भारत घोटालों में सबसे अधिक तेजी से प्रगति करने वाला देश है – इसे भी सभी भ्रष्ट नेताओं को सार्वजानिक कर ही देना चाहिए ताकि नागरिक अपनी एक और उपलब्धि पर गर्वान्वित हो सके।
हालांकि भारत ने घोटालों में रिकॉर्ड कायम करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है, न जाने कितने ही घोटाले देश में हुए। उनमे से कुछ सामने आये तो बात दूर तक गई, वरना न जाने ऐसे कितने ही
घोटाले हुए होंगे और कितने ही होने वाले हैं, आजादी से अब तक देश में काफी बड़े घोटालों का इतिहास रहा है। आइए नजर डालते है हमारे देश के ऐसे ही कुछ बड़े घोटालों पर जिनके कारण भारत भ्रष्टाचार और घोटालों के लिए विश्व विख्यात हो चुका है।
भारत के प्रमुख आर्थिक घोटाले:
बोफोर्स घोटाला- 64 करोड़ रुपये
यूरिया घोटाला- 133 करोड़ रुपये
चारा घोटाला- 950 करोड़ रुपये
शेयर बाजार घोटाला- 4000 करोड़ रुपये
सत्यम घोटाला- 7000 करोड़ रुपये
स्टैंप पेपर घोटाला- 43 हजार करोड़ रुपये
कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला- 70 हजार करोड़ रुपये
2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला- 1 लाख 67 हजार करोड़ रुपये
अनाज घोटाला- 2 लाख करोड़ रुपए ;अनुमानितद्ध
कोयला खदान आवंटन घोटाला- 192 लाख करोड़ रुपये
राजनीति में घोटाला या घोटाले की राजनीति:
राजनीति में घोटाला या घोटाले की राजनीति कुछ भी कह लीजिए। भारतीय राजनीति में घोटाला शब्द तो एक अहम हिस्सा बन गया है, नेताओं का शायद ही कोई ऐसा काम हो जो बिना घोटाले और तीन तीगडम के बिना पूरा हो जाए। वैसे देखा जाए तो यह बात कोई नई नहीं है जब राजनेताओं द्वारा किये गये घोटाले जनता के सामने आ रहे हों, सभी को यह पता है कि हमारे कौन से नेता कितने बिकाऊ हैं और कितने इमानदार। दलाली की इस राजनीति में हर नेता बिकाऊ है बस उसकी कीमत अच्छी मिलनी चाहिए।
2005 में भारत में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा ही किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि 62% से अधिक भारतवासियों को सरकारी कार्यालयों में अपना काम करवाने के लिये रिश्वत या ऊँचे दर्ज़े के प्रभाव का प्रयोग करना पड़ा। वर्ष 2008 में पेश की गयी इसी संस्था की रिपोर्ट ने बताया है कि भारत में लगभग 20 करोड़ की रिश्वत अलग-अलग लोकसेवकों को (जिसमें न्यायिक सेवा के लोग भी शामिल हैं) दी जाती है। उन्हीं का यह निष्कर्ष है कि भारत में पुलिस और कर एकत्र करने वाले विभागों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है। आज यह कड़वा सच है कि किसी भी शहर के नगर निगम में रिश्वत दिये बगैर कोई मकान बनाने की अनुमति नहीं मिलती। इसी प्रकार सामान्य व्यक्ति भी यह मानकर चलता है कि किसी भी सरकारी महकमे में पैसा दिये बगैर गाड़ी नहीं चलती।
किसी को निर्णय लेने का अधिकार मिलता है तो वह एक या दूसरे पक्ष में निर्णय ले सकता है। यह उसका विवेकाधिकार है और एक सफल लोकतन्त्र का लक्षण भी है। परन्तु जब यह विवेकाधिकार वस्तुपरक न होकर दूसरे कारणों के आधार पर इस्तेमाल किया जाता है तब यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आ जाता है, अथवा इसे करने वाला व्यक्ति भ्रष्ट कहलाता है। किसी निर्णय को जब कोई शासकीय अधिकारी धन पर अथवा अन्य किसी लालच के कारण करता है तो वह भ्रष्टाचार कहलाता है।
भ्रष्टाचारियों ने लूटी देश की इज्जतः
यहां अगर हम यह कहते हैं कि सभी नेता चोर (भ्रष्ट) हैं तो सबको यह बात हजम नहीं होती है। लेकिन अधिकतर नेता भ्रष्टाचार में लिप्त है, क्योंकि लगभग जितने भी स्टींग आपरेशन और एकत्र आंकड़ों तो यही साबित करते हैं कि अधिकतर नेता बलात्कारी हैं- भ्रष्टाचारी हैं। बलात्कार यानी देश की प्रतिष्ठा और मान सम्मान के साथ बलात्कार करने वाले अपराधी। अभी तक देश में हुए जिनते भी घोटाले सामने आए हैं उसमें भी अधिकतर नेता ही शामिल हैं। आम जनता कहां हैं? वह तो सिर्फ बलात्कार की शिकार होती आ रही है। उसकी तो रोज इज्जत दुनिया के सामने निलाम रही है। यदि देश का हर नागरिक भारत है तो यकीनन उसकी इज्जत हर रोज लूट रही है, और हर नागरिक बलात्कार का शिकार है।
सही अर्थों में देखें तो घोटाले दर घोटाले कर हमारे देश में नये कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इस नए कीर्तिमान की बदौलत ही हम दुनिया के सबसे भ्रष्टत्तम देशों में शुमार हो चुके हैं। दुनिया के सामने हमारी जो किरकिरी हुई है, वह अलग से। सवाल यह है कि भारत में घोटोलों का यह सिलसिला थमता क्यों नहीं? लेकिन, जो भी है हमारे सामने ही है। हमारे देश में सबसे अधिक भ्रष्टाचार में संलिप्त होने वाले लोग ये ही हैं, जो भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अपने पदों पर नियुक्त हैं।
वह चाहे नौकरशाह हो, नेता हो या फिर खुद सरकार। सिर्फ न्यायपालिका की बदौलत हम भ्रष्टाचार पर कितना काबू पा सकेते हैं? भ्रष्टाचारिष्यों के दिन प्रतिदिन बढ़ते मनोबल और आए दिन नये घोटालों ने सोचने पर मजबूर कर दिया है। लोकतंत्र में सभी की स्वतंत्रता इसकी विशेषता है, लेकिन भारतीय लोकतंत्र में भ्रष्टाचार की छूट सबसे बड़ी और शर्मनाक पहचान बनती जा रही है। घोटालों में आयी इस रफ्तार के पीछे कई कारण दिखते हैं। सबसे पहला कारण नजर आता है वह है नैतिक पतन। हम दुनिया के विकसित देशों से हर चीज उधार ले रहे हैं, और इस उधार लेने की अंधी प्रवृति में हम वह चीजे भी ले रहे हैं जो हमारे पास उनसे कहीं अधिक समृद्ध है।
भारत शुरू से ही धर्म-नियमों पर चलने वाला देश है। देश के नागरिक जन्म से ही इस बात में विश्वास करने वाले रहे हैं कि चोरी पाप है, किसी का हक छीनना बुरी बात है। ईश्वर है और वह हमारी तरफ हर पल देख रहा है। हमारी कोई भी बुराई उससे छुपी नहीं है और हमारी सजा भी वह तय करता है। हमारी इस सोच से हमारा नैतिक बल तो बढ़ता ही, हमारा चरित्र – बल भी सभी देशों से अधिक रहा। जब तक यह मान्यता, यह सोच, यह परंपरा चलती रही तब तक हम दुनिया में सबसे अधिक सभ्य, संस्कृत, चरित्रवान नागरिक थे। लेकिन जैसे ही हम पर पश्चिमी आधुनीकरण का भूत सवार हुआ हमारी यह समृद्धशाली सोच, परंपरा कहीं पीछे छूटती चली गई।
आज यह हमसे इतनी दूर जा चुकी है कि हम पलटकर चाहने पर भी उसके नजदीक नहीं जा सकते। हम आधुनीकरण के दौर में इतने आगे निकल चुके हैं, निकलते जा रहे हैं कि हम पश्चिमी देशों से भी अधिक असभ्य होते जा रहे हैं। जितनी तेजी से हमारा भौतिक विकास हो रहा हैं, उससे भी कहीं अधिक तेजी से हम नैतिक भ्रष्टाचार की ओर अग्रसर हो रहे हैं। हमारे नेता, हमारे नौकरशाह भी इससे अछूत नहीं। अब भ्रष्टाचार अधिकार का रूप ले चुका है। यह कितनी हद तक बढ़ चुका है इसका अंदाजा देश के एक मजदूर से लेकर एक बड़े रसूख वाले व्यक्ति तक को है।
हर नागरिक या तो भ्रष्टाचार का शिकार है या फिर खुद भ्रष्टाचार में सहभागी बन चुका है। एक किसान को कर्ज लेने में भी घूस देना पड़ता है- इससे अधिक शर्म की बात और क्या हो सकती है? एक तो कर्ज, उसमें भी घूस? एक आम किसान ही, क्यों, देश का सबसे धनी व्यक्ति भी भ्रष्टाचार का कितना बड़ा शिकार है, इस बात से तो हम सभी अच्छे से वाकिफ हैं।
अब भ्रष्टाचार करते समय हममे यह भावना कभी नहीं आती, कि ऐसा करना गलत है, पाप है। अब तो इसे छुपाकर भी नहीं करना पड़ता। भ्रष्टाचार कुछ लोगों का व्यवसाय बना चुका है तो कुछ लोगों के ख्याति का जरिया। यानी, भ्रष्टाचार अब वह सबकुछ दे रहा है जो बड़ी मेहनत के बाद भी प्राप्त करना मुश्किल होता है। अब जनता भी जानती है कि चुनाव लड़ने वालों का मकसद क्या है। ‘ये पब्लिक है सब जानती है’ लेकिन शायद, कुछ भी नहीं जानती। पब्लिक के जानने से भी आगे बहुत कुछ है जो ये भ्रष्ट नेता करते हैं, सरकारे करती हैं। यदि ऐसा नहीं है तो भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?
यदि एक लड़की का बलात्कार होने पर पूरे देश के नागरिकों का खून खौल उठता है, तो फिर पूरे देश की प्रतिष्टा के साथ बलात्कार करने वालों की सजा क्या है? और इन्हें सजा क्यों नहीं मिलती? आप कहेंगे मिलती है। लेकिन, क्या यह वैसी होती है जितना के सवा अरब लोगों के साथ बलात्कार करने की सजा होनी चाहिए? पूरी दुनिया में हमारी प्रतिष्ठा खत्म हुई, हम शर्म से डूब मरे, क्योंकि यह भी तो बलात्कार जैसा ही है।
देश आए दिन होने वाले घोटालों की संख्या यूँ बढ़ रही है कि अब तो घाटाले याद भी नहीं रहते हैं। लेकिन क्या इस मामले में किसी को फांसी हुई? यदि फांसी मानवाधिकार के खिलाफ है, तो क्या किसी भ्रष्टाचारी की देश की नागरिकता समाप्त की गई? क्या ऐसे लोगों को देश का नागरिक बने रहने का अधिकार है, जो देश की ही इज्जद को निलाम कर ऐशो-आराम की जिन्दगी जी रहे हैं? भारत की जनता तो शुरू से ही सहनशील रही है, लेकिन क्या इतना सबकुछ होने के बावजूद अब भी उसे सहना ही चाहिए? हमें लगता है कि सारी सीमाएं अब पार हो चुकी हैं। जनता को अपनी ताकत का अहसास करा ही देना चाहिए।
हम यह भी नहीं कहते कि जनता अहिंसक बन जाए, वह अहिंसायुक्त ही रहे, लेकिन अब कम से कम अपनी सहनशीलता तो तोड़ ही दे। आखिरकार कब तक हम अपनी इज्जत खुद ही लुटाता हुआ देखते रहेंगे। अपनों या अपनी लूटती इज्जत को बचाने के लिए हमें खड़ा होना ही पड़ेगा। जब तक जनता जागृत नहीं हो जाती, भ्रष्टाचारियों का मनोबल बढ़ता ही जाएगा और हमारी-जनता की इज्जत लूटती रहेगी।
भ्रष्टाचार भारत के महाशक्ति बनने में रोड़ा:
यह सच है कि भारत महाशक्ति बनने के करीब है परन्तु हम भ्रष्टाचार की वजह से इस से दूर होते जा रहे है। भारत के नेताओ को जब अपने फालतू के कामो से फुरसत मिले तब ही तो वो इस सम्बन्ध मे सोच सकते है उन लोगो को तो फ्री का पैसा मिलता रहे देश जाये भाड मे।भारत को महाशक्ति बनने मे जो रोडा है वो है नेता। युवाओ को इस के लिये इनके खिलाफ लडना पडेगाए आज देश को महाशक्ति बनाने के लिये एक महाक्रान्ति की जरुरत है, क्योकि बदलाव के लिये क्रान्ति की ही आवश्यकता होती है लेकिन इस बात का ध्यान रखना पडेगा की भारत के रशिया जैसे महाशक्तिशाली देश की तरह टुकडे न हो जायेए क्योंकि अपने को बचाने के लिये ये नेता कभी भी रुप बदल सकते है।
भ्रष्टाचार पिछड़ेपन का द्योतक है। भ्रष्टाचार का बोलबाला यह दर्शाता है कि जिसे जो करना है वह कुछ ले.देकर अपना काम चला लेता है, और लोगों को कानों-कान खबर तक नहीं होती। और अगर होती भी हो तो यहाँ हर व्यक्ति खरीदने और बिकने के लिए तैयार है। गवाहों का उलट जानाए जाँचों का अनन्तकाल तक चलते रहनाए सत्य को सामने न आने देना . ये सब एक पिछड़े समाज के अति दुरूखदायी पहलू हैं। अत: भ्रष्टाचार और असमानता की समस्याओं को रोकने में हम असफल हैं। यही हमारी महाशक्ति बनने में रोड़ा है।