सुप्रीम कोर्ट की एक नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने एक बेहद अहम फैसले में 35 साल पुराने अपनी ही संविधान पीठ के फैसले को गलत बताया है. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इस बात पर असहमतिपूर्ण फैसला दिया है कि खनिजों पर देय रॉयल्टी कर है या नहीं. शीर्ष अदलात ने 8:1 के बहुमत से फैसले को पलट दिया.
शीर्ष अदालत अपने फैसले में कहा कि संसद के पास, संविधान के प्रावधानों के तहत खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति नहीं है. इसमें कहा गया है कि संविधान के तहत राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है. वर्ष 1989 में सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिया गया वह फैसला सही नहीं है जिसमें कहा गया था कि खनिजों पर रॉयल्टी कर है.
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार नहीं है. राज्यों ने खदानों और खनिजों पर केंद्र द्वारा अब तक लगाए गए करों की वसूली पर सुप्रीम कोर्ट से स्पष्टीकरण मांगा था. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह खदानों और खनिजों पर केन्द्र द्वारा अब तक लगाए गए करों की वसूली के मुद्दे पर 31 जुलाई को विचार करेगा.
यह खनिज समृद्ध राज्यों की बड़ी जीत है. इससे ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान को लाभ फायदा होगा.
जानिये, क्या था 1989 का फैसला
1989 की बेंच ने खनिजों पर लगाई जाने वाली रॉयल्टी को टैक्स माना था. उस वक्त सात सदस्यीय पीठ ने कहा कि देश में खदानों और खनिजों के विकास पर प्राथमिक अधिकार केंद्र सरकार का है. राज्यों के पास केवल रॉयल्टी लेने का अधिकार है. इसके अलावा वे खनन और खनिज विकास पर कोई अन्य टैक्स नहीं लगा सकते हैं. इसके साथ ही फैसले में पीठ ने कहा था कि हमारा मानना है कि रॉयल्टी एक कर है और कोई भी राज्य सरकार रॉयल्टी पर सेस नहीं लगा सकती है. यह एक तरह से कर पर कर लगाना होगा.