कानपुर का काली मठिया, जहा विराजमान है माँ काली, वैसे तो यहाँ रोजाना भक्त इनके दर्शन करने को आते है मगर एसी मान्यता है की नवरात्र के समय इनसे मांगी गयी हर मुराद निश्चित रूप से पूरी होती हैए मगर ये किसी भी मुराद या मनोकामना को तभी सुनती है जब भक्त अपने मुराद को एक पर्ची में लिखकर उनके सामने रखे दान पेटी में डाल देते है, जिसके तीन महीने बाद भक्तों की मनोकामना जरुर पूरी होती है। ये कहना है, इस मंदिर के पुजारी सजीव बाबा की और खुद भक्तों की।
यहाँ इस इलाके के बुजुर्गो की माने तो ऐसा कहा जाता है की एक भक्त ने बाद में मिटटी का एक छोटा सा मंदिर बना कर, माँ काली की आराधना किया करता था, मगर उसकी कोई मनोकामना पूरी नहीं हो रही थी, तब उसने हारकर एक पर्ची में अपने मन की बात लिखकर माँ के चरणों में रख दिया और उनकी आराधना करना बंद कर दिया, मगर करीब चार महीने बाद उस युवक की पर्ची में लिखी मनोकामना पूरी होने लगी, जिसके बाद वह जो भी भक्त माँ की पूजा करने आता था तो वो युवक लोगों को चिठ्ठी लिखने की बात कहता था, तब से ये चलन चला आ रहा है।
यहाँ के और लोगों की माने तो उस मट्टी के टीले को हटा कर एक भव्य मंदिर बनाने का प्रयास कई सेठ साहूकारों ने किया मगर कोई सफल नहीं हो पायाएतब 60 के दसक में एक भक्त ने माँ काली के चरणों में पर्ची लिखकर यहाँ मंदिर निर्माण की अपनी इक्क्षा माँ से जताईए उसके तीन साल बाद यहाँ एक मंदिर का निर्माण हो सका, जिसका नाम काली मठिया रखा गया, और इस मंदिर का उदघाटन बद्रिकाश्रम के श्री शंकराचार्य शांतानंद सरस्वती जी महराज द्वारा किया गया।
इसके बाद माँ काली के एक भव्य मूर्ति की भी स्थापना यहाँ की गयीए हांलाकि यहाँ पूजा पाठ कराने वाले पुरोहित की माने तो माँ काली उन भक्तो का भी मनोकामना पूरी करती है जो इस मंदिर प्रागन में एक चुनरी में सात या नौ गाँठ लगाकर जो मुराद माँगते है वो मुराद जरुर पूरा होता है।
कानपुर के शास्त्री नगर के काली मठिया में माँ काली की मूर्ति सौम्य रूप से बिराजी है, सौम्य रूप होने की वजह से इस मंदिर प्रागं में बलि या जीभ चढाने की पाबंदी है। माता का शांत रूप होने की वजह से यहाँ मदिरा चढ़ाना भी मना है।