अगर हम बेटियों की बात करें तो आज जहां एक तरफ कुछ बेटियां प्रगति हर क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाकर अपनी पहचान बना रही हैं। तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी बेटियां भी है जो आसमान तक पहुंचना तो दूर की बात है, उन्हें जमीन पर आने से पहले ही मार दिया जाता है और अगर वह गलती से धरती पर आ भी जाती हैं तो उन्हें
समाज का एक तबका ऐसा महसूस करवाता है जैसे वह इस धरती पर बोझ बनकर रह रही है।
कहते है कि बेटियां पराया धन होती हैं लेकिन बेटी पराया धन तो तभी होगी अगर उसे इस संसार में अपना बनाया जाएगा। क्योंकि बिना किसी को अपना बनाए उसे पराया नहीं किया जा सकता। अधिकांश लोग बेटी को कोख में ही मार देते हैं। जो कि कानूनी अपराध भी है लेकिन कानून से कौन डरता है। लोग बेखौफ लिंग जाँच करवाते हैं। अगर कोई माँ लिंग जाँच किए बिना बेटी को जन्म देती है तो बेटी के जन्म से खुश न होकर उसे रेलवे ट्रैक, कूड़ेदान या झाडि़यों के बीच फैक दिया जाता है।
क्या बेटी होना ही सबसे बड़ा गुनाह है। एक माँ इतनी बेदर्द कैसे हो सकती है। जो अपने कलेजे के टुकड़े को इधर-उधर मरने को फैंक दे। उस मासूम का क्या कसूर जिसने अभी ठीक ढंग से अपनी आंखे ही नहीं खोली है। अगर लड़कियों की जन्म दर पर भी नजर डाले तो वह प्रतिवर्ष कम हो रही है। जो कि बहुत ही चिन्ता का विषय है।
माँ को ये नहीं भूलना चाहिए कि वो भी कभी बेटी थी और बेटियों से ही संसार बनता है। बेटियाँ सृष्टि का अनमोल उपहार है, परमेश्वर अपने बच्चों को पालने के लिए हर जगह स्वयं उपस्थित नहीं हो सकता, इसलिए उसने ’माँ’ को बनाया। ताकि वह अपनी संतान के साथ पूर्ण न्याय कर सके। लेकिन समय के साथ-साथ माँ आधुनिक हो गई, उसका स्नेह, उसका दुलार, त्याग, समपर्ण सभी कुछ आधुनिकता की भेंट चढ़ गया। ऐसे में सर्वाधिक उपेक्षित हुई ’कन्या संतति’ जिसको जन्म देने के साथ ही जिम्मेदारियां दोगुनि हो जाती हैं। बेटी को संस्कारवान, ज्ञानवान बनाने में ’माँ’ की भूमिका अहम् होती है। लेकिन बदलते समाज में मूल्यों के साथ-साथ सोच बदल गयी। युग अर्थप्रधान हो गया। बेटी ब्याहने के लिए मात्र संस्कारों और ज्ञानवान होना काफी नहीं है।
गाड़ी भर कर धन चाहिए, कहीं न कहीं ब्याह में आने वाली दिक्कतें भी उसके असमय मरण का कारण बन रहे हैं। दहेज के दानव ने लालची लोगों के हौसले तो बढ़ाये ही साथ ही बेटी को भी बलि की वेदी पर चढ़ा दिया जाता है। आज बेटियों को कहीं जन्मते ही मार दिया जाता जो बच जाती हैं उन्हें दहेज की बलि चढ़ा दिया जाता है। बेटियों पर बढ़तें अमानुषिक अत्याचार संवेदनहीन समाज और सृष्टि के अंत की ओर इशारा कर रहे हैं। यदि समय रहते सचेत नहीं हुए तो एक दिन बेटियों का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। आज प्रकृति ईशारा कर रही है लेकिन कल अंत करने में देर नहीं लगायेगी।