कोयला घोटाले की जांच की प्रगति रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को देने के पहले सरकार को दिखाकर CBI के स्वतंत्र जांच एजेंसी होने पर एक बार फिर सवालिया निशाँ लग गया है। इस मामले में सरकार के साथ-साथ CBI भी बुरी तरह फंसती नजर आ रही है। स्थिति यह हैं कि CBI इन आरोपों को पूरी तरह नकारना नहीं चाहती है। कोयेला घोटाला मामले को लेकर यूपीए सरकार की परेशानियां बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं। 26 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट के सामने इस मामले की जांच कर रही CBI के डायरेक्टर रंजीत कुमार सिन्हा ने सरकार के दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया है। रंजीत का कहना है कि वह कोर्ट में रिपोर्ट दिखाने की गलती को स्वीकार कर लेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने CBI निदेशक को इस सम्बन्ध में ऐफिडेविट दाखिल कर स्थिति को साफ़ करने को कहा है।
मामले की सुनवाई कर रही बेंच ने CBI डायरेक्टर को इस बारे में ऐफिडेविट दाखिल करने को कहा था कि उन्होंने इस रिपोर्ट को न तो किसी के साथ शेयर किया है और न ही ऐसा भविष्य में करेंगे। अब 26 अप्रैल को सीबीआई डायरेक्टर को हलफनामा दाखिल करके कोर्ट को यह बताना होगा कि उन्होंने इस रिपोर्ट को नेताओं के साथ शेयर किया है या नहीं। सूत्रों का कहना है कि सरकार ने सीबीआई चीफ को झूठा हलफनामा देने के लिए मनाने की खूब कोशिशें कीं, लेकिन सिन्हा झूठ बोलकर अपनी मुश्किलें नहीं बढ़ाना चाहते।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में दी गई रिपोर्ट में सरकार के कहने पर बदलाव के आरोपों को CBI निदेशक रंजीत सिन्हा पूरी तरह खारिज नहीं कर रहे हैं। रंजीत अदालत के सामने रिपोर्ट को सरकार को दिखाने की सच्चाई स्वीकार करने का फैसला किया है।
वह कोर्ट में इस बात का खंडन नहीं करेंगे कि लॉ मिनिस्ट्री ने उन्हें कोयला घोटाले की स्टेटस रिपोर्ट डिसकस करने के लिए बुलाया था। 12 मार्च को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के पूछने पर सरकार ने दावा किया था कि सीबीआई ने इस मामले की स्टेटस रिपोर्ट को पॉलिटिकल लीडरशिप के साथ शेयर नहीं किया था। कोर्ट का मानना था कि इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट को सिर्फ जजों के सामने पेश किया जाना चाहिए। कोर्ट की साफ हिदायत थी कि इस रिपोर्ट को नेताओं के साथ शेयर नहीं किया जाए। इस सम्बन्ध में CBI निदेशक 26 अप्रैल को ऐफिडेविट देंगे।
5 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में पेश रिपोर्ट में CBI ने एक लाख 86 करोड़ रुपये के कोयला घोटाले में एक तरफ से सरकार को क्लीन चिट दे दी थी। जांच एजेंसी का कहना था कि 2006 से 2009 के दौरान कोयला ब्लोकों के आवंटन के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों के दावे की जांच की कोई प्रणाली ही नहीं थी। एसे लगभग एक दर्जन कंपनियों के खिलाफ FIR दर्ज कर कार्यवाई की जा रही है । पूरी रिपोर्ट में कहीं भी घोटाले के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया था। ध्यान देने की बात है कि इस दौरान खुद प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के पास कोयला मंत्रालय का प्रभार था।
कोयला घोटला मामला का इस हद तक पहुँचने के बाद अगर सीबीआई डायरेक्टर ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार के दावे के उलट कोई ऐफिडेविट फाइल किया तो यूपीए सरकार के लिए यह बड़ी मुश्किलें खड़ी कर देगी। क्योंकि विपक्ष ने पहले से ही इस मामले को अपना हथियार बना रखा है जिसे लेकर वह पहले से ही हमले कर रही है।