buddha

बिहार का बौद्ध स्तूप

buddhaविश्व के सबसे ऊँचे बौद्ध स्तूप आज कल बौद्ध धर्मावलम्बियों व आम लोगों के लिए पर्यटक केन्द्र के साथ-साथ आस्था का केन्द्र बना हुआ है। बिहार की राजधानी पटना से करीब 110 किलोमीटर की दूरी पर पूर्वी चम्पारण जिले के केसरिया वैशाली मार्ग के केसरिया में स्थित है। वर्ष 2001 में भारतीय पुरातत्व सवेक्षण पटना अंचल के पुरातात्विक मो. के के साहब ने पूर्व से प्रचलित देउरा या राजा वेन के गढ़ के रूप में प्रसिद्ध टीले को विश्व का सबसे उंचा बौद्ध स्तूप घोषित किया था।

विश्व प्रसिद्ध स्तूप के रूप में घोषित होते ही केसरिया विश्व मानचित्र पर एकाएक छा गया। ऐसी मान्यता है कि गौतम बुद्ध के जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाएं केसरिया में घटी। केसरिया (के सपूत निगम) में ही उन्होंने राजसी वस्त्र का त्याग किया। इसी धरती पर ज्ञान की खोज के क्रम में अलार-कलाम नामक सन्यासी से गौतम बुद्ध ने प्रथम शिक्षा ली थी। यहीं से वैशाली होकर वे बोधगया पहुंचे जहां उन्हें बोधिवृक्ष के नीचे मूल ज्ञान की प्राप्ति हुई।

जीवन के गौतम बुद्ध कुशीनगर के प्रस्थान कर रहे थे तो रात्रि विश्राम उन्होंने केसरिया में किया गया था। उनके साथ वैषाली से भारी संख्या में अनुयायी आये थे जिन्हे भिक्षा पात्र देकर उन्होंने केसरिया से वैशाली के लिए विदा किया था। तत्पश्चात वे कुशीनगर के लिए चले गये थे। बहुत सारी ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े होने के कारण ही इस महा स्थान केसरिया में अजादशत्रु ने विश्व का सबसे उंचा बौद्ध स्तूप बनवाया।

चीनी यात्री हवेनसाग एवं हाफियान भी केसरिया आये थे और अपने यात्रा कृतान्त में इस स्तूप की चर्चा की। जेनरल कनिधम होडसन एवं मैकेनजी ने भी स्तूप का भ्रमण कर अपनी रिपोर्ट दी। वर्ष 1861-62 में कनिधम ने कहा था कि केसरिया स्तूप के निर्माण में दस से पन्द्रह करोड़ ईंट लगी थी। साथ ही इसकी उंचाई लगभग 150 फीट थी। सन 1934 के भूकम्प में इस स्तूप को काफी क्षति पहुंची थी। 3 मार्च 1998 को इस स्तूप की प्रथम खुदाई आरम्भ की गयी। वर्ष 2001 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण पटना अंचल के पुरातात्विक मो.के के साहब ने इस दुनिया का सबसे उंचा स्तूप घोषित किया था।

विश्व प्रसिद्ध केसरिया बौद्ध स्तूप की उंचाई वर्तमान 104 फीट 10 ईंच है। यह करीब 30 एकड़ भूभाग पर फैला हुआ है। वर्ष 1998 से लेकर अब तक स्तूप के करीब चालीस प्रतिशत भाग पर ही उत्खनन का कार्य हो पाया है। हालांकि उत्खनन के परिमाण में संरक्षण का कार्य नहीं हो रहा है। उत्खनन के बाद जो मूल स्वरूप बाहर आये हैं। उन्हें बारिस में भारी क्षति पहुंच रही है। इस स्तूप का आधे से अधिक हिस्से की खुदाई अभी तक बाकी है। केसरिया स्तूप विश्व प्रसिद्ध होते ही यहां देशी-विदेशी पर्यटकों के आने का सिलसिला शुरू हो गया है। नेपाल चीन, तिब्बत, जापान, कोरिया, थाईलैण्ड, भुटान, श्रीलंका समेत कई अन्य देशों से हजारों की संख्या में पर्यटक यहां प्रतिवर्ष आते रहते है। मगर सरकारी स्तर पर सुविधा भी नदारद है।

पर्यटकों के लिए रहने खाने की सुविधा की बात कौन कहे यहां एक शौचालय एवं शुद्ध पेयजल भी उपलब्ध नहीं है। राज्य सरकार ने पर्यटक भवन 50 लाख की लागत से बनाया जरूर मगर स्तूप से काफी दूर प्रखण्ड कार्यालय परिसर में जहां पर्यटक नहीं पहुंच पाते है। विश्व प्रसिद्ध यह स्तूप आज उपेक्षा का शिकार बन कर रह गया है। इस स्तूप के विकास को लेकर केन्द्र व राज्य सरकार दोनों को इसकी चिन्ता है। अब तक विकास में चाहरदिवारी का निर्माण व पांच सोलर लाइट लगे हुए है जिसमें सब बन्द के बराबर है। केसरिया में आयोजित सरकारी महोत्सव में राज्य सरकार के मंत्री महोदय विकास के लिए बड़ी-बड़ी घोषणा जरूर करते हंै। मगर उन घोषणाओं पर अमल नहीं होता है।