रिपोर्ट के मुताबिक़ वाड्रा ने शिकोहपुर गांव में 3.53 एकड़ जमीन खरीदने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार किए और जमीन के लिए कोई कीमत अदा नहीं की थी। इसके बाद एक महीने से भी कम समय
में उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए कमर्शल कॉलोनी का लाइसेंस हासिल कर भारी मुनाफ़ा कमया। यह वही जमीन है जिसके सौदे की जांच करने के बाद आईएएस खेमका ने जमीन की रजिस्ट्री को ही रद्द कर दिया था।
खेमका ने अपनी रिपोर्ट में वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी और डीएलएफ के बीच 2011 से 2012 तक हुए फर्जी लेन-देन का भी पूरा ब्यौरा दिया है। सेल डीड में 7.5 करोड़ रुपये के चेक का जिक्र भी किया गया है। लेकिन यह वाड्रा की कंपनी का नहीं है। इतना ही नहींए स्टांप ड्यूटी भी वाड्रा की कंपनी ने नहीं दी। उसे ओंकारेश्वर प्रॉपर्टी ने भरा।
खेमका ने यह रिपोर्ट तीन सदस्यीय कमेटी को सौंपी दी है, जिसका गठन हरियाणा सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में वाड्रा डीएलएफ डील की जांच के लिए किया था। हरियाणा सरकार पहले ही वाड्रा को क्लीन चिट दे चुकी है। नवंबर 2012 में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में वाड्रा के खिलाफ अनियमितताओं के आरोपों को झूठा और अफवाह पर आधारित बता चुका था।
खेमका के मुताबिक़ डिपार्टमेंट ऑफ टाउन ऐंड कंट्री प्लैनिंग (डीटीसीपी) ने इस हेराफेरी में वाड्रा का साथ दिया। डीटीसीपी ने नियमों को ताक पर रखकर बिचौलिये की तरह काम कर रहे वाड्रा को मुनाफ़ा पहुंचाने के लिए जमीन के कमर्शल इस्तेमाल का लाइसेंस दे दिया। इसके बाद वाड्रा ने 58 करोड़ में यह जमीन डीएलएफ के बेच दी थी। साथ ही खेमका ने यह सवाल भी उठाया है कि एक दिन नें ही 7.5 करोड़ की जमीन 58 करोड़ की कैसे हो सकती है।