अब आलम यह है कि ये सब-वे शराबियों और अपराधियों का अड्डा बन कर रह गए हैं। यहां लोग हाथ में शराब लिए खुलेआम दिखाई देते हैं। सड़क पर दुर्घटना होने का एक प्रमुख कारण सब-वे का उपयोग न होना ही है। इसकी देख-रेख का जिम्मा इस समय लोक निर्माण विभाग को दिया गया है। विभाग के प्रवक्ता दीपक पंवार का यह कहना है कि जरूरत पड़ने पर ठेके के कर्मचारियों से सफाई करवाई जाती है। जब उनसे यह पूछा गया कि कितने दिनों में इसका निरीक्षण नहीं हुआ है तो उनका इस बात पर कोई जवाब नहीं आया।
राजधानी में 50 से अधिक सब-वे बन जाने के बाद भी आलम यह बना हुआ है कि आज लोग इनका इस्तेमाल करने से डरने लगे हैं। इनमें से काफी सब-वे को इसलिए बंद करना पड़ा है क्योंकि वहां आपराधिक वारदातें होती रही हैं। पुलिस प्रवक्ता राजन भगत का यह कहना हैं कि गश्त के दौरान पुलिस जरूरत पड़ने पर जांच भी करती है, लेकिन मौजूदा हालत में सब-वे की स्थिति ठीक नहीं है।
दिल्ली के लोक निर्माण मंत्री राजकुमार चैहान ने तो यह भी कह दिया कि सरकार अब शहर में और सब-वे नहीं बनाएगी। उनका कहना यह है कि इसको बनाना तो मुश्किल है ही, देख-रेख करना उससे भी मुश्किल काम है। उनका कहना यह भी है कि सब-वे को जिन सकारात्मक उद्देश्यों के लिए बनाया गया था, वह पूरा नहीं हो सका।
राष्ट्रमंडल खेलों से पहले नई दिल्ली नगरपालिका परिषद ने कनॉट प्लेस के सर्किल में आठ नए सब-वे बनाने का प्रस्ताव किया था। लेकिन बने हुए सब-वे की देखरेख सही तरीके से नहीं होने पर प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। दिल्ली के सब-वे से गुजरना खतरनाक है। कहीं लाइट नहीं है तो कहीं इतनी गंदगी है कि उसमें पैर रखने पर अफसोस होने लगता है।
कनॉट प्लेस से लेकर शहर के अन्य हिस्सों में जगह-जगह बनाए गए सब-वे नशेडि़यों, भिखारियों और झपटमारों के अड्डे बन गए हैं। मुख्य दरवाजे से लेकर अंदर तक ड्रग्स पीने वाले जहां-तहां बदहवास होकर पड़े रहते हैं। राजधानी के सब-वे महिलाओं के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं हैं। उनकी सुरक्षा के ख्याल से सब-वे बेहद खतरनाक हैं। कुछ जगहों पर तो सरकारी एजेंसियों ने निजी सुरक्षा गार्ड भी खड़े किए हैं, लेकिन हकीकत यह है कि भिखारियों व नशेडि़यों के डर से सुरक्षा गार्ड भी मौका पाकर वहाँ से खिसक जाते हैं।
दिल्ली सरकार ने पिछले दिनों शहर के कुछ सब-वे में बनी दुकानें खादी भंडार के लिए आवंटित किए हैं। सरकार की दलील है कि दुकानें खुल जाने से इनकी देख-रेख की समस्या सुलझ जाएगी। बाजार हो जाने से चहल-पहल भी रहेगी। लेकिन विडंबना देखिए की वर्तमान स्थिति को देखते हुए कोई यहां दुकान लेना नहीं चाह रहा है।
पश्चिमी दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में बने सब-वे पर कहीं ताला लगा हुआ है तो कहीं अव्यवस्था का आलम है। मोतीनगर सब-वे में दिन में भी अंधेरा रहता है। टैगोर गार्डन व जनकपुरी का सब-वे बंद है तो तिलकनगर सब – वे की स्थिति बद से बत्तर हो गई है। सब-वे से गुजरने पर डर लगता है। सबसे बड़ी समस्या नशेडि़यों से होती है। सुनसान व अंधेरे का फायदा उठाकर वे यहां जमघट लगाए रहते हैं। महिलाओं के लिए तो यह कतई सुरक्षित नहीं है।
बाहरी दिल्ली के विभिन्न इलाके में पैदल चलने वालों के लिए सड़कों के नीचे सब-वे वर्षो पूर्व बनाए गए थे। स्थिति खराब होने लगी तो पैदल चलने वालों ने सब-वे का इस्तेमाल करना छोड़ दिया है। यही वजह रही है कि किंग्जवे कैंप आदि जगहों पर सब-वे को तोड़ कर हटा दिया गया। सब-वे की आउट गेट की रेलिंग टूटी हैं। इमरजेंसी लाइटें भी कई वर्षो से खराब पड़ी हैं। बारिश के दिनों में इसमें पानी भर जाता है। यहाँ के लोगों को यह कहना है कि यहां नियमित रूप से कोई सफाई कर्मी व सुरक्षा कर्मी तैनात नहीं रहता है। इसमे शौचालय सहित अन्य सुविधाओं की कमी भी है।
उन्होंने इस समस्या को लेकर दिल्ली सरकार के अधिकारियों को दो जनवरी 2013 को पत्र भी लिखा है। लेकिन कोई हल नहीं निकला है। सब-वे के बाहर भी गंदगी के अंबार लगे है और ऐसी ही कुछ स्थिति बाहरी रिंग रोड पर बने सब – वे की है। यहां दिन में भी अंधेरा रहता है। जिससे लोग इसका इस्तेमाल कम ही करते हैं।
इन सब- वे को लेकर उठ रहे तमाम सवालों का दिल्ली सरकार के पास कोई भी सटीक जवाब नहीं है। अब यह दिल्ली के सब – वे अपने उपयोग और देख-रेख को लेकर सिर्फ एक सवाल ही बन कर रह गए हैं।