता भी लम्बे समय से ईवीएम के विरोध में खड़े रहे और सुप्रिम कोर्ट तक मामला पहुंचा। देश का सर्वोच्च न्यायालय में भी केस चला और सर्वोच्च न्यायालय भी ईवीएम को क्लीनचिट नहीं दे पाया है। और कहा है कि ईवीएम फ्री फेयर एण्ड ट्रांस्पेरेन्ट नहीं है। ऐसे में शनिवार को पत्रकारों से वार्ता के दौरान उत्तर प्रदेश के श्री राज्यपाल महोदय श्री रामनाईक जी के हवाले से अखबार में यह बयान आया कि ‘‘ईवीएम पर अब आपत्ति जताने का आधार नहीं! उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने जब चुनौती दी थी तब कोई नहीं आया’’!
श्री राज्यपाल महोदय ईवीएम का प्रमुख कम्पोनेंट विदेश से आयात होता है तो चुनौती विश्वपटल पर क्यों नहीं दी जाती। बड़ा ही हास्यासपद है कि जो चीज देश में नहीं बनती उसको चुनौती देश में दी जा रही है।और इसमें भी चुनाव अयोग की शर्ते रहती है। यह गौर करने का विषय है कि ईवीएम को लेकर जितने भी वीडियो वायरल हुए उनमें एक बात ही रही कि बटन कोई भी दवाए लेकिन वोट एक ही पार्टी के निशान पर जा रहा है। इस गड़बड़ी पर जब-जब जनता का भारी विरोध हुआ चुनावी कार्यवाही से जुड़े आलाधिकारियों ने ईवीएम बदल दी और चुनावी कार्यवाही सम्पन्न कराई। लेकिन यह प्रश्न ही रहा कि जो ईवीएम हटाई गई तो उस ईवीएम में क्या गड़बड़ी थी कि बटन कोई भी दबाओ वोट एक ही पार्टी को जाता। क्या गड़बड़ी वाली ईवीएम की जांच की गई? कि ऐसा क्यों हुआ? चुनाव आयोग ने इसकी जांच कराई? ईवीएम को लेकर प्रश्नों की फेहरिस्त लम्बी होती जाती है।
भारत में ईवीएम का यह प्रकरण आज देश से लेकर दुनियां में बहस का मुद्दा बन गया है। इसके साथ ही यदि हम गौर करें तो यह भी विचारणीय है कि अमेरिका, जमर्नी, जापान, ब्रिटेन सहित कई विकसित देशों ने ईवीएम को नकार दिया है। इन विकिसित देशों में आज भी वेलेट पेपर को चुनाव के लिए प्रयोग किया जाता है। जापान जैसा देश जो कि हमारे देश को ईवीएम का महत्वपूर्ण कम्पोनेन्ट बेचता है लेकिन खुद के यहां वेलेट पेपर से ही चुनाव कराता है। यह भी गौर करने का विषय है कि आखिर ईवीएम का महत्व आखिर किस जरूरत को लेकर है? ईवीएम से केवल कुछ घण्टों की बचत के साथ जल्द वोटों की गिनती की जा सकती है इसके अतिरिक्त कुछ और समझ नहीं आता है।ं लेकिन ईवीएम को लेकर कई प्रश्न खड़े होते हुए दिखे हैं जैसे मशीन में गड़बड़ी कर वोट ट्रांसफर का अरोप।वोटों की गिनती में गड़बड़ी के अरोपों पर पुनः मतगणना नहीं हो सकती आदि प्रमुख तौर पर ईवीएम मामले सामने आते है।
यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि अब देश की आम जनता में ईवीएम को लेकर देश के करोड़ों लोगों में शंका पैदा हुई है। यह मामला किसी पार्टी की हार या जीत का नहीं है। यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को लेकर पैदा हुई शंका का है। देश के संविधान की आत्मा के लिए आघात है। क्या ईवीएम की तकनीकी का दिखावा देश के गणतंत्र से बड़ा है? यदि ईवीएम शंका के घेरे में है। तो इसे तत्काल चुनाव प्रणाली से खारिज किया जाना चाहिए और जनता के भरोसे को कायम रखने के वेलेट पेपर से चुनावी प्रक्रिया सम्पन्न कराई जानी चाहिए। आखिर इसमें हर्ज ही क्या है? जनता का विश्वास कायम रखना और गणतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती देना ही प्रमुख संवैधानिक कर्तव्य है। यह कर्तव्य सरकार का है और चुनाव अयोग का भी।