नई दिल्ली : हमारे देश में कई ऐसे अधिकारी है जिन्हें अपनी जान की परवाह नहीं होती, उनके लिए देश ही सबकुछ होता है। जी हाँ राम रहीम के मामले में यह बात साबित भी होती है, जहां एक CBI अधिकारी ने राम रहीम के रसूख को खूंटी पर टांग दिया और उसे उसके कुकर्मो की सजा दिलाकर ही दम लिया।
राम रहीम के खिलाफ जिस तरह से दो साध्वी ने रेप का आरोप लगाया और उसके बाद पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या का राम रहीम पर आरोप लगा, लेकिन इन सबके बाद भी पुलिस ने राम रहीम के खिलाफ FIR नहीं दर्ज की। ऐसे समय में जब यह मामला CBI के पास पहुंचा तो CBI के अधिकारी सतीश डागर वहीं जांबाज अधिकारी साबित हुए जिन्हें रसूख, ताकत और राम रहीम के लिए जनसैलाब का समर्थन डिगा नहीं और उन्होंने राम रहीम को सलाखों के पीछे पहुंचाने में अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया।
उल्लेखनीय है कि रामचंद्र छत्रपति जोकि पेशे से पत्रकार थे और उन्होंने बाबा राम रहीम के काले धंधे और कुरर्म की कहानी को अपने अखबार के जरिए लोगों के सामने लाए थे। अखबार में एक पत्र छापा गया था जिसमें लिखा गया था कि जब दो साध्वी राम रहीम के आश्रम पर शांति के लिए गईं तो बाबा राम रहीम ने उनके साथ रेप किया था। इसके बाद उनकी 24 अक्टूबर 2002 में उनके घर पर प्वाइंट ब्लैंक पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। यह हत्या राम रहीम के खिलाफ साध्वी के साथ रेप की खबर अखबार में छपने के कुछ महीने बाद ही की गई थी।
पिता की हत्या से आहत रामचंद्र के बेटे अंशुल ने पिछले 15 साल से अपने पिता की हत्या के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस पूरी घटना पर मीडिया से बात करते हुए अंशुल बताते हैं कि जब उन्होंने अपने पिता के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ने का फैसला लिया तो इस रास्ते में कई अच्छे लोगों ने उनका साथ दिया।
उन्होंने बताया कि हमारे उपर तमाम तरह के दबाव थे, हमें धमकियां दी जाती थी, बावजूद इसके हम अपने लक्ष्य से डिगे नहीं। वह बताते हैं कि अगर CBI की डीएसपी सतीश डागर नहीं होते तो हमें कभी इंसाफ नहीं मिल पाता और यह मामला इस मुकाम पर कभी नहीं पहुंचता। सतीश डांगर ने ही साध्वियों को समझाया और उन्हें अपनी लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया।
आपको बता दें कि यहां जो सबसे बड़ी चुनौती थी वह यह कि एक रेप पीड़िता साध्वी के ससुराल वाले डेरा समर्थक थे, जब उन्हें इस बात की जानकारी मिली की साध्वी ने राम रहीम के खिलाफ गवाही दी है तो इन लोगों ने उसे घर से निकाल दिया, लेकिन इसके बाद भी साध्वी ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी लड़ाई जारी रखी। अंशुल ने बताया कि सतीश डागर पर बहुत दबाव रहता था, मगर वह कभी भी अपने लक्ष्य से डिगे नहीं, उनके भीतर जबरदस्त और अदम्य साहस है।
अंशुल ने बताया कि जब भी राम रहीम की पेशी होती थी, अंबाला पुलिस लाइन के भीतर ही एसपी के कार्यालय को अस्थाई कोर्ट बनाया जाता था और इस पूरी तरह से छावनी में बदल दिया जाता था, बाहर राम रहीम के समर्थकों का इतना बड़ा हुजूम होता था, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है, बावजूद इसके साध्वी हिम्मत दिखाई और राम रहीम के खिलाफ बेखौफ बयान दिया। उन्होंने कहा कि यह आसान नहीं था, वह भी तब जब राम रहीम के पास कांग्रेस और भाजपा के बड़े-बड़े नेता मिलने के लिए जाते थे।
उन्होंने कहा जिस तरह से राम रहीम को उसके कुकर्मों का अंजाम आखिरकार भुगतना पड़ा है, उसके पीछे सबसे बड़ा हाथ सतीश डागर का इसलिए भी है क्योंकि जब कोर्ट ने इस मामले को 2003 में CBI को सौंपा था तो डागर ने पीड़ित साध्वी को ढूंढा और उन्हें बयान देने के लिए राजी किया। यह काम इसलिए भी मुश्किल था क्योंकि गवाही ऐसे व्यक्ति के खिलाफ दी जानी थी जिसके सर पर देश की सरकार का हाथ था।