पाड़ा कि मांग जहां नेपाल में अच्छी है वहीं बच्छड़ो एवं बैलों कि माग बग्लादेश में है। आज यही कारण है कि देहात क्षेत्रों में बैलों कि घुंघड़ू कि जगह ट्रैक्टर कि घड़घड़ाहट सुनाई पड़ रही है बैलों कि किमत किसानों कि पहुंच बाहर हो गई है। और यह सब पुलिस-प्रसासन कि नाक के निचे हो रही है। सूत्रों कि माने तो इसके एवज में व्यापारियों द्वारा मोटी रकम माहवारी नीचे से उपर तक के पुलिस पदाधिकारीयों तक प्रति माह पहुंचाया जाता है। यहा तक कि पचपकड़ी ओ.पी0.के स्टाफ जाकर स्वयं प्रति पशु पैसे कि तसीली करते हैं और यही कारण है कि ये तस्कर बड़ी निडरता से मुख्य मार्ग से हि पशुओं को पड़ोसी देश नेपाल ले जाते है।
खुली सीमा होने के कारण आसानी से सीमा पार करने में कोई दिक्कत नहीं होती है वहीं बग्लादेशी और अन्य महानगरों के व्यवसायी खरीददारी कर आस पड़ोस के गांवों में अपने एजेन्टो के पास ले जाकर ट्रकों पर लाद अपने अपने ठीकानों तक ले जाते हैं इस बाजार को तस्कर बाजार कहना गलत नहीं होगा। यूं तो कई बार बड़े पदाघिकारीयों द्वारा छापेमारी कर सैकड़ो मवेशी जप्त किये गये किन्तु नतिजा वही ढाक के तिन पात रहा। तस्करों का मनोबल कहीं से कम नहीं हुआ बल्कि और बढ़ हि गया है। फिर भी प्रसाशनिक पदाधिकारीयों और सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रहा वह दिन दूर नहीं जब क्षेत्र पशुविहिन हो जायेगा।