गौरतलब है कि मंगलवार को बिहार विधानमंडल में मार्च 2013 को समाप्त हुए वर्ष की रिपोर्ट पेश की गई। खाद्य और उपभोक्ता संरक्षण विभाग के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि 2.14 करोड़ क्विंटल धान के खिलाफ 25.58 लाख क्विंटल कस्टम्ड मिलिंग चावल की आपूर्ति नहीं गई। इसके फलस्वरूप सरकार को 433.94 करोड़ रुपये की हानि हुई।
सिंह ने कहा कि यह हानि खाद्य और उपभोक्ता संरक्षण विभाग के नियम का पालन नहीं करने के कारण हुई। नियमानुसार मिल मालिकों को भारतीय खाद्य निगम को 67 क्विंटल चावल उपलब्ध कराना था और उसके बदले राज्य सरकार को सौ क्विंटल धान देना था। कई मामलों में मिल मालिकों को बिना चावल लिए धान दे दिया गया। इसके कारण राज्य सरकार को 433.94 करोड़ रुपये की हानि हुई।
सहकारिता विभाग के बारे में कहा गया है कि फसल बीमा योजना में अनियमितता बरते जाने के कारण राज्य सरकार को 152 करोड़ रूपये की हानि हुई क्योंकि बीमा राशि का भुगतान वैसे लोगों को किया गया जिन्होंने फसल लगाया ही नहीं था। कैग रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2008-09 में बिहार में गेंहू की उपलब्धता जहां 98 प्रतिशत थी, वह वर्ष 2012-13 में घटकर 35 प्रतिशत हो गई। जबकि धान के संबंध में वर्ष 2008-12 में उपलब्धता 100 से 267 थी जो प्रशंसनीय उपलब्धता थी।