बचपन शब्द सुनते ही हम अपने मन की सुनहरी यादों मॆ कहीं खो जाते हैं. बचपन की कल्पना करने भर से ही एक अजीब सा एहसास होता है और याद आती है हम्जोलियाँ स्कूल और शरारतों की, पर दिनों दिन बढ रही व्यस्तता और आधुनिकता की अंधी दौड़ में माहौल बदल रहा है. इस दौड़ में इलेक्ट्रॉनिक चीजों जैसे स्मार्ट फ़ोन, लैपटॉप, टीवी की लत ने बच्चों और उनके पचपन को अपने कब्जे में इस तरह जकड़ लिया है जिससे वक़्त रहते हम अपने बच्चों को नहीं निकाल पाए तो हमें आने वाले समय में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
बचपन वह दुनिया है जहाँ कूछ भी करने कि आजादी है. कोई फिक्र नही होती ना कोई तनाव ना कोई परेशानी, काम होता है तो सिर्फ खाना पीना खेलना सोना. बचपन कि मस्ती कोई कैसे भूल सकता है. दोस्तों के साथ मिलकर साइकल पर घूमने का आनँद ही कूछ और होता था. हम सबने अपना बचपन ऐसे ही जिया है. लेकिन बात करें आजकल के बच्चों कि तो इन्हें देखकर कहीं न कही एक अफ़सोस एन में होता है.
आखिर क्यों सिमट रहा है इन बच्चों का बचपन-
आजकल के बच्चों का बचपन सिर्फ मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप, टेलीविजन, तक ही सीमित रह गया है. या यूँ कह सकते है कि इन बच्चों के बचपन का अपहरण tv और मोबाइल ने कर लिया है. छोटे से छोटे बच्चे मोबाइल tv मॆ इतने व्यस्त हो चुके है कि बाहर मैदान में खेलना क्या होता है शायद ये भूल गये है. इनका बचपन तो मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप और टीवी के इर्द गिर्द ही घूमता रहता है.
पहले बच्चे शाम होने का इन्तेज़ार करते थे दिन भर परेशान रहते थे कि शाम होगी तो दोस्तों के पास जायेंगे खेलेंगे मस्ती करेंगे साइकल पर घूमेंगे. परंतु आजकल के बच्चों की दिनचर्या बहुत अलग हो गई है. पूरा दिन घर मॆ ही रहते है. बाहर निकलते हैं तो मोटरसाइकल पे इसिलए आजकल के बच्चों ज्यादा बेमार रहने लगे हैं.
छोटी सी उम्र मॆ ही मोटापे जैसी ख़तरनाक बीमारी ने बच्चों मॆ अपना घर बना लिया है. यही कारण है कि आज मासूम बच्चों के प्यारे से चहरे तनाव और उदासी से भरे हैं.
आज आधुनिकता की अंधी दौड़ में प्रतिस्पर्धा का भार इतना बढ़ गया है कि ताज़ी हवा बाग – बगीचे मौज मस्ती क्या होता है ये इन मासूम बच्चों को मालूम ही नहीँ है.
अमेरिकन जर्नल ऑफ इंडस्ट्रियल मेडिसिन के मुताबिक वे बच्चे जो दिन में पांच घंटे से ज्यादा कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठकर गेम खेलते हैं, टैबलेट या स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें अवसाद होने की ज्यादा संभावना होती है.
खेल खुद से होता है बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास
बच्चों के विकास में केलकूद की अहम भूमिका होती है. खेलकूद से दिमाग को काफी कुछ सीखने और विकास का मौका मिलता है. बच्चों को समस्याएं सुलझाने, क्षमता बढ़ाने और अपनी रुचि को समझने का मौका मिलता है. कम खेलकूद से बच्चों में समस्याओं को सुलझाने की क्षमता में कमी आती है. बच्चों को हर घंटे के हिसाब से कम से कम 15 मिनट खेल के मैदान में बिताने ही होते हैं. ऐसा पाया गया है कि खेल के बाद बच्चों का पढ़ाई में काफी ध्यान लगता है.
इसलिए जरुरी है कि बच्चों के माता- पिता अपने बच्चों को घर की चारदीवारी की सुख सुविधाओं से बहार निकाल कर खेलने खुदने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें.
हम सभी यह बात जानते हैं कि शिक्षा का आज के जमाने में बहुत महत्व है लेकिन इसके बीच हमें यह भी ध्यान रखना बहुत जरुरी है कि हम अपने बच्चों के बचपन को नज़रंदाज़ न करें. क्युँकि बचपन कभी भी लौटकर नहीँ आता. आती हैं तो बस बचपन की मीठी मीठी यादें. यदि हम अभी से अपने बच्चों पर प्रतिस्पर्धा का भार डाल दें तो क्या ये उनका बचपन कह लायेगा ? इसिलए बेहतर होगा हम उन्हे कठोर- क्रूर नहीँ बल्कि पंख सा मुलायम मुस्कुराता हुआ बचपन दें ॥
बचपन था तो खोया
नहीं रहा तो रोया
खो गया हैं इन्सान दुनिया कि प्रतिस्पर्धा में इतना
नहीं समझ सकता है कि
उसने क्या पाया और क्या खोया..॥