कुछ ऐसे भी गैर सरकारी संस्था हैं जो बिना अनुदान प्राप्त किए भी शराब के खिलाफ अभियान चलाया जाता है। एनजीओ के कार्यकर्ता गाना भी गाते हैं। बोतल को छोड़ मेरे यार….. अब तो तोबा करो… जिसकी आदत पड़ी है…. बस अब उसकी घटिया खड़ी है… लालपरि से मुंह मोड़ों……. व्हिस्की बराण्डी छोड़ों… शराब को छोड़ो…. बोतल सड़क पर फोड़ो…। बिहार सरकार के उत्पाद विभाग भी दृढ़ संकल्प है कि शराब के जद में आम आदमी नहीं पड़े। समय-समय पर छापामारी करके शराब द्वारा भी शराब के खिलाफ अभियान चलाया जाता है।
अभी खबर है कि विभिन्न मुसहरी में एक शराब जोर शोर से महुंआ दारू बनाया जाता है। यह धंधा मुसहरी में कुटीर उघोग की तरह पनप गया है। इसका असर छोटे बच्चे और नौजवानों पर पड़ रहा है। प्रारंभ में शराब पीने बुजुर्ग मर गए। अब नौजवान शराब के सेवन करने के बाद मौत के घाट उतर रहे हैं।
एक अन्य खबर है कि दीघा थाना क्षेत्रान्तर्गत बालू पर लौरेंस के बाल बच्चे रहते थे। बॉम्बे ड्राईंग रूम में दिन में रोबिनसन लौरेंस कार्य करते थे। कार्यालय से घर आने के बाद संध्या और रात्रि हसीन करने के लिए शराब के बाहों में चले जाते थे। शराब पीते-पीते मौत की गोद में चले गए। इसी राह पर पीटरसन लौरेंस चले गए। ये बेरोजगार थे। ईसाई मिशनरियों के गलत कारनामे के खिलाफ बगावत किया करते थे। इनसे पादरी और सिस्टरों के हाथ-पांव कांपने लगते थे। गरीबता के कारण बाद में पीटरसन के तेवर नरम पड़ गये।
इसके बाद आबकारी विभाग के अफसर पर कार्य करके वाले चार्ल्स लौरेंस शराब पीते-पीते आशियाना छोड़कर परलोक में स्थायी ठौर बना लिए। इसके बाद अभी-अभी नोएल लौरेंस भी शराब के बुरी लत में पड़ जाने से मौत को गला लगा लिए। इनकी दो बेटी हैं। इनकी बीबी ब्यूटीशियन हैं। मां और बच्ची झारखंड में रहते हैं। इस तरह एक परिवार के चार लोग शराब पीते-पीते चले गए।