valleys of jammu

जम्मू-कश्मीर की यात्रा

valleys of jammuजम्मू कश्मीर अपने इतिहास के साथ -साथ अपनी खुबसूरत वादियों और हर तरफ ऊंचे पहाड़ों के लिए भी जाना जाता है। यहाँ की समर केपिटल करूमीर को तो धरती के स्वर्ग का खिताब हासिल है और इस जन्नत को देखने के लिए दुनिया भर से टूरिस्ट यहाँ आते हैं। पर यह खूबसूरती सिंर्फ कश्मीर तक ही सीमित नहीं है। बल्कि राज्य की विन्टर केपिटल जम्मू और इसके आसपास भी कई बेहद सुन्दर जगह है जिसका अपना एक इतिहास है इनमें कई धार्मिक स्थल भी है जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं और इन जगहों को सरकार की नजर ण् करम और टूरिस्ट का इन्तजार है। जम्मू में खुबसूरत जगहों की कोई कमी नहीं है यह वो जगह है जो आम लोगों के साथ – साथ टूरिस्ट को भी आकर्षित करने में पूरी तरह से सक्षम हैं।

ऐसी ही कुछ धार्मिक स्थल हैं वनेश्वर मंदिर, रघुनाथ मंदिर, सुधमहादेव और मानतलाई । यह वो जगह है जिनका धार्मिक इतिहास तो है ही साथ में यह देखने में भी बहुत खुबसूरत है और इन्हें देखकर कोई आकर्षित हो सकता है। लेकिन जरूरत है की यहाँ टूरिस्ट को भुलाने के लिए कई कदम उठाने और उनकी सुविधाओं के लिए जरूरी इंफ्रास्टेक्चर की। इसके अलावा इनके बारे में लोगों को जानकारी देने की। अगर ऐसर होता है तो यहाँ टूरिस्ट की संख्या को बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता पर पता नहीं वक्त के लिए इन जगहों को और कितना लंबा इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि इन जगहों को टूरिस्ट के हिसाब से डेवल्प करने की बात तो सरकार हमेशा करती है पर हर बार ऐसा करना भूल जाती है।

 

वनेश्वर मंदिर

यह जगह जिला उधमपुर के जम्मू इलाके में स्थित है वहाँ यह प्राचीन मंदिर आगे पीछे सुन्दर नजारों में बसा हुआ है। यह शिव मंदिर है और माना जाता है  कि यहाँ भगवान शिव की मूर्ति अपने आप ही लगभग 2500 साल पहले प्रकट हुई थी और आगे पीछे उस समय जंगल होने की वजह से इसे वनेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। कहानी के मुताबिक उस समय एक ग्वाला था जिसने इस मूर्ति पर वार किया था और उसके वार से यह मूर्ति खंडित हो गई थी जो आज तक खंडित ही है। कहा जाता है कि उस समय मूर्ति खंडित ही है। कहा जाता है कि उस समय मूर्ति से खून भी निकला था और उसी समय आकाशवाणी हुई थी कि ग्वाला जिस बिरादरी से संबंध रखता है उस बिरादरी के जितने भी घर है नष्ट हो जाएंगे और तभी उस बिरादरी के लोग अपना घर छोड़ कर चले गए थे। इस मंदिर में लोग मन्नत मांगते हैं जिसमें हुई होती है। यहाँ पर एक नदी सी है जिसमें हुई जिसमें कई मछलियाँ हैं निकी लोग पूजा करते हैं।

सुधमहेश्वर मंदिर

इस जगह तक जाने के लिए उधमपुर से चेन्नई और वाहन से 24 कि. मी. का सफर तय करना पड़ता है हर तरफ ऊँचे – ऊँचे पहाड़ और सर्दी का अहसास सफर को और भी रोमांचक बना देता है। मान्यता है कि इस जगत पर माता पार्वती शिव भगवान की तपस्या किया करती थी और उसी समय पर यहाँ सुदांत नाम का राक्षक भी पतस्या करता था और मां को तंग करता था जिस पर माता पार्वती ने शिकायत की जिस पर भगवान शिव ने राक्षस को मारने के लिए त्रिशुल फेंका था जो आज भी उसी जगह पर है। कहते है जब त्रिशुल राक्षक को लगा तो उसके मुंह से शिवाजी की तरह यह भी मेरा भक्त है जब भगवान शिव ने राक्षस को वरदात दिया कि इस जगह का नाम सुदांत राक्षस के नाम पर ही सुदमहादेव पड़ा। राक्षस सुदांत की अस्थ्यिों को भी देखा जा सकता है। इसके अलावा मंदिर के एक स्थान पर एक यज्ञ स्थल है यहां पर हर समय आग जलती रहती है और कहां जाता है कि इस जगह पर पिछले 2500 वर्षों से जो भभूत जमा हो रही है उसे कभी भी बाहर नहीं निकाला गया वो अपने आप ही धरती में समा रही है। इन सबके अलावा इस जगह पर भगवान शिव पार्वती के कई मंदिर है निके दर्शनों के लिए श्रद्धालु यहां आते हैं।

मानतलाई मंदिर

यह जगह सुदम महादेव से आठ किलोमीटर की दूरी पर है और यहां तक जाने के लिए काफी सफर कच्ची सड़को पर तय करना पड़ता है। यह वो जगह है जहां पर माता पार्वती का विवाह भी हुआ था और आज भी हर साल शिवरात्री पर यहां शिव पार्वती का विवाह संपन्न किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में लोग शिव बरात में शामिल होते है।

रिगजि़न जोरा (टूरीस्ट मिनीस्टर)

जम्मू में टूरीज्म की कोई कमी नहीं है हर साल माता वैष्णों देवी के दर्शनों के लिए लाखों लोग आते है और यह जरूरत है इन लोगों को जम्मू के आस-पास कई और भी धार्मिक स्थलों की तरफ आकर्षित करने की और इस दिशा में कई कदम उठाये जा रहे हैं।

जम्मू तवी

जम्मू शहर को मन्दिरों का शहर माना जाता है, जम्मू शहर बीच में है कश्मीर घाटी और दमन खौ समतल के पीर पंजाब और त्रिकूट पर्वत और उसके बीच में तवी का मनोहरम दृश्य है, पीर पंजाल जम्मू को कश्मीर से अलग करता है तवी नदी को पूजनीय माना जाता है। तवी नदी शरू होती है कली कुण्डली हिम खण्ड जो भद्रवाह और डोडा में है, तवी नदी भद्रवाह के पर्वतो से होकर उदयपुरए जम्मू जिला से होते हुए पाकिस्तान और फिर चिनाव से मिल जाती है, और कुछ इतिहासकार और जम्मू के लोग मानते हैं कि जम्मू को राजा जम्मू ने 14 शदाब्दी में बनवाया था। इतिहास और पुर्वजो के मुताबिक एक बार राजा जम्मू लोचन शिकार खेलने जम्मू आये। तब उन्होंने देखा कि दो खूंखार पशु एक ही जगह पानी पी रहे थे और पानी पीकर वह अपनी- अपनी दिशा में शांत भाव से चले गए। राजा जम्मू इस घटना से हैरान रह गए। यह देखकर उन्होंने शिकार खेलने का मन त्याग दिया और वहाँ पर रहने का विचार कर लिया। उन्होंने सोचा कि यहाँ जब दो अलग – 2 जाति के पशु एक ही जगह पर पानी पीते हैं तो यह स्थान शान्ति और भाईचारे का प्रतीक स्थान है और यहाँ पर उन्होंने नगर की स्थापना की जिसका नाम जम्मू नगर रखा और नदी का नाम सूर्य पुत्री तप्ती पड़ा जो बाद में तवी हो गया।

इसी तवी के बायीं तरफ जम्मू बस गया और दहिने किनारे पर बाहु लोचन जो राजा का भाई था, उन्होंने एक किला बनवाया और उस किले में काली माता की मूर्ति स्थापना की जो अब बावे वाली माते के नाम पर प्रसिद्ध है और तब मंदिरों के साथ एक विशाल बाग बना था जो बागे- ए – बाहु के नाम से प्रसिद्ध है। सूर्य पुत्री तवी के एक ओर जम्मू शहर जो मंदिरों का शहर कहलाता है और दूसरी ओर बावे वाली माता और बागे -ए- बाहु जो एक मनोहरम दृश्य रात के समय बनता है, वह अद्भुत है। अब सरकार एक कृष्ण झील बना रही है जिसे इस शीर की रौनक दिनों दिन दोगुनि और चैगुनी हो जाएगी। देश के कोने-कोने से आने वाले सैलानी जो माता वैष्णों तीर्थ के दर्शन को आते हैं। उनको जम्मू शहर में भी सैर करने का प्रसिद्ध स्थान जाएगा। जिन नदियों के किनारे शहर का सारा गन्दा पानी इन नदियों में जाता है जिससे पानी प्रदूषित हो जाता है और अनेक गम्भीर बिमारियों का सामना करना पड़ता है। यदि सरकार ध्यान दे तो इन नदियों के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।