srimad bhagavadgita

जीवन और धर्म का ज्ञान ’श्री मद् भगवद्गीता’

srimad bhagavadgita’गीता’ यानि जिसके दर्शन मात्र से पूरा जीवन चक्र चलचित्र की भाँति स्पष्ट हो जाता है जिसकी उपस्थिति मात्र बड़े से बड़े ताकतवर को हिला देती हो, जिस पर हाथ रख देने भर से सत्य के प्रति आस्था और प्रबल हो जाती है ऐसे दिव्य ग्रंथ को भारत में ’श्री मद् भगवद्गीता’ कहा जाता है। कहा भी गया है। यह गोपनीय ज्ञान आध्यात्मिक ज्ञान है, जो स्वयं श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से पूरे विश्व का दिया।

इसमें भक्तियोग, कर्मयोग और ज्ञानयोग का अद्भुत विवेचन किया गया है। वस्तुतः ’गीता ज्ञान’ जीवन और धर्म का ज्ञान है। जो धर्म मनुष्य को दुर्गतिहीनता और चारित्रिक भ्रष्टता से मुक्त करता हो जो इंसान को इंसान से मिलाता हो, प्रत्येक हृदय की व्यवस्था और कातरता को समझता हो वहीं धर्म मानवीय धर्म की व्याख्या में आता है।

इतिहास गवाह है कि योगेश्वर कृष्ण भारतीय आस्था और इतिहास की मूलाधार अनुभूति है। श्री कृष्ण ने श्री मद् भगवद्गीता  में ज्ञान की जो दिव्य सृष्टि की है वह भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व के लिए वंदनीय एवं आचारणीय रही है, सत्य का प्रतीक है। ऐसे सत्य का जो अनादि काल से लेकर अनंन्त काल तक शाश्वत है जिसे मिटाया नहीं जा सकता है। जिस श्री मद् भगवद्गीता पर हाथ रखकर शपथ खाने पर विश्वास हो जाता है कि अमुक व्यक्ति ’सत्य’ ही बोलेगा। सच तो यह है कि दुनिया भर में इस पुस्तक की छवि जिंदगी जीने का सलीका सिखाने वाले ग्रंथ की रही है। इसे धर्म की पाबंदियों से उठकर मानवीय इतिहास की सार्वभौम धरोहर माना गया है। यूँ तो कोई भी धार्मिक ग्रंथ चाहे वो कुरान हो या बाईबिल गुरू ग्रंथ साहिब हो या श्री भगवद्गीता सदैव देश काल की सीमाओं से ऊपर रहे हैं। लोग चाहे किसी भी मत के सम्प्रदाय के या फिर किसी भी देश के हो दुनिया के सभी देशों के बीच धार्मिक ग्रंथों का सम्मान करने की अघोषित परम्परा एवं सहमति रही है।

कहने को तो श्री मद् भगवद्गीता सनातन धर्म यानि हिन्दुओं का एक प्रमुख आध्यात्मिक ग्रंथ है, लेकिन इन सबसे ऊपर गीता मात्र ग्रंथ नहीं दर्शन है। एक ऐसा दर्शन जो किसी भी जाति, सम्प्रदाय एवं देश काल की सीमाओं को लांघ विश्व में सार्वभौम सत्य के रूप में स्थापित हो चुका है और प्राचीन काल से आज तक समाज के विकास में इसकी आधारभूत भूमिका रही है। श्री मद् भगवद्गीता को भारत में ही नहीं विश्व में धार्मिक पुस्तक का दर्जा प्राप्त है। गीता प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों, संतों दार्शनिकों, समाजसुधारकों एवं राजनेताओं, वकीलों तक के लिए जिज्ञासा का ग्रंथ रही है। भारतीय मनीषियों एवं चिंतकों ने तो अपने-अपने ढंग से इसके अनुवाद एवं भाष्य बड़े पैमाने पर लिखे हैं।

गीता मात्र एक पौराणिक आख्यान नहीं बल्कि एक ऐसा प्रमाणिक ग्रंथ है जो सही गलत का अर्थ समझने तथा जीवन में मूल्यों का समझाने में आपको दिग्-भ्रमित होने से बचाता है। भारत में गीता केवल पढ़ी ही नहीं जाती बल्कि प्राणों में समाहित की जाती है। गीता में हर प्रकार के लक्ष्य निर्धारण के गुण, जोखिम, बेहतर नेतृत्व क्षमता, मानवीय संसाधनों का श्रेष्ठतम उपयोग उपलटिध्यों तथा जीवन से लेकर मृत्यु तक के गहरे रहस्यों और जिज्ञासाओं का समावेश मिलता है। निष्काम् कर्म की बहुमूल्य शिक्षा गीता की ही देन है। भारतीय आज़ादी के दो मुख्य कर्णधार बाल गंगाधर तिलक एवं गांधी जी गीता से अत्यधिक प्रभावित थे। यही नहीं उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में इसका बेहतर प्रयोग भी किया है

मुगल बादशाह अकबर के बेटे दाराशिकोह और महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन तक को इसका एकेश्वरवाद पर आधारित दर्शन ने बहुत प्रभावित किया दाराशिकोह ने इसका अनुवाद फारसी में भी कर दिया पिछले कई दशकों से गीता का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है। साथ ही दुनियां भर में श्री कृष्ण और गीता के करोड़ों भक्त है जो अपनी भाषा और अपनी संस्कृति के हिसाब से इसका आदर सत्कार करते हैं। किन्तु सबसे हैरानी की बात तो यह है कि जिस साहित्य और दर्शक के मामले में रूसी परम्परा प्रगति और भारतीय साहित्य के प्रति प्रेम जग जाहिर रहा है ऐसे में रूस द्वारा गीता पर पाबंदी लगाना बहुत ही आश्चर्य जनक घटना है। जो भगवद् गीता करोड़ों भारतीयों के लिए गौरव का विषय रही है उसी ’गीता’ पर धार्मिक कट्टरता फेलाने का आरोप लगा उसे आदालत में मुज़रिम की तरह बना दिया गया इस घटना ने इस्कान के संस्थापक स्वामी न्रमुपाद द्वारा लिखित श्री मद् भगवद्गीता के अंग्रेजी भाष्य भगवद् गीता के करोड़ों गीता प्रेमियों को हैरान कर दिया है।

’गीता’ मात्र भारतीय घरोहर ही नहीं वरन विश्व में करोड़ों गैर हिन्दुओं की आस्था और विचारधारा से जुड़ी धार्मिक पुस्तक है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ग्रंथ का दर्जा प्राप्त है जबकि ये दर्जा तो स्वामी विवेकानंद उसी दिन अमेरिका में दिला आये थे जिस दिन उन्होंने उस देश में जाकर भारतीय संस्कृति की उदारता का परिचय दिया था। साथ ही वहां उपस्थित जन समुदाय को ’लेडिज एंड जेंटल मैंन’ न कहकर ’ब्रदर एंड सिस्टर’ कहा था। श्री कृष्ण की बंसी से निकले प्रेम के स्वर को स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया से लोहा मनवाया था। उन्होंने दुनिया को भौगोलिक सीमाओं से ऊपर उठकर इसका रस अपने भाषण द्वारा करवाया।

वस्तुतः संस्कृत में लिखे इस ग्रन्थ की व्याख्याएं न जाने कितने विद्वानों ने अभी तक की है महान दर्शनशास्त्री सर्वपल्ली डा. राधा कृष्ण ने तो इस ग्रंथ को विश्व के लिए अपुपम और अद्वितीय भेंट माना है जिसकी कोई सीमा निश्चित नहीं की जा सकती। गीता निराशा से भरे जीवन में आशा की झलक सरीखी है ऐसा नहीं है कि मात्र गीता ही संसार में ऐसी अनोखी पुस्तक है, जिसमें जीवन का सार निहित है बल्कि आश्चर्य इस बात का है कि ’गीता’ सरीखी पुस्तकों का सृजन संसार में सर्वदा बंद सा ही हो गया है। लेकिन वर्तमान सुधारने व भविष्य को उज्वल संभावनाओं से भरा बनाने के लिए किए जा रहे प्रयासों में शिथिलता भले ही हो पर अभाव कभी नहीं रहा।