इस बार के लोकसभा चुनावों में भी मायावती अपने ही फार्मूले पर अडिग रहीं और अकेले दम पर लोकसभा चुनाव लड़ी। बसपा प्रमुख केन्द्र की सत्ता में पार्टी को बैलेंस आॅफ पाॅवर बनने का ताना-बााना बुनने लगी। लेकिन इस बार कैडर के बोटर्स ने बसपा के सोशल इंजीनियरिंग को ध्वस्त कर दिया। इस बार के लोकसभा चुनावों में देश भर में बसपा को एक भी सीट नसीब नहीं हुई। राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा माना जा रहा है कि बसपा पार्टी की मूलभावना से हटकर काम करने लगी। बसपा संस्थापक कांशीराम के फार्मूले को दरकिनार कर पार्टी सुप्रीमों ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग के फामूले पर नए समीकरण तैयार कर लिए। यह समीकरण कैडर के वोटर्स को रास नहीं आए और यही कारण है कि बसपा का कैडर बोट भाजपा के खाते में जुड़ गया।
पार्टी संस्थापक कांशीराम ने बसपा आन्दोलन में अति पिछड़े, पिछड़े और मुसलमानों को जोड़ने का प्रयास किया था. किन्तु पिछड़ों और दलितों के बीच सामाजिक टकराव के कारण यह प्रयोग पूर्ण रूप से सफल नहीं रहा. लेकिन फिर भी अति पिछड़े और मुस्लिम वोटों का एक छोटा प्रतिशत बसपा को मिलता रहा.
मायावती ने पिछड़े वर्गों के मतों में अपने लिए कम संभावना देखते हुए अपने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय को अपनाकर ब्राह्मण, सवर्ण और व्यावसायिक समूहों की सफल गोलबन्दी वर्ष 2007 और 2009 के चुनावों की. इस बार भी उन्होंने इसी फॉर्मूले के तहत 20 ब्राह्मण और 19 मुसलमानों को लोकसभा चुनाव का टिकट दिया, ताकि ये नेता अपने सामाजिक समूहों के वोट लाएं. जो कि कैडर मतों से मिलकर ‘जिताऊ समीकरण’ बना देंगे लेकिन ये नहीं हो सका.
चुनावों में असफलता के कारण
- राजनीतिक विश्लेषक ब्रिजेन्द्र पाल वर्मा चुनावों में बसपा की असफलता पर अपने विचार देते हुए बताते हैं-
- बसपा द्वारा जमीनी स्तर पर किसी भी मुद्दे को लेकर आन्दोलन नहीं चलाया जिससे पार्टी के कैडर वोटर्स सहित कार्यकर्ताओं में निष्क्रीयता रही।
- देश के विकास और सामाजिक स्तर पर कैडर को लेकर कोई स्पष्ट एजेण्डा जनता के बीच नहीं दे सकीं।
- अन्य की तरह मोदी विरोध को ही लक्ष्य करती रहीं जिससे जनता के बीच कोई सकारात्मक संदेंश नहीं पहुॅंच सका।
- राजनैति रैलियों को लेकर उत्तर प्रदेश उपेक्षित ही रहा यहां न्यूनतम रेलियां ही की गई।
- प्रचार के लिए अधुनिक तकनीकी का कोई प्रयोग नहीं।, यही कारण रहा कि मीडिया जनित मोदी का आकर्षण लोगों को अपनी ओर खीचता रहा।
- एक प्रमुख कारण यह भी है आम व्यक्ति का बसपा प्रमुख मायावती से सीधे जुड़ाव न होना। कोई भी व्यक्ति देश के बडे़ से बड़े नेता या बड़े सेलेब्रिटी से मिला सकता है लेकिन बसपा प्रमुख से मिल पाना मुश्किल है।
पार्टी को ये करना होगा
- बसपा सुप्रीमो पार्टी संस्थापक कांशीराम के एजेण्डे पर वापस आए। बसपा को अपनी प्रबृति बदलते हुए पुनः आन्दोलनात्मक कर्रवाई से जुड़ना होगा।
- मायावती को कैडर के लोगों के साथ पिछड़ों और मुसलमानों के साथ सीधा सम्पर्क रखना होगा। लोगों के सामाजिक बदलाव और जरूरतों को समझना होगा।
- लोगों से जुड़ने के लिए आधुनिक संचार माध्यमों का उपयोग करना होगा।
- देश के विकास को समाजिकता को देखकर ऐजेण्डोें को साफ करना होगा।