कानपुर से बीस किलोमीटर दूर स्थित वनखंडेश्वर मंदिर का अपना ही महत्व है। इस मंदिर परिसर में भगवान् शिव के दो शिवलिंग मौजूद है, इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग को लेकर ये मान्यता है कि बाजीराव पेशवा द्वितीय ने बिठूर जाते समय रात होने पर मंधना के पास जंगल में डेरा डाल दिया था। सुबह उनकी नींद खुली तो उन्होंने देखा कि एक गाय वहा आकर एक टीले पर जाकर खड़ी हो गयी, वो टीला बेल के पत्ते से ढका हुआ था। गाय वहा कड़ी होकर दूध देने लगीए गाय के हरकत को देख पेशवा ने उस टीले की खुदवाई करवाईए जहाँ एक शिवलिंग निकलाए पेशवा ने उसी समय उस शिवलिंग की स्थापना पुरे विधिविधान से उसी टीले पर शिवलिंग की स्थापना कर दी, और तब से ये शिवलिंग उसी स्थान पर विराजमान है।
इसके अलावा इस मंदिर की दूसरी मान्यता ये है कि इस मंदिर में झांसी की रानी लक्षी बाई के कान छेदने की रश्म निभाई गयी थीए जिसके बाद रानी लक्ष्मी बाई ने पेशवा के शिवलिंग से सटे हुए दूसरा शिवलिंग की स्थापना की थी। तब से यहाँ दो शिवलिंग विराजमान हैए और यहाँ आने वाले श्रद्धालू दोनों शिवलिंग की पूजा करते है।
कहते है सतना में पेशवा की विरासत में अंग्रेजो को खजाना नहीं मिला था। तब उन्हें पता चला कि पेशवा ने कानपुर के पास मंधना के जंगल में मौजूद वनखंडेश्वर मंदिर में खजाना को छुपाया है। अंग्रेजो ने जब इस मंदिर पर खजाना को पाने के लिए इस मंदिर पर धावा बोला तो, इस मंदिर से सांप और मधुमक्खियो ने अंग्रेजो पर हमला कर दिया, जिसके बाद अंग्रेजो को उल्टे पाँव भागना पड़ा।
एक और मान्यता के अनुसार बाजीराव पेशवा द्वितीय इसी मंदिर में गुपचुप तरीके से अपने क्रांतिकारी दोस्तों के साथ बैठके किया करते थे, और इसकी भनक किसी को भी नहीं होती थी। आज यहाँ सावन के महीने में यहाँ तीनो पहर पूजा किया जाता है। यहाँ के पुरोहित की माने तो यहाँ आने वाले हर भक्त की मनोकामना जरुर पूरी होती है, खासकर उनकी जो पुरे सावन यहाँ 101 बेल पत्र इस शिवलिंग पर चढाते है।
यहाँ आई एक महिला श्रद्धालू मनीषा के मुताबिक़ इन्होने जो भी यहाँ मांगा उन्हें सबकुछ मिला है। बस इस शिवलिंग पर चढ़ाने वाले बेल पत्र पर उंगलियो से लिख कर चढ़ाना होता है। इसी तरह इस मंदिर प्रांगन में पूजा करने आये श्रद्धालू रामकिशोर की माने तो वो पिछले पच्चीस साल से वो इस मंदिर में बराबर पूजा करने आ रहे है, और भगवान् शिव की पूजा करने से इनकी भी हर मुराद पूरी हुई है।