लखनऊ, उत्तरप्रदेश : PM नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में रेलवे स्टेशन के सामने बन रहे फ्लाई ओवर की दो बीम गिरने से दर्जनों लोगों की मौत हो गई है। सरकार इस हादसे में मृतक के परिवारीजन को पांच-पांच लाख तथा गंभीर रूप से घायलों को दो-दो लाख रुपए की सहायता राशि प्रदान करेगी।
यह हादसा वाराणसी-इलाहाबाद की ओर जाने वाले राजमार्ग पर हुआ। पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने बताया कि आठ से 10 मोटरसाइकिल भी इसकी चपेट में आ गए।
अधिकारी ने बताया कि उत्तर प्रदेश पुल निर्माण निगम इस 2261 मीटर लंबे फ्लाईओवर का निर्माण 129 करोड़ की लागत से कर रहा था। फ्लाईओवर का जो हिस्सा गिरा है, उसे तीन महीने पहले ही बनाया गया था। जैसे ही ओवरब्रिज भरभराकर गिरा, वहां अफरातफरी मच गई, चीख पुकार मच गई। कारों के परखच्चे उड़ गए।
अब तक मिली जानकारी के अनुसार, 18 से ज्यादा लोगों की जान चली गई है, और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं। लेकिन इन सबके बीच एक चौंकाने वाली बात सामने आई है।
फ्लाईओवर के निर्माण का अधिकतर काम पूरा हो चुका है और अब आखिरी चरण का काम चल रहा था। लेकिन इस बीच स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चला कि फ्लाईओवर के निर्माण में ढेरों अनियमितताएं बरती जा रही थीं।
एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि हर काम को जल्दी-जल्दी हड़बड़ी में किया जा रहा है। जो पिलर बिठाया जा रहा है, उन्हें आपस में पहले जोड़ा नहीं जा रहा। अगर जोड़ते हुए निर्माण कार्य आगे बढ़ता तो यह घटना नहीं होती।
बताया जा रहा है कि इस निर्माणाधीन पुल के डिजाइन को लेकर जुलाई, 2017 में ही सवाल किए गए थे। ऐसा कहा गया कि फ्लाईओवर की डिजाइन ऐसी बना दी गई है, जो भारी वाहनों के लिए मुसीबत बन गई है।
वास्तव में शुरुआत में लगे चार स्लैब भारी वाहनों से टकराने के चलते हिलने लगे थे। तभी से यह आशंका जताई जा रही थी कि जब फ्लाईओवर के नीचे की सड़क बनेगी तो उसकी ऊंचाई बढ़ जाएगी। ऐसे में फ्लाईओवर के नीचे से भारी वाहन के गुजरने पर स्लैब के फिर से क्षतिग्रस्त होने की आशंका जताई जा रही थी।
इस फ्लाईओवर प्रोजेक्ट को 2 मार्च, 2015 को इजाजत मिली थी। इस 1710 मीटर लंबे फ्लाईओवर के लिए 77 करोड़ 41 लाख रुपए का बजट पास किया गया था।
25 अक्टूबर, 2015 से इस फ्लाईओवर के निर्माण का काम शुरू हुआ था। लोगों का कहना है कि अगर सरकार पहली बार में उठे सवालों को ध्यान में रखकर इस काम में जल्दबाजी नहीं करती तो आज ये हादसा नहीं होता।
बता दें की कैंट स्टेशन के करीब शाम 5.20 बजे यह घटना हुई। बीम के नीचे एक रोडवेज बस, एक बोलेरो, दो कार, एक आटो रिक्शा और चार बाइक दब गईं थीं। मौके पर अफरा-तफरी और चीख-पुकार मच गई। नौ क्रेन की मदद से दोनों बीम को करीब चार घंटे में उठाया जा सका। हादसे का कारण पहली नजर में उत्तर प्रदेश सेतु निर्माण निगम द्वारा लापरवाही से किया जा रहा कार्य बताया जा रहा है। ट्रैफिक डायवर्जन किए बिना ही निर्माण कार्य किया जा रहा था।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक शाम होने की वजह से मौके पर जाम की स्थिति थी। लिहाजा बीमों के गिरने के दौरान बचाव और भागने की गुंजाइश भी नहीं थी, जो जहां था वहीं बीम की चपेट में आ गया। प्रशासनिक अधिकारियों और कर्मचारियों के अलावा मौके पर मौजूद लोगों की मदद से घायलों को बीएचयू ट्रामा सेंटर, नजदीकी रेलवे अस्पताल, मंडलीय अस्पताल व दीनदयाल अस्पताल भेजा गया है। दर्जनों एंबुलेंस, जेसीबी व हाइड्रोलिक क्रेन मौके पर पहुंच गईं। राहत और बचाव कार्य में विलंब के चलते जनता में आक्रोश भी देखने को मिला।