नई दिल्ली : मेरठ के हाशिमपुरा में 22 मई 1987 को हुए नरसंहार में सभी आरोपियों को अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। इस मामले में 28 साल बाद फ़ैसला आया है।
साल 1987 में मेरठ में हुए इस नरसंहार में एक समुदाय के 40 लोगों की हत्या कर दी गई थी। ये सभी लोग मेरठ के हाशिमपुरा मोहल्ले के रहने वाले थे। हत्या का आरोप यूपी पुलिस की प्रांतीय सशस्त्र पैदल सेना (पीएसी) की 41वीं कंपनी के जवानों पर लगा था।
इस मामले की चार्जशीट 1996 में ग़ाज़ियाबाद में दाखिल की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सितंबर 2002 में इस केस को दिल्ली ट्रांसफ़र कर दिया गया था। इस मामले में कुल 19 आरोपी थे, जिनमें से तीन की मौत हो चुकी है।
क्या था पूरा मामला
फरवरी, 1986 में राजीव गांधी सरकार के अयोध्या में विवादित ढांचे का ताला खुलवाने के बाद उत्तर भारत के कई बड़े शहरों में दंगा शुरू हो गया था। जनपद में अप्रैल 1987 में दंगा भड़का, जिसे काबू भी कर लिया गया था। इसके बाद सुरक्षा बलों की 38 टुकड़ियों को हटा लिया गया। फिर 18 मई को दोबारा से शहर में फसाद शुरू हो गया। 18 और 19 मई को मेरठ में भयानक दंगा भड़का, लेकिन हाशिमपुरा और आसपास के मुहल्ले शांत थे। 21 मई को हाशिमपुरा के बगल के मुहल्ले में एक युवक की हत्या के बाद माहौल गरमा गया।
देखते ही देखते कई इलाकों में मारकाट मचने लगी। दुकान और मकान फूंके जाने लगे। हाशिमपुरा के एक ही समुदाय के 42 लोगों की हत्या कर दी गई, लेकिन दिल दहला देने वाले दृश्यों को बयां करने के लिए इनमें से पांच किसी तरह बच गए। आरोप है कि हाशिमपुरा में दंगे के दौरान बड़ी संख्या में पीएसी के जवान पहुंचे थे। इन जवानों ने वहां मस्जिद के सामने चल रही धार्मिक सभा में से मुस्लिम समुदाय के करीब 50 लोगों को हिरासत में लिया और ट्रक में डालकर ले गए। फिर 42 लोगों की गोली मारकर हत्या कर उनके शव नहर में बहा दिए थे। बाद में 19 लोगों को हत्या, हत्या का प्रयास, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ और साजिश रखने की धाराओं में आरोपी बनाया गया। वर्तमान में आरोपी बनाए गए 16 लोग जीवित हैं। उत्तर प्रदेश की सीबीसीआइडी ने 161 लोगों को गवाह बनाया था।