दरअसल, राजस्थान में यह पहला मौका नहीं है, जब विधानसभा में जीत दर्ज कर सरकार बनाने वाली पार्टी को लोकसभा में बड़ी लीड मिलने जा रही है, बल्कि 1998 के विधानसभा चुनाव के बाद से ऐसा होता आ रहा है। 1998 ही वह साल है, जिसके बाद पहले विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद लोकसभा चुनाव होने लगे।
यदि राज्य के चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो एक तथ्य सामने आता है कि हर विधानसभा चुनाव के बाद जब लोकसभा चुनाव होता है तो सत्तारूढ़ दल के पक्ष में 10 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग प्रतिशत बढ़ जाता है। 2008 में कांग्रेस सरकार बनी। उस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 20 सीटें (47.19 प्रतिशत वोट) और भाजपा को चार सीटें (36.57 प्रतिशत वोट) मिलीं। ठीक ऐसा पांच साल पहले यानी 2003 में हुआ था। भाजपा को विधानसभा में जीत मिली और सरकार बनी। इन हालात में लोकसभा चुनाव हुए तो भाजपा को 21 और कांग्रेस चार सीटों पर सिमट गई।
अगर विधानसभा चुनाव से साल भर से ज्यादा अंतराल पर चुनाव होते हैं तो हारने वाली पार्टी ज्यादा सीटें जीत सकती है। लेकिन इस सूरत में भी मतों में 10% से ज्यादा की बढ़ोतरी होती है।
सीटें जिन पर अभी गणित स्पष्ट नहीं
राज्य के दौसा, सीकर, बाड़मेर, अजमेर और बांसवाड़ा सीटों को लेकर अभी गणित स्पष्ट नहीं हो पाया है। यहाँ का रुझान बताता है कि मतदान के दिन तक कुछ इलाकों में आरएसएस विशेष अभियान चलाने वाला है। दोनों दलों के नेताओं की मानें तो बूथ मैनेजमेंट में बीजेपी कांग्रेस से ज्यादा आगे चल रही है। इस लिहाज से दो सीटें और भाजपा के हिस्से में जाती हैं। बाकी तीन सीटों का गणित अभी स्पष्ट नहीं है।
बीजेपी को 56 से 60 प्रतिशत वोट मिलने की उम्मीद : इस ट्रेंड के हिसाब से बीजेपी को विधानसभा चुनाव (46.04 प्रतिशत) के मुकाबले 10 से 14 प्रतिशत तक ज्यादा वोट मिल सकते हैं। यानी भाजपा को 56 से 60% तक वोट मिलता है।