नई दिल्ली : नेपाल और भारत के संबंध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दोनों लिहाज से बेहद मजबूत हैं। भारत ने नेपाल की हर क्षेत्र में मदद की है और नेपाल भी भारत के साथ अपने रिश्तों को प्राथमिकता देता है। लेकिन हाल के दिनों में चीन की नजर इस रिश्ते पर है और नेपाल के साथ वो लगातार नजदीकियां बढ़ा रहा है।
साल 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने नेपाल का दौरा कर परियोजनाओं का एलान किया था और नेपाल में नई सरकार के बनते ही परंपरा के अनुसार भारत का ही दौरा सबसे पहले करते हैं। लेकिन साल 2016 में ओली ने सार्वजनिक तौर पर भारत की आलोचना करते हुए आरोप लगाया था कि वो नेपाल के ‘आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहा है’। वहीं नेपाल के संविधान गठन के दौरान कई प्रावधानों पर भारत ने अपनी आपत्ति जताई थी।
आपको बता दें कि चीन ने एक बार फिर नेपाल के साथ रणनीतिक साझेदारी बढ़ाने वाला कदम उठाया है जिससे भारत की चिंताएं फिर बढ़ गई हैं। चीन ने शुक्रवार को नेपाल को व्यापार के लिए अपने चार बंदरगाह व तीन लैंडपोर्ट का उपयोग करने की अनुमति दे दी। बंदरगाह विहीन देश नेपाल की भारत पर निर्भरता को कम करने के लिए तीसरे देश के तौर पर उभरने को चीन की यह चाल मानी जा रही है। नेपाल के विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि हिमालयी राष्ट्र अब चीन के शेनजेन, लिआनयुनगांग, झांजिआंग और तियांजिन बंदरगाहों का इस्तेमाल कर सकेगा।
इससे पहले चीन नेपाल की राजधानी काठमांडू तक रेल नेटवर्क बिछाने तैयारी में लगा हुआ है। रेल की लाइन शुरू करने को लेकर चीन की राजदूत यू हांग ने कहा था कि नेपाल की सरकार का अनुरोध स्वीकार करते हुए हमने सीमा पार रेल नेटवर्क बिछाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए है। इसके लिए फिजीबिलिटी अध्ययन (सर्वे) भी शुरू किया गया है। चीन की ये योजना तिब्बत के स्वायत्तशासी शीगेत्स से जीरांग तक रेल नेटवर्क को 2020 तक बनाना है। नेपाल चाहता है कि 174 किलोमीटर लंबी रेललाइन विस्तार काठमांडू तक कर दिया जाए।
जबकि भारत-नेपाल पहले ही 14 रेललाइनों की मंजूरी दे चुके हैं। इसके अलावा भारत ने नेपाल को व्यापार के लिए 27 बॉर्डर प्वाइंट प्रयोग के लिए दे दिये हैं, जबकि नेपाल को चीन सिर्फ एक या दो बॉर्डर प्वाइंट ही देता था। लेकिन अब चीन,नेपाल को व्यापार के लिए और बंदरगाह देने जा रहा है जो नेपाल की बदलती प्राथमिकताओं की ओर इशारा करता है।
दरअसल नेपाल का संविधान लागू होने के बाद भारत ने पड़ोसी देश पर एक आर्थिक नाकेबंदी लगाई जिसे लेकर नेपाल में भारत विरोधी माहौल बना। ओली जिन्हे पहले ही चीन समर्थक बताया जाता है इन भावनाओं के साथ अपना जुड़ाव दिखाने लगे और उन्होंने एक वैकल्पिक स्रोत के तौर पर चीन के साथ व्यापारिक समझौते पर दस्तख़्त किए। ये समझौता चीन के लिए भारत के प्रभुत्व को रोकने के लिए बेहतरीन मौका बन गया और भारत के लिए चिंता की बात।
जानकारों का मानना है कि इधर नेपाल और भारत के राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों में काफी उतार-चढ़ाव आए जिससे बीते 10-12 साल में नेपाल में भारत काफी अलोकप्रिय हुआ है। नेपाल के कुछ राजनैतिक दल भारत पर आरोप लगाते हैं कि वो नेपाल की राजनीति को माइक्रो मैनेज कर रहा है। इसलिए भारत के हस्तक्षेप को नेपाल के लोग अच्छा नहीं मानते हैं। नेपाल ने बड़ी चतुराई से भारत के असर को कम करने के लिए चीन को महत्व देना शुरू कर दिया है।
चीन की रेल कूटनीति से बढ़ रही नेपाल से नजदीकियां
नेपाल ने चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना पर दस्तख़्त किए हैं,जिससे चीन के साथ नजदीकी बढ़ जायेगी। नेपाल ने भारत के आर्थिक नाकेबंदी के वक़्त चीन का रुख किया और उस कठिन परिस्थिति में उसे समर्थन का विश्वास मिल गया। चीन नेपाल के साथ रेल संपर्क को तिब्बत से लेकर लुंबिनी तक ले जाना चाहता है।
लेकिन नेपाल के भारत के साथ संबंध का आयाम चीन के साथ संबंध से अलग है ये भूगौलिक नजदीकी के साथ सांसकृतिक समानता को भी लिये हुए है । लेकिन जिस तरह से चीन एशिया पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने के लिए और भारत पर दबाव बनाने के लिए पाकिस्तान,बांग्लादेश और श्रीलंका को मदद दे रहा है वो आने वाले समय में भारत की मुश्किलें बढ़ा सकता है। इसलिए जरूरी है कि भारत अपने छोटे पड़ोसी देशों से बेहतर और भरोसेमंद रिश्ता कायम रखते हुए आगे बढ़े।