यही कारण है कि कम्युनिकेशन के विभिन्न माध्यमों में विजुअल्स को सबसे प्रभावी माना जाता है। यदि आप में कल्पनाशील है और किसी भी वुस्तु, स्थान, पशु-पक्षी को एक अलग (क्रिएटिव) नजरिये से देखते हैं तो फोटोग्राफी आपके लिए सबसे अच्छा रोजगार है। फोटोग्राफी में करियर बनाने और इसमें सफल होने के लिए जरूरी है कि तुलनात्मक रूप से नजर पारखी हो तथा कल्पनाशक्ति मजबूत हो। इसके अलावा कठिन परिस्थितियों में भी हमेंशा बेहतर करने की कला हो।
फोटोग्राफी में करियर बनाने से पूर्व अच्छा होगा की आप इसके इतिहास के बारे में भी जान ले, जिससे आपको इसको समझने में काफी हद तक जानकारी मिल सके। फोटोग्राफी की शुरूआत कब और कहां हुई, कितना लम्बा सफर तय करके यह कला आज की आधुनिक डिजिटल फोटोग्राफी तक पहुँच पाई है।
फोटोग्राफी शब्द दो ग्रीक शब्दों से बना है। च्वे यानी लाइट तथा ळतंचीपं यानी लेखक या रेखांकन। यह नाम सर जान एफ. डब्ल्यू हर्शेल द्वारा दिया गया था। फोटोग्राफी की कहानी आज इस्तेमाल किए जाने वाले कैमरे के अविष्कार से सदियों पूर्व शरू हुई थी। कैमरे का सिद्धांत यानी एक अंधरे कमरे से एक पिनहोल (सुई के नौके के आकार का छिद्र) से प्रकाश का प्रवेश होने पर उसमें बाहरी दृश्य की उल्टी छवि दिखाई देती है।
10 वीं ई. में भी वैज्ञानिकों को यह जानकारी थी। 1604 में एक जर्मन ज्योतिषी जोहनेस कैपलर ने फोटोग्राफी के लिए प्रयोग किए जाने वाला यंत्र का नाम कैमरा “ओब्स क्योर” यानी “अंधेरा कमरा” रखा। उन्होंने ही 1609 में इस यंत्र के सुधार के लिए लैंस का उपयोग सुझाया। विश्व की पहली फोटो (जोसफ नाइसफोर नेप्सी) नामक एक फ्रांसिसी द्वारा खीचीं गई थी। अपने बगीचे की इस तस्वीर को खींचने में उन्हें करीब आठ घंटे लगे थे, और फोटो काफी धुंधली तथा अस्पष्ट थी। उन्होंने यह प्रयास अपने एक मित्र “लूइस जैक्युज मैड डैग्यूरे” ने ही दुनियां भर को इस आविष्कार की जानकारी दी थी। इसी कारण फोटोग्राफी के अविष्कार का सेहरा डैग्यूरे के सिर ही बंधा।
1841 में “विलियम टैलवोट” नामक एक अंग्रेज ने फाटोग्राफी की नेगेटिव एवं पॉजिटिव प्रक्रिया को दुनियां के समक्ष पेश किया। इसका नाम कैलोटाइप रखा गया, इसका अर्थ था “खुबसुरत चित्रांकन”। फोटाग्राफी में सुधार होता गया। 1859 में कई लैंसों वाले कैमरें का अविष्कार की जानकारी दी थी। इसी कारण फोटोग्राफी के अविष्कार का सेहरा डैग्यूरे के सिर ही बंधा।
1841 में “विलियन टैलवोट” नामक एक अंग्रेज ने फोटाग्राफी की नेगेटिव प्रक्रिया को दुनियां के समक्ष पेश किया। इसका नाम कैलोटाइप रखा गया, इसका अर्थ था “खुबसुरत चित्रांकन। फोटोग्राफी में सुधार होता गया। 1859 में कई लैंसों वाले कैमरें का अविष्कार फ्रांसिसी फोटोग्राफर अडोल्फ इयूगैने किया, इससे फोटोग्राफी इतनी लोकप्रिय हो गई कि केवल फ्रांस में ही लगभग 30 हजार लोग फोटोग्राफर बन गए।
1875 में फोटोरोल तथा 1884 में ईस्टमैन रोल होल्डर का अविष्कार हुआ, 1887 में पहली बार मैग्निशियम पाऊडर का प्रयोग फ्लैश लाइट के रूप में किया गया। इसके अगले ही वर्ष जार्ज ईस्टमैन ने (जो न्यूयार्क के एक बैंक का कर्मचारी था) कैमरा कोडैक न.1 को पेश किया यह पहला हाथ में पकड़कर फोटो खिचनें वाला कैमरा था।
1888 में बल्ब के अविष्कारक “थामस अल्वा एडिसन” ने 35 मिलीमीटर फिल्म फॉर्मेट डिजाइन की जो आज भी इस्तेमाल कि जाती हैं। सन् 1900 में 12 फुट लम्बा कैमरा बनाया गया जिससे 36×36 ईंच की फोटो ली जा सकती थी। 1916 में जब पहली डेलाइट लोडिंग फिल्म बाजार में आई तो उसके अगले ही वष्ज्ञ्र दो ऑप्टिकल्स निर्माता जापानी कंपनियों के बीच संधि हुई और निप्पोन कंम्पनी का जन्म हुआ। 1926 में इसी प्रकार जर्मनी की पांच कम्पनियों ने मिलकर जेइस आइकन ए.जी. जिसके कांनटैक्स कैमरा पेश किया, इसके पश्चात लईक नामक कैमरा बाजार में नजर आने लगा, इसी दौरान 1927 में पैनक्रोमैटिक फिल्म भी उपलब्ध हो गई। जैसे-जैसे समय बीतता गया कैमरे का आकार छोटा होता गया, और गुणवत्ता बढ़ती गई।
अब 1937 में रंगीन फोटो भी लोकप्रिय हो गये थे, न्यूयार्क से प्रकाशित होने वाली पत्रिका “संडे-मिरर में पहली बार रंगीन चित्र छपे। बस फिर क्या था फोटोग्राफी का सफर सातवें आसमान पर जा पहूँचा। 1956 में रूसी उपग्रह स्पुतनिक द्वारा (हैंजलब्लैड कैमरे द्वारा भेजे गए पृथ्वी के चित्रों) ने फोटोग्राफी की महत्ता को और अधिक बढ़ा दिया। इन्हीं चित्रों ने यह स्पष्ट किया था कि धरती सपाट नहीं गोल है। ब्रिटेन से फोटोग्राफी की कला को भारत लाने वाले फोटोग्राफरों ने अग्रणी नाम समुएल बार्न (1834-1912) का है। वह तीन बार हिमालय की वादियों और गंगा के स्त्रोत तक गए, वहां लिये गए श्याम-श्वेत चित्रों को उन्होंने बाद में रंगा तो वे चित्रकला का नमूना ही प्रतीत हुए उन्होंने चाल्र्स रॉपर्ड के साथ मिलकर कोलकता, शिमला और मुंबई में स्टूडियों खोलें।
1854 में पहली बार फोटोग्राफी को मुम्बई के एलफिंस्टन कॉलेज में एक नियमित विषय के रूप् में पढ़ाया जाना शुरू हुआ। चम्बा के राजा और जयपुर के महाराजा ने स्वयं फोटोग्राफी के शौक को अपनाया, और कई अन्य शाही व्यक्तियों ने अपने निजी फोटोग्राफर रखें। इस प्रकार विभिन्न राजसी कस्बों व शहरों में फोटोग्राफीक सोसाइटीज में कई भारतीय फोटोग्राफरों ने भी खुब नाम कमाया। इसमें प्रमुख थे मुंम्बई के डा. भाऊ दाजी, बंगाल के राजेन्द्र लाल मित्रा तथा चेन्नई के सी. इयाहस्वामी। इन सभी से अधि कनाम चमका लाला दीन दयाल का जो न केवल भारतीय फोटोग्राफरों में अग्रणी थे बल्कि कई यूरोपीय फोटोग्राफरों से भी अधिक माहिर थे।
जहां एक ओर प्रेस, फैशन और एडवाटाइजिंग फोटोग्राफी को बढ़ावा दिया है, वहीं दूसरी और दिनों – दिन बढ़ रहे औद्योगिक विकास ने इस क्षेत्र में कमर्शियल और इंडस्ट्रीयल फोटोग्राफी जैसे अनेक क्षेत्रों को भी जन्म दिया है। वैसे प्रतिस्पर्धा के इस युग में संघर्ष तो काफी करना पड़मा है। इसके लिए आप अपनी पहचान एक स्वतंत्र फोटोग्राफर के रूप में करें।
एक अच्छा फोटोग्राफर बनने का पहला और प्रमुख गुण होना चाहिए कि वह खुले दिमाग और मुक्त आंखों से फोटोग्राफी करे। यहां गिद्ध जैसी तेज होने के साथ ही साथ धैर्य भी ज्यादा होना चाहिए। फोटोग्राफी सीखने में आप को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, कई जगह फीस काफी ज्यादा होती है, तो कहीं खुद के उपकरण खरीदने पड़ते हैं जिनकी कीमत 1 लाख से लेकर 15 लाख तक हो सकती है।
रोजगार के अवसरः
फोटो की भूमिका प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों में है। कुशल व प्रशिक्षण फोटो जर्नलिस्ट की पहले से ही जरूरत है और आगे भी बनी रहेगी। इस कारण इस क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं। फोटो जर्नलिस्ट लोकल व राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों, चैनलों, मैगजीनों आदि में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं इसके आलावा आप अपना निजी व्यवसाय भी शुरू कर सकते हैं।
संस्थान जहां फोटोग्राफी प्रशिक्षण उपलब्ध हैं:
1. इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
2. नेशनल आर्ट इंस्टीयूट ऑफ फैशन टैक्नालॉजी नई दिल्ली।
3. आशा चन्द्रा सी-6 संगीता अपार्टमेंट, जूहू, मुंबई।
4. फिल्मालय एक्टिंग स्कूलख् अम्बोंली, अँधेरी मुंबई।
5. दीन दयाल उपाध्या गोरखपुर यूनिवर्सिटी, गोरखपुर।
6. पंडित रविशंकर शुक्ला यूनिवर्सिटी, रायपुर।
7. लाइट ऐंड लाइफ एकडेमी, ऊटी, तमिलनाडु।
8. नेशनल इंस्टीटयूट फॉर मीडिया स्टडीज, गांधीनगर।
9. ऐजेके मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर, जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली।