औरैया शहर से लगभग ५० किलोमीटर दूर ऊँचे टीले पर बसा सेहुद गाँव, जहा पर है धौरा नाग मंदिर, गाँव से करीब पांच किलोमीटर दूर मौजूद इस छोटे से खंडहर में कभी श्रधालुओं की भीड़ लगी रही थी, मगर आज इस मंदिर में सन्नाटा है, यहाँ के घंटे की आवाज़ हर श्रधालुओ के लिए कर्णप्रिय हुआ करता था, मगर अब यहाँ हवाओं की सनसनाहट लोगो में भय पैदा करती है, कभी इस खँडहर में दूध, फल और फूलों का चढ़ावा चढ़ता था, मगर आज यहाँ गंदगियो का चढ़ावा है।
इस प्राचीन श्रापित मंदिर का इतिहास काफी पुराना है, हांलाकि इस मंदिर का निर्माण किसने और कब कराया ये आज भी रहस्य है, लेकिन कुछ ग्रामीणों और इतिहासकारो की माने तो कन्नौज के राजा जयचन्द्र प्रति दिन इस नाग मंदिर पर पूजा अर्चना करने आते थे, राजा जय चन्द्र ने कन्नौज से इस मंदिर तक आने के लिए एक गुप्त सुरंग का भी निर्माण कराया था, जो अब इतिहास के पन्नो में विलुप्त हो चूका है।
इतिहासकार के अनुसार इसी गाँव के एक, दो नहीं बल्कि दर्जन भर परिवार ने इस मंदिर में छत डालने का प्रयाश किया, और छत की ढलैया भी कराई मगर छत ढलाते ही उनके घरों में कोई ना कोई अनहोनी हो गयी, किसी परिवार में किसी सदस्य की मौत हो गयी तो किसी परिवार में कोई सदस्य अपंग हो गया, तो किसी का परिवार का सुख चैन छीन गया, एसे में इस मंदिर के भय से कई परिवार गाँव छोड़ कर चले गए, और जो रह गए उन्होंने मंदिर में जाना छोड़ दिया, और कही श्र्धालुओ से गुलजार रहने वाला मंदिर वीरान हो गया, श्र्धालुओ का यहाँ आना बंद हो गयाए मंदिर के घंटे खामोश हो गए, यहाँ पूजा कराने वाले पुजारी ने मंदिर पूजा करना बंद कर दिया, और धीरे धीरे ये मंदिर खँडहर में तब्दील हो गया।
इस गाँव के एक नागरिक सुधीर तिवारी और शिव वीर दोहरे की माने तो उनके घर के बड़े बुजुर्ग बताते थे की यहाँ नाग पंचमी के दिन आसपास जिले से लोग इस मंदिर में नाग देवता का दर्शन करने आते थेए महीनो यहाँ मेला लगता था, इस मंदिर में नाग देवता को करीब सौ से डेढ़ सौ लीटर दूध चढ़ जाता था, यहाँ बाकायदा दंगल का प्रतियोगिता हुआ करता था, जिसमे भाग लेने के लिए पुरे प्रदेश से पहलवान आया करते थेए मगर अब यहाँ एसा कुछ नहीं होता। वही विवेक कुमार और श्याम सिंह की माने तो लोग अब उधर से गुजरते हुए भी उस मंदिर की तरफ नहीं देखते। इसके अलावा उसी गाँव मोहन लाल वकील की माने तो उस मंदिर का खौफ अब इतना हो चूका है कि लोग अब उस मंदिर के आसपास की जमीन भी खरीदना नहीं चाहते।
वही अवधेश कुमार इस बात से सहमत नहीं है, कि यह मंदिर श्रापित है, इसके अलावा गाँव के ही एक वकील राम कुमार की माने तो उनके अनुसार यह एक काल्पनिक बात है, मंदिर में छत न पड़ पाने का कोई और ही कारण हो सकता है, मगर कहते है ना कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा, क्योकि राम कुमार की तरह कुछ युवा भी इसे मनगढ़ंत कहानी मानते है, मगर जब उनसे ये पूछा गया की आप लोग ही आगे बढ़ कर क्यों नही इस मंदिर की छत बनवाने के साथ यहाँ पूजा पाठ शुरू करवा देते है, ये सुन कर सब खसक लिए, अब इसे क्या कहे।
वजह कोई भी होए अलग . अलग मतों के होने के बाद भी सभी का इस मंदिर को श्रापित मानना कही न कही इस बात को मानाने को विवश करता
है, कि इस मंदिर में कुछ न तो कुछ अवश्य ही ऐसा है, जिससे की सभी गाँव वाले इस मंदिर की छत डलवाने या पूजा करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है।