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केन्द्र और राज्य सरकारों ने वनाधिकार कानून 2006 को बेतहर से लागू ही नहीं किया

 

1पटना।पहली बार कई प्रदेशों के सामाजिक कार्यकर्ता दिल्ली में मिल रहे हैं। दिल्ली में बैठी केन्द्रीय सरकार ने ही वनाधिकार कानून 2006 को संसद से पारित करवाने में अहम किरदार अदा किए। केन्द्रीय सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 नरेगा को लागू करके साल 2009 के आम चुनाव में नरेगा के बल पर चुनाव फतह करने की कोशिश की थी। इसमें कामयाब रही। मगर उसने वनाधिकार कानून 2006 को हथियार बनाकर चुनावी दंगल में कूदा नहीं है। सरकार को मालूम है कि केन्द्र और राज्य सरकारों ने वनाधिकार कानून 2006 को बेतहर से लागू ही नहीं किया है। तो किस मुंह से वोट मांगेंगे।

 खैर, पैक्स के सहयोग से धन्य होकर गैर सरकारी संस्था वनाधिकार कानून 2006 पर कार्य कर रहे हैं। उनके द्वारा सामुदायिक आधारित जन संगठन का निर्माण किया गया है। वैसे लोगों को दिल्ली में बुलाया गया है। छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड,बिहार और मध्य प्रदेश से 1000 वनाधिकार समिति के सदस्य आएंगे। समिति के सदस्य प्रदेशों में संचालित वनाधिकार कानून 2006 के बारे में चर्चा करेंगे। दोस्तों वनभूमि की मांग करने पर जेल की हवा खानी पड़ती है। बिहार के पश्चिमी चम्पारण के बगहा प्रखंड, जमुई जिले के खैरा प्रखंड, बांका जिले के चांदन प्रखंड और गया जिले के मोहन प्रखंड के लोग आपबीती बयान करेंगे। इसी तरह छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और मध्य प्रदेश के लोग भी सुनाएंगे।

 पैक्स के द्वारा वनभूमि पर अधिकार दिलवाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। वह बहुत ही जन कल्याणी है। 13 दिसंबर 2005 के पहले अनुसूचित जन जाति को गैर अनुसूचित जन जाति को 3 पुश्त तक रहना अनिवार्य है। उनको साक्ष्य प्रस्तुत करना पड़ेगा। आवेदन को मुखिया , पंचायत समिति, जिला परिषद स्तरीय कमिटी के द्वारा मंजूरी देकर जिला स्तर पर अंतिम मंजूरी के लिए प्रेषित किया जाता है। इस तरह की प्रक्रिया थकावट और मनोबल तोड़ने वाला साबित है। जिसके कारण वनाधिकार 2006 से लोग लाभान्वित नहीं हो पा रहे हैं।

आशा और शुभकामनाएं है कि आयोजक महानगर दिल्ली के संविधान क्लब, नई दिल्ली में 4 मार्च 2014 को वनाधिकार 2006 पर राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाए है। वह सफल हो। इस बैठक में भाग लेने वाले वन अधिकार समितियों के सदस्यों को सद्बुद्धि मिले। यहां से शक्तिशाली बनकर प्रदेशों में जाकर बेहतर ढंग से कार्य करें और वनाधिकार से वनभूमि पर रहने वाले लोगों को अधिकार दिलवाने में सफल हो सके।