16 जून की आधी रात के बाद उत्तराखंड में बारिश और भूस्खलन ने ऐसी भयानक तबाही मचाई कि केदारनाथ से लेकर बदरीनाथ तक पूरे उत्तराखंड का ज़र्रा-ज़र्रा हिल गया। सैंकड़ों लोग मौत के मुंह में समा गए, हजारों लोग ना जाने कहां लापता हो गए। किसी का भाई खोया तो किसी का बेटा, कोई अपनी बहन के लिए रो रहा था तो कोई अपनी मां के लिए, उत्तराखंड ने कुदरत का ऐसा कहर पहले कभी नहीं देखा था। हर तरफ सिर्फ औऱ
सिर्फ तबाही थी, कई राजमार्ग और पुल पानी में बह गए, कई गांवों का तो नामोनिशान ही नहीं रहा।
देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी, रूद्रप्रयाग, चमोली, जोशीमठ और पुरोला में जगह- जगह सड़कों में पानी भर गया। बड़ी-बड़ी इमारतें रेत की तरह पानी में बह गई, नदियां उफान पर थीं बारिश का ऐसा रौद्र रूप देख लोग हैरान और परेशान थे। अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित हुआ, मंदिर की दीवारें को नुकसान पहुंचाए मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा है, “केदारनाथ में इन्फ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह बर्बाद हो गया है। कम से कम एक साल तक केदारनाथ यात्रा शुरू नहीं हो पाएगी। यात्रा चालू होने में दो से तीन साल का वक्त भी लग सकता है।”
कितनी मौतें और कितने लापता ?
उत्तराखंड में बारिश और बाढ़ के बाद आई भयंकर तबाही में ना जाने कितने लोगों की मौत हुई इसके बारे में पूरी जानकारी तो शायद ही कभी मुहैया हो पाए ये बात उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा खुद भी मान चुके हैं। लेकिन तबाही के बाद मौत के आंकड़ों को लेकर कई तरह के दावें किए गए सबसे पहले बिहार सरकार के पूर्व मंत्री अश्विनी चौबे ने 20 हजार लोगों की मौत का दावा किया, चौबे भी इस दौरान परिवार के साथ उत्तराखंड में फंसे हुए थे, सरकार ने मृतकों का आंकड़ा एक हजार बताया लेकिन विधानसभा के स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल ने 10 हजार लोगों के मरने की बात कही जिसे मुख्यमंत्री बहुगुणा ने नकार दिया। सीएम बहुगुणा ने लापता लोगों के बारे में कहा कि अगर लापता लोग 30 दिन में नहीं मिले तो उनकों मृत घोषित कर दिया जाएगा और उनके परिजनों को मुआवजा दिया जाएगा।
राहत और बचाव
तबाही के बाद राहत और बचाव का काम शुरू हुआ। ITBP और भारतीय सेना के जाबांज सैनिक अपनी जान की परवाह किए बिना कुदरत के इस प्रचंड रूप के बीच अपनों को अपनों से मिलाने के लिए निकल पड़ेए कोई जिंदा मिला तो किसी की लाश मिली तो कोई आज तक नहीं मिला। सेना को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ाए कई बाधाएं आईए हेलिकॉप्टर हादसे में 20 जवान शहीद भी हुए लेकिन सैनिकों ने अपना जज्बा कम नहीं होने दियाए सेना और ITBP के जवानों ने उत्तराखंड में अब तक 1 लाख से ज्यादा लोगों को बचाया है। वहीं प्रभावित इलाकों में अब भी 3,000 लोग लापता बताए जा रहे हैं। जिनको बचाने की जदोजहद जारी है।
राजनेताओं के दौरे
तबाही का जाएजा लेने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने हवाई दौरा किया, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और आपदा प्रबंधन मंत्री ने भी बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा किया। इसके बाद तो दौरा करने वाले नेताओं की बाढ़ आ गईए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी बाढ़ प्रभावित इलाकों को दौरा करने गएए जहां राजनेता जाए और वहां राजनीति ना हो ऐसा तो कभी होता नहीं लिहाजा नरेंद्र मोदी ने इसकी शुरुआत कर दी। मोदी ने केदारनाथ मंदिर को फिर बसाने की पेशकश कर बड़ी सियासी चाल चलीए मोदी जानते थे कि वो हारने वाले नहीं है अगर मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी मिली तो भी उनकी जीत है और नहीं मिली तो भी क्योंकि मंदिर के पूर्णनिर्माण पर सहयोग का दावा करने की सियासी चाल में वो सफल साबित हुए।
अगले ही दिन एक निजी अखबार ने बीजेपी नेता के हवाले से दावा किया कि मोदी अपने 15000 गुजरातियों को सुरक्षित निकाल कर ले गए खबर में कितनी सचाई थी। इसका दावा तो किसी ने नहीं किया लेकिन आरोप-प्रत्यारोप का दौर यहां भी जारी था। जब मोदी को लेकर इतना बवाल मचा तो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने भी को लेकर भी बवाल मचना लाजमी थाए आपदा के 7 दिन तक विदेश दौरे में व्यस्त रहे राहुल गांधी विपक्ष के निशाने पर रहेए 7 दिन बाद स्वदेश लौटे और उत्तराखंड गए लेकिन बवाल कम होने की बजाय और ही बढ़ता गयाए राहुल गांधी के दौरे से ठीक एक दिन पहले देश के गृह मंत्री ने कहा कि किसी भी राजनेता को उत्तराखंड के दौरे पर नहीं आना चाहिए। क्योंकि इससे राहत और बचाव के काम में समस्याएं आती हैं, लेकिन दूसरे दिन ही राहुल गांधी उत्तराखंड के दौरे पर गए और प्रभावित लोगों से मुलाकात की। राहुल गांधी पीड़ितों पर जितना मरहम नहीं लगा पाए उससे ज्यादा उनके दौरे पर विपक्ष ने आरोप लगा दिए। राहुल गांधी पर उत्तराखंड दौरे के दौरान ITBP कैंप को खाली करवाकर वहां रात गुजारने का भी आरोप लगा।
क्या है केदारनाथ ?
केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहां की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्या ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्थपरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस भव्य मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था। आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था। केदारनाथ मंदिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं, लेकिन करीब एक हजार सालों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान रहा है।
क्यों आई आपदा ?
केदारनाथ में आई तबाही की वजह थी ये जानना बहुत जरुरी है। अचानक आई भीषण बाढ़ और भुसखलन के पीछे क्या कारण थे। क्या ये कोई कुदरत का कहर था या इंसान की किसी भूल का नतीजा?
धार्मिक कारण
वह क्या वजह थी कि 16 जून की आधी रात को अचानक एक ग्लेशियर फटा और उसी दौरान गौरीकुंड और रामबाड़ा के बीच एक बादल भी फट गया। वह क्या वजह थी कि केदारनाथ के आसपास का सबकुछ तबाह हो गया सिर्फ केदारनाथ के मंदिर को छोड़कर? दरअसल उत्तराखंड सरकार ने 16 जून को शाम छह बजे धारी देवी की मूर्ति को हटाया गया और रात्रि आठ बजे अचानक आए सैलाब ने मौत का तांडव रचा और सबकुछ तबाह कर दिया।
श्रीनगर गढ़वाल क्षेत्र में एक बहुत ही प्राचीन सिद्ध पीठ है जिसे श्धारी देवीश् का सिद्धपीठ कहा जाता हैं, इसे दक्षिणी काली माता भी कहते हैं, मान्यता अनुसार ये देवी उत्तराखंड में चारों धाम की रक्षा करती हैं, इस देवी को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता हैं, बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ मां धारी देवी का मंदिर स्थित हैं, लेकिन नदी पर बांध बनाने के लिए उत्तराखंड सरकार ने धारी देवी के मंदिर को तोड़ दिया और मूर्ति को मूल स्थरल से हटाकर अन्य जगह पर रख दिया
वैज्ञानिक कारण
बीसवीं शताब्दी में पहली बार मानव के कार्यकलापों ने प्रकृति के बनने और बिगड़ने की प्रक्रिया को शुरु किया । पिछले 25 सालों में उसमें तेज़ी आई है। जबसे विकास के आठ प्रतिशत और नौ प्रतिशत वाले विकास वाले मॉडल को अपनाया गया हैं, प्रकृति में मानवीय हस्तक्षेप और बढ़ गया है। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद यहां की नदियों को खोदनेए बांधने, बिगाड़ने और कुरुप करने का काम तेजी से चलने लगा। पहाड़ों को बांधए सड़कए खननए विकास के नाम पर तोड़ा गया और नदियों का प्रवाह बदलने की कोशिश की गई और कई नदियों की धारा को तो मोड़ भी दिया गया।
उत्तराखंड में सरकार चाहे बीजेपी की हो या कांग्रेस कीए लेकिन विकास के नाम पर दोनों सरकारों ने जमकर प्रकृति का बलात्कार किया। उत्तराखंड में असाधारण रूप से सड़कें बनाने, खनन, रेता-बजरी खोदने और विद्युत परियोजनाओं का काम इतना तेजी और अनियंत्रित तरीके से हुआ है कि नदियों ने विकराल रूप ले लिया है।
प्रकृति से खिलवाड़ करने में सरकारें तो सरकारें आम आदमी भी पीछे नहीं था। लोगों ने भी अतिक्रमण के जरिए बहुत सारी जगहों पर नदियों में घुसपैठ की है। बड़े-बड़े घर और होटल बना डाले। कुल मिलाकर एक समाज के रूप में हम भी शत-प्रतिशत ईमानदार नहीं रहे हैं। अब शायद नदियों की दहाड़ कह रही हो कि तुम्हारी सरकारोंए तुम्हारे योजना आयोग और तुम्हारे दलालों और ठेकेदारों से हम अब भी ज़्यादा ताक़तवर और बलशाली हैं।