सोने के भाव में गिरावट से उनके फंसे कर्ज की समस्या और बढ़ सकती है।
रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2009 में बैकों की तरफ से वितरित कुल लोन में सोने के बदले कर्ज की हिस्सेदारी महज एक फीसदी हो गई है। अगर बैंकों ने इस पर रोक नहीं लगाई तो वर्ष 2016 तक कुल कर्ज में यह हिस्सेदारी बढ़कर सात फीसदी तक हो जाएगी। इन चार वर्षों में बैंकों की तरफ से वितरित कुल कर्ज की राशि में औसतन 16-17 फीसदी की वृद्धि हुई है। लेकिन गोल्ड लोन देने की रफ्तार में औसतन 70-80 फीसदी की वृद्धि हुई है।
जानकारों के मुताबिक बैंकों के लिए सबसे ज्यादा मुसीबत पिछले दो वर्षों (2011 और 2012) में वितरित कर्ज बन सकते हैं। इस दौरान सोने की कीमत 30 से 32 हजार रूपये प्रति दस ग्राम रही है। आम तौर पर बैंक जमा सोने की कीमत का 79 से 80 फीसदी के बराबर राशि बतौर कर्ज दे रहे थे। अभी सोने की कीमत 26,350 रूपये प्रति दस ग्राम है। इस तरह से देखा जाए तो बैंकों ने हाल के महीनों में सोने की जिस कीमत के बदले कर्ज दिया है, वास्तवकि कीमत उससे कम हो चुकी है। अगर सोने की कीमत में थोड़ी गिरावट और हो गई तो बैंकों के गोल्ड लोन पोर्टफोलियों का बहुत बड़ा हिस्सा प्रभावित हो जाएगा।
सोने के बदले सबसे ज्यादा कर्ज (करीबए 35,000 करोड़ रूपये) भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने दिया है।SBI ने आधिकारिक तौर पर मौजूदा गिरावट से किसी नकारात्मक असर पड़ने की संभावना से इन्कार किया है। लेकिन कॉरपोरेशन बैंक, विजया बैंक, इलाहाबाद बैंक जैसे छोटे पूंजी आधार, मगर ज्यादा फंसे कर्जे (NPA) वाले बैंकों के लिए स्थिति बिगड़ सकती है। सरकारी व निजी बैंकों के मुकाबले सोने के बदले कर्ज बांट रही गैर-बैंकिंग वित्तिय कंपनियों (NBFC) की स्थिति ज्यादा खराब है। मुथूट फाइनेंस, मणप्पुरम गोल्ड फाइनेंस जैसी NBFC जो जमकर सोने के बदले कर्ज बांट रही थी, बुरी तरह फंस चुकी है। शेयर बाजार में इनकी कीमत लगातार गिर रही है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ NBFP के कुल वितरित कर्ज में सोने के बदले कर्ज की हिस्सेदारी 40 फीसदी तक है। अब देखना यह है कि सोने का गिरता भाव बैकों की समस्या कहा तक बढ़ा सकता है। कब तक यह इस समस्या से निजात पा सकेंगे।