बड़ी खबर : इतिहास में पहली बार, NASA ने मांगी ISRO मांगी मदद

नई दिल्ली : विदेश नीति और द्विपक्षीय संबंधों का समीकरण कई बार बड़े दिलचस्प मोड़ लेता है। भारत और अमेरिका के आपसी संबंधों का अतीत और इसका वर्तमान भी ऐसी ही एक मिसाल है। 1992 में अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन (ISRO) पर प्रतिबंध लगा दिया था।

इतना ही नहीं, उस समय अमेरिका ने रूस पर दबाव बनाकर उसे ISRO के साथ क्रायोजेनिक इंजन तकनीक साझा करने से भी रोक दिया था। अमेरिका की इन सभी कोशिशों का मकसद भारत को मिसाइल विकसित करने की तकनीक हासिल करने से रोकना था।

तमाम प्रतिबंधों और मुश्किलों के बाद भी इसरो GSLV को बनाने में कामयाब रहा। इसमें लगने वाले क्रायोजेनिक इंजन को भारत में ही विकसित किया गया। इसे बनाने की मुश्किलों की वजह से ही शायद इसरो की टीम GSLV को ‘नॉटी बॉय’ (नटखट बच्चा) के नाम से पुकारा करती थी।

आज से 20 वर्ष पहले अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने भारत की स्पेस एजेंसी इसरो के साथ विश्व का सबसे महंगा अर्थ इमेजिंग कृत्रिम उपग्रह बनाने के लिए समझौता किया था।इस उपग्रह को बनाने में दोनों देशो को 96 अरब से ज्यादा का खर्चा करना था।2021 में इसरो जिस GSLV को अमेरिका की नासा एजेंसी के साथ मिलकर नासा इसरो सिंथेटिक एपरचर रडार (NISAR) को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने वाला है।यह GSLV का वही क्रायोजेनिक इंजन है, जिसको अमेरिका ने 20 साल पहले बनाने के लिए इसरो पर प्रतिबन्ध लगाया था।आज अमेरिका ने सेटेलाइट को भेजने के लिए इसी विश्वसनीय इंजन कोचुना है !

20 वर्ष के बाद अमेरिका और भारत के विदेशनीति के काफी बदलाव आया है।अब भारत विश्व में पहले से ज्यादा विश्वसनीय और मजबूत देश बन कर उभरा है।

पुरानी बातो को भुलाते हुए अब इसरो नासा के साथ मिलकर 2200 किलो के भार वाले NISAR उपग्रह को बना रहा है। NASA ने भी ISRO की तारीफ की है और बयान जारी कर कहा कि भारत के पास कमाल के वैज्ञानिक हैं।

यह उपग्रह अर्थ इमेजिंग में धरती की स्पष्ट विस्तृत और नजदीक की तस्वीर ले सकेगा।इसका निर्माण इस प्रकार से किया जा रहा है कि जटिल परिस्थितियों में भी ये धरती की साफ़ तस्वीर ले सके। इस सेटेलाइट से प्राकृतिक आपदा, बर्फ की चट्टानों का टूटना और पारिस्थितिकी तंत्र में होने वाले उतार चढाव की जानकारी मिल सकेगी ।

नासा को विश्व की सबसे आधुनिक अन्तरिक्ष एजेंसी माना जाता है।नासा ने पहली बार भारत की अन्तरिक्ष एजेंसी इसरो में दिलचस्पी लेनी शुरू की जब भारत ने अपना पहला स्वदेशी रडार इमेजिंग उपग्रह (Risat1) बना कर लांच किया था।यह सेटेलाइट दिन या रात में कभी भी मौसम की सही जानकारी और पृथ्वी की साफ़ साफ़ तस्वीर भेज सकता है।इसके बाद से ही अमेरिका की नासा एजेंसी ने भारत की इसरो की तरफ अपना हाथ बढ़ाया और इसरो के साथ मिलकर नए उपग्रह को बनाने और पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के लिए आग्रह किया ।

दो साल की चर्चा के बाद भारत अमेरिका के साथ NISAR नाम के उपग्रह को बनाने के लिए तैयार हुआ।2014 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच इस समझौते पर निर्णायक हताक्षर हुए।नासा और इसरो के साझा बयान दिया कि इस सेटेलाइट को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के बाद इसका फायदा पूरे विश्व को होगा।सभी देशो की सहायता के लिए इससे प्राप्त होने वाले मेपिंग डाटा को साझा किया जायेगा ।