दिल्ली उच्च न्यायालय में जीवेश मनुजा ने अधिवक्ता आर जवाहरलाल के माध्यम से जनहित याचिका दायर की है। याचिकाकर्ता का कहना है कि रक्तदान के बाद रक्त जांच की जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है, उसमें संक्रमण का खतरा अधिक है। मरीज को सवंमित रक्त चढ़ा दिए जाने से न केवल मरीज पर बल्कि इसका प्रभाव उसके परिवार पर भी पड़ता है।
एम्स अस्पताल के ट्रासफ्यमजन चिकित्सा विभाग के सर्वे के मुताबिक, भारत ऐसा देश है, जहां प्रति वर्ष दो से चार प्रतिशत जनसंख्या अर्थात 2.4 करोड़ से 4.8 करोड़ लोग हर वर्ष रक्त संक्रमण के कारण विभिन्न बीमारियों का शिकार होते हैं। एक रिसर्च के अनुसार, विश्व में थैलीसीमिया बीमारी से पीडि़त मरीजों में से 10 फीसद भारत के होते हैं। भारत में प्रतिवर्ष 32,400 बच्चे हीमोग्लोबिनोपैथीस से ग्रस्त पाए जाते हैं। इन्हें हर माह ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है।
भारत में प्रति वर्ष 246 लाख बच्चे हेपेटाइटिस बी, 246 लाख बच्चे हेपेटाइटिस सी और 35 लाख लोग एचआइवी से ग्रस्त पाए गए हैं। ये सब बीमारियां रक्त संक्रमण के कारण हो रही है। याचिकाकर्ता का 26 वर्षीय बेटा भी थैलीसीमिया की बीमारी से पीडि़त हे और उसे प्रति माह तीन से चार यूनिट खून की जरूरत ब्लड ट्रांसफ्यूजन के लिए पड़ती है। हाल ही में दिल्ली सरकार ने 14 मार्च, 2013 को रक्त जांच की प्रक्रिया को लेकर नोटिफिकेशन जारी किया है। इसमें न्यूक्लिक एसिड एम्पलीफिकेशन टेस्ट (एनएटी) को दरकिनार किया गया है।
इस विधि के तहत प्रत्येक रक्तदाता के खून की एकल रूप से जांच की जाती है और संक्रमण का पता लगाया जाता है। यह सबसे उन्नत विधि है। ऐसे में सकरार के नए नोटिफिकेशन को रद की उसमें एनएटी प्रक्रिया को शामिल किया जाए और रक्त संक्रमण के कारण उसके बेटे की हुई बीमारी की ऐवज में उसे सरकार से मुआवजा दिलाया जाए।