केन्द्रो में मात्र एक फोन है अगर कहीं खराब हुर्इ तो भगवान ही मालिक है, ग्रीह रक्षकों की सहायता से गाडि़यो का परीचालन कराया जाता है विभाग में अगिक (फायर मैन) की भी काफी कमी है स्थानिय स्तर पर जिलों में न तेल भरने कि व्यवस्था है न ही गाड़ी में खराबी आने पर ठीक कराने का ऐसे में आपदा से लड़ने को हमेशा तैयार रहने वाला विभाग खुद बदहाल है।
आग लगने कि सूचना के बाद विभाग द्वारा चालक और पानी भरने कि व्यवस्था की जाती है ऐसे में शहरों में तो कभी कभार थोड़ी देर में फायर बि्रगेड की गाड़ी पहूँच भी जाती है। लेकिन सुदूर देहात या दूर दराज के गांवो में आग लगने के बाद घटनास्थल पर गाड़ी के पहूँचने से पहले सब कुछ जल कर खाक हो जाता है।
ऐसे में सरकार कि नजर इस विभाग पर क्यों नहीं पड़ रही क्यों हार्इटेक युग में भी लोगों को विभागीय सुविधा का लाभ ठीक ढंग से नहीं मिल पा रहा यह खुद अपने आप में एक उलझी हुर्इ पहेली बनेर रह गर्इ है। जो इस सुसाशन की सरकार में झुलझती हुर्इ नजर नहीं आ रही है।