काला धन के मालिकों के नाम उजागर करने में स्विटजरलैंड सरकार मदद को तैयार: जेटली

मौजूदा एनडीए सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पिछली यूपीए सरकार का ही रुख अपनाने के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि विदेशों में जमा कालेधन के ब्यौरे का खुलासा करने में 1995 में तत्कालीन सरकार द्वारा जर्मनी के साथ किया गया समझौता बाधक है। उन्होंने यह आरोप खारिज किया कि मोदी सरकार विदेशों में कालाधन जमा करने वालों की सूचना देना नहीं चाहती।

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि काला धन मामले में स्विटजरलैंड सरकार मदद को तैयार हो गई है। उन्होंने कहा, हमारी सरकार को स्विस बैंकों में काला धन रखने वालों के नाम उजागर करने में कोई दिक्कत नहीं है। जेटली ने कहा कि स्विस बैंक अकाउंट धारकों के नाम उसी संधि के आधार पर उजागर होंगे जो पिछली सरकार ने स्विैटजरलैंड के साथ किए हैं।

जेटली ने बताया कि स्विटजरलैंड के अधिकारी उन लोगों के बैंक अकाउंट की जानकारी देंगे जिनकी जांच आयकर विभाग कर चुका है। जेटली ने कहा कि किसी के भी नाम का खुलासा उसी सूरत में होगा जब उस व्यक्ति के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल हो जाएगा। उन्होंने कहा इस मामले में हम कानून से बंधे हैं और हमें कानून का पालन करना ही होगा।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार उन लोगों के नाम उजागर करने को कहा है, जिन्होंने स्विस बैंकों में काला धन जमा कराया है। लेकिन पिछली सरकार ऐसा करने में असमर्थता जताती रही है। बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार में भी काले धन के मुद्दे को खूब भुनाया था। जेटली ने साफ किया कि काला धन मामले में किसी के भी नाम का खुलासा सिर्फ दुष्प्रचार के लिए नहीं होगा और तय नियमों के तहत ही ऐसा किया जाएगा।

जेटली ने बताया कि भारत सरकार ने राजस्व सचिव, सीबीडीटी चेयरमैन और संयुक्त सचिव को स्विटजरलैंड भेजा था। वहां एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया। इस सब कवायद का एक ही मकसद था कि उन लोगों का पता लगाया जाए जिनके स्विस बैंकों में अकाउंट हैं। भारत की पहली कोशिश है कि एचएसबीसी बैंक में भारतीयों के अकाउंटों की जानकारी जुटाई जाए, हालांकि पहले स्विटजरलैंड इस मामले में सहायता करने से इनकार कर चुका है।

अब स्विरटजरलैंड के अधिकारी इस बात पर राजी हो गए हैं कि अगर भारत उन्हें कुछ मामलों में सुबूत देता है और उन लोगों के नाम लिस्ट में होते हैं तो वे सहायता करने को तैयार हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय समझौता हुआ है, जिसके बाद अब उन लोगों के बारे में जानकारी जुटाना आसान होगा, जिनके स्विस बैंकों में अकाउंट हैं।