उस समय इस गाँव में अच्छी खासी आबादी थी और हर तरफ खुशहाली थी। यहाँ रहने वाले लोग खेतीबाड़ी कर अपना गुजारा करते थे।
माना जाता है कि सीमा से लगे होने के कारण लाहौर और कई अन्य जगहों से वैष्णों देवी और अमृतसर जाने वाले यात्रियों के लिए यह एक पसंदीदा पड़ाव था और खान-पान की व्यवस्था भी हो जाती थी। यहाँ यात्रियों के विश्राम के लिए धर्मशाला भी थी, जिसमें रात विश्ररम करने के बाद यात्री आगे की यात्रा पर निकल जाते थे। लेकिन भारत पाक बंटवारे के बाद इस सीमावर्ती गाँव पर पाकिस्तान की तरफ से लगातार गोलीबारी होती रही है। जिसके कारण इस गाँव में बसने वाले काफी लोग भी मारे गए और कई जक्ष्मी भी हूए। इसी गोलाबारी की दहशत से कई लोग गाँव छोड़कर शहरों की तरफ पलायन करने लगे जिस कारण एक दिन यह बामू चक गाँव पूरी तरह से वीरान हो गया। आखिरकार एक दिन ऐसर भी आया जब यह गाँव पाकिस्तान के कब्जे़ में चला गया लेकिन जम्मू कश्मीर का भारत में विलय होने के बाद इस गाँव को पाकिस्तान के कबजे़ से मुक्त करवा लिया गया था। इस गाँव से पलायन कर गए लोग इस गाँव की तरफ मुड़कर भी नहीं देखना चाहते थे। पाकिस्तान की तरफ से आकस्मिक गोलीबारी चलती ही रहती थी जिस कारण ववह लोग दहशत में थे और फिर से अपने करीबियों को नहीं खोना चाहते थे। आज भी हालात वैसे ही हैं लेकिन कुछ लोग अपनी जमीनों पर खेतीबाड़ी करने यहाँ जरूर आते है।
इस गाँव में बने इस खण्डहर को देखकर ऐसा लगता है कि किसी समय यह जगह काफी आबादी वाली रही होगी और यहाँ आने वाले यात्री व्यापार भी करते होंगे। इसके अलावा यहाँ कई घर और धर्मशालायें खण्डर में बदल चुके हैं जो कि अब सिर्फ कहने को अवशेष ही रह गए हैं। डोगरा शासन के दौरान बनाये गए हैं। डोगरा शासन के दौरान बनाए गए मंदिर आज भी यहाँ यथास्थित हैं और पाकिस्तान की तरफ से की गयी गोलाबारी के जख्मो को आज भी अपनी बुर्जिओं पर सहेजे हुए है जिन्हें आज भी देखा जा सकता है। हालांकि इस उजड़े गाँव में दूर -दूर तक ना कोई घर है और न ही कोई बस्ती, लेकिन इस गाँव की फिजा और यादें आज भी अपनों की राह ताकते हैं। लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उजड़े और वीरान होने के बावजूद भी यह गाँव राजस्व विभाग के खातों में यथाकथित दर्ज है। इस वीरान गाँव की देखरेख के लिए लम्बरदार और चैकी दारी तक नियुक्त किये गये हैं।
अब सवाल यह उठता है कि अगर यह गाँव वीरान है, और यहाँ कोई बसना नहीं तो सरकार इस गाँव पर खर्च क्यों कर रही है, लेकिन इस गाँव के असली हकदार बामू शाह के परपोते ’विजय शाह’ का कहना है कि गाँव चाहे वीरान हो गया हो लेकिन है तो गाँव ही लोगों का कभी भी अपने गाँव लौटने का मन हो सकता है इसलिए इसकी देखरेख करनी पड़ती है। लेकिन सरकारी अधिकारी इस विषय पर बोलने से कतराते हैं क्योंकि उन लोगों को पता है कि अगर वह लोग कुछ भी बोलेंगे तो उन लोगों की सारी पोल खुल जाएगी।