विस्थापित होते आदिवासी और उन पर गहराते विस्थापन के संकट

कुदरत का एक नियम है , प्रकृति को जो भी हम देते है वह हमें उसी रूप में वापस कर देती है । कुदरत का यह अंदाज सिखाता है जैसा आप कर्म करोगें उसी पर आपका भविष्य निर्भर करेगा ।

भारत जिसे किसानों और वनवासियों का देश कहा जाता है, उस देश के किसानों और वनवासियों की अस्मिता पर खतरे की तलवार बन कर लटक रहा विकास । विकास की आड़ में आदिवासियों से उनके आशियाने तो वर्षो से छीने जा रहे है, साथ ही उनकी मूल सम्पदा “जल ,जंगल, जमीन” उनसे विकास के नाम पर छीन लिया जाता है और उन्हें उन्हीं के हक से प्रशासन और पूंजीपतियों द्वारा वंचित कर दिया जाता है । जिसके कारण वो दर दर भटकने को मजबूर हो जाते है । झारखंड, उड़ीसा, राजस्थान आदि राज्य जो आदिवासिय क्षेत्र है ,उन राज्यों के आदिवासियों आज आपको शहरों में बने फ्लाईओवर ने नीचे मिल जायगे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने झारखंड में मैथन डैम का उद्घाटन एक आदिवासी औरत से करवाते हुए आव्हान किया था कि ये देश के “विकास का मंदिर है” ।

तो क्या आज उस मंदिर के भक्त ही मंदिर से बहिष्कृत कर दिए गए है । जो आज देश के बड़े शहरों में जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर है । जिनके दर्द की चीख शहरों चकाचौंध में भरी दुनिया में खो गई हैं।

अपने घर अपने जंगल अपनी मूल सम्पत्ति के लिए लड़ना आदिवासियों के लिए बहुत मुश्किल हो गया है क्योंकि प्रशासन खुद ही विकास के नाम पर उनकी सम्पति हथिया लेता है और उन्हें बेघर कर उनकी संस्कृति उनकी कौम को नष्ट कर देता है । उनको प्रशासन द्वारा कोई रियासत नहीं बक्सी जाती है । उन्हें मजबूर कर दिया जाता है कि जीवन जीने के लिए शहरों की तरफ पलायन कर ले , और काफी लंबे अरसे से आदिवासियों की जमीन छीनी जा रही है उनके जीने के सारे संसाधन खत्म किया जा रहा है । ये कैसी प्रगतिशीलता की ओर देश बढ़ता जा रहा है जहाँ पूजीपतियों द्वारा और तथाकथित प्रशासन द्वारा गरीबों और मजलूमों पर अत्याचार होता है ।

भारत एक लोकतांत्रिक देश है लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कहती हैं ये बाजाररतांत्रिक देश है प्रगतिशीलता के नाम पर ग़रीबों के मुँह से निवाला छीन कर पूंजीपतियों के पेट भरा जाता है । अगर कोई इनके खिलाफ आवाज उठाता है या अपने जल जगल जमीन को बचाने के लिए खड़ा होता है उसे नक्सली कहकर उग्रवादी कह कर प्रशासन उस खत्म करा देती है । आदिवासियों के जल ,जंगल और जमीन जिसमें बहुमूल्य खाद्य पदार्थ छिपे हैं जिससे हथियाने की पूंजीपतियों के लार टपकते रहते है क्योंकि वो इन जमीनों और जंगलों से बहुत अमीर बन जाते है ,लेकिन इनसे वहाँ के निवासियों घर संस्कृति सब लूट ली जाती है औऱ छोड़ दिया जाता है उन्हें सड़को पर भटकने या मरने के लिए । झारखंड राज्य सभी आदिवासियों से उनकी जमीन छीन ली गई ,आज किसी को नहीं मामूल वो लोग कैसे जीते है और वो कहाँ गए ।