इसके अलावा
CBI ने कानून में संशोधन के बगैर कुछ और स्वायत्तता की मांग करते हुए कहा है कि CBI निदेशक को सरकार के सचिव स्तर का दर्जा दिया जाए, जो सीधे मंत्री के प्रति जवाबदेही हो।
जस्टिस आरएम लोधा की अध्यक्षता वाली पीठ ने पूछा कि CBI नौकरशाही का इतना विरोध क्यों कर रही है। इस पर जांच एजेंसी के वकील अमरेंद्र शरण ने बताया कि वे जो भी प्रस्ताव भेजते हैं, उन्हें वापस कर दिया जाता है और हर प्रस्ताव हेड क्लर्क स्तर से होकर गुजरता है।
CBI निदेशक को सचिव स्तर का दर्जा देने की मांग पर पीठ ने अटार्नी जनरल जीई वाहनवती से स्पष्ट जवाब मांगा। इस पर अटार्नी जनरल ने दो सप्ताह का समय मांग लिया। पीठ ने वाहनवती से यह भी जानना चाहा कि दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैबलिस्मेंट एक्ट में प्रस्तावित संशोधन का क्या हुआ। संसद में कई विधेयक हुए। क्या CBI की स्वायत्तता से जुड़ा कोई विधेयक भी पेश हुआ। वाहनवती ने कहा कि मानसून सत्र में इस तरह का कोई विधेयक नहीं था। लेकिन इस पर प्रक्रिया चल रही है।
पीठ ने कोर्ट की निगरानी ओर उसके निर्देश पर होने वाली जांच में संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के अधिकारी के खिलाफ जांच से पहले सरकार से मंजूरी लेने की अनिवार्यता पर बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
हालांकि सुनवाई के दौरान टिप्पणी में पीठ ने अधिकारियों के खिलाफ सरकार से मंजूरी लेने के कानून को जांच में बाधा बताया। कोर्ट ने CBI को जांच टीम में तीन नए अधिकारी शामिल करने की अनुमति दे दी है।