मुजफ्फरनगर दंगों के बाद राहत शिविरों में रह रहे बच्चों की मौत को लेकर यूपी सरकार की ओर से फिर बेतुका बयान आया है। यूपी के गृह सचिव अनिल कुमार गुप्ता ने कहा है कि ठंड से कोई नहीं मरता, ठंड से कोई मरता तो साइबेरिया में कोई जिंदा नहीं बचता।
अगर पश्चिम उत्तर प्रदेश के दंगा पीडि़त और उनके लिए स्थापित किए गए राहत शिविर लगातार खबरों का हिस्सा बने हुए हैं तो इसके लिए अखिलेश सरकार किसी अन्य को दोष नहीं दे सकती। मुजफ्फरनगर और शामली के राहत शिवरों में बड़ी संख्या में बच्चों की मौत से इन्कार कर रही राज्य सरकार जिस तरह यह मानने के लिए विवश हुई कि पिछले ढाई माह में 34 बच्चों की मौत हुई है उससे यह साफ हो जाता है कि पहले सच्चाई को छिपाले की कोशिश की जा रही थी।
जब इन राहत शिवरों में करीब 50 बच्चों की मौत की बात सामने आई थी तो राज्य सरकार ने न केवल सिरे से इन्कार किया था, बल्कि इन शिवरों की दुर्दशा का सवाल उठाने वालों को झिड़का भी था। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है कि आखिरकार मेरठ के मंडलायुक्त केक नुतृत्व वाली समिति ने 34 बच्चों की मौत की बात मान ली, क्योंकि उसने इन मौतों के कारणों का उल्लेख करने की जहमत नहीं उठाई है।
समिति का जोर यह साबित करने पर है कि इन मौतों के लिए किसी तरह अव्यवस्था जिम्मेदार नहीं है। समिति ने बच्चों की मौत ठंड की वजह से होने से साफ इन्कार किया है। पता नही ंसच क्या है, लेकिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को जिस तरह यह लग रहा है कि बच्चों की मौत ठंड से बचाव के प्र्याप्त प्रबंधन न होने से भी हुई उससे दूसरी ही तस्वीर उभर रही है। राज्य सरकार भले ही यह दावा करे कि राहत शिविरों में हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है, लेकिन वहां के हालात इन दावों की चुगली करते हैं।
राहत शिवरों में रह रहे लोग लगातार यह शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उनकी नई शिकायत यह है कि उन्हें पर्याप्त मुआवजा दिए बगैर शिवर खाली करने को कहा जा रहा है। यह विचित्र स्थिति है कि राज्य सरकार जब सब कुछ दुरूस्त बता रही है तब राहत शिवरों में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के दौरे के बाद यह कहा कि अब वहां केवल कांग्रेस और भाजपा के समर्थक ही रह रहे हैं उससे उन्होंने मुसीबत मोल लेने का ही काम किया है।
इस पर आश्चर्य नहीं कि कोई भी उनके इस बयान से सहमत नजर नहीं आ रहा है। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि यह सहज स्वीकार नहीं किया जा सकता कि कुछ लोग किसी राजनीतिक साजिश के तहत राहत शिवरों में बने रहना चाहते हैं। यदि एक क्षण के लिए इसे मान भी लिया जाए तो इसके लिए राज्य सरकार ही जवाबदेह है।
इससे पहले सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने भी कुछ इसी तरह का बयान देकर विवाद खड़ा किया था। मुलायम ने कहा था कि कैंपों में कोई पीड़ित नहीं रह रहा हैए जो लोग हैं वे बीजेपी और कांग्रेस के लोग हैंए जो साजिश के तहत वहां टिके हुए हैं। बेहतर हो कि सपा के नेता यह समझें कि राहत शिविरों में व्याप्त अव्यवस्था की अनदेखी करने से उन्हें कुछ हासलि होने वाला नहीं है। इसी तरह इन शिविरों में रह रहे लोगों को पर्याप्त मदद दिए बगैर हटाने से भी बात बनने वाली नहीं है।
यह चिंताजनक है कि उत्तर प्रदेश सरकार पहले सांप्रदायिक हिंसा रोक पाने में बुरी तरह नाकाम रही और अब इस हिंसा से पीडि़तों को मदद देने में भी असफल साबित होती दिख रही है। सबसे खराब बात यह है कि वह अपनी असफलता का दोष अपने राजनीतिक विरोधियों पर मढ़ना चाहती है। एक तरफ राहत कैंपों में बदइंतजामी की वजह से मौत का सिलसिला जारी है और सरकार लगातार असंवेदनशील बनी हुई है।