इन दिनों भाजपा और जदयू में चल रही गरमा -गरमी अब खुलकर सामने आ गई है दोनों ही अब आर-पार के मूड में आ गए हैं। भारतीय जनता पार्टी और जनता दल का 17 साल पुराना रिश्ता टूटता लगभग तय हो होता दिख रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने परोक्ष रूप से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर आक्रामक तेवर अपनाए तो भाजपा ने भी जदयू को बता दिया कि नरेंद्र मोदी के नाम पर कोई समझौता करना नहीं चाहती है। नीतीश ने मोदी पर सीधा वार करते हुए उनके मॉडल और उनकी पीएम पद की उम्मीदवारी को खारिज किया। जवाब में भाजपा ने इसे ’दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए जदयू को यह याद दिलाने में देर नहीं लगाई कि वह भाजपा मुख्यमंत्री पर निशाना साधने की बजाय संप्रग को हटाने में ध्यान लगाए।
भाजपा को प्रधानमंत्री उम्मीदवार तय करने के लिए जदयू ने डेडलाइन तो इस साल के अंत तक की रखी है, लेकिन दूरी का माहौल अभी से बनने लगा है। दरअसल, बिहार में राजनीतिक और जातिगत समीकरण समीकरण को साधने के लिहाल से नीतिश और जदयू ने मोदी और उनके मॉडल को कठघरे में खड़ा किया था। लेकिन मोदी को सबसे लोकप्रिय नेता करार देती रही भाजपा और उसके नेताओं को भी राजनीतिक कारणों ये यह मंजमर नहीं था। दोनों दलों के बीच बढ़ रही दूरी को रविवार करे नीतीश के बयानों ने और बढ़ा दिया।
नीतीश ने यूं तो भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरूण जेटली से मुलाकात कर बातचीत की थी। लेकिन मोदी पर अनावश्यक आक्रमण भाजपा नेताओं के लिए असहनीय था। लालकृष्ण आडवाणी के आवास पर एक बैठक बुलाई गई थी जिसमें राजलाथ, जेटली समेत सुषमा स्वराज भी थीं। बैठक का एजेंडा कुछ और था। लेकिन चर्चा नीतिश के बयानों पर हुई और फिर पार्टी की ओर से बयान जारी कर जदयू को प्यार भरी झिड़की दे दी गई। उन्हें याद दिलाया गया कि लड़ाई भाजपा बनाम जदयू नहीं, बल्कि राजग बनाम सप्रंग होनी चाहिए।
नीतीश की आलोचना के बाद यह साबित हो गया कि भाजपा चाहे -अनचाहे भी मोदी को नजरअंदाज नहीं कर सकती है। ध्यान रहे कि नीतीश ने रविवार को दिये अपने एक भाषण में एक बार कांग्रेस का नाम जरूर लिया, लेकिन वर्तमान संप्रग सरकार के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा। उनका भाषण मुख्यतः मोदी के आसपास ही रहा। केन्द्र में राजग सरकार बनाने की बात तो कही, लेकिन संप्रग की आलोचना न करना भाजपा को अखरा। दूसरी तरफ नीतीश शायद पहले ही मन बना चुके थे। तेजतर्रार नीतीश को इसका अहसास है कि बिळार में उनका वोटबैंक भाजपा से अलग है और उसमें एक हिस्सा अल्पसंख्यकों का भी है। 2010 विधानसभा चुनाव के वक्त इसका परीक्षण भी कर चुके है। वक्त आ गया है कि इस बार लोकसभा चुनाव में यह इसे और आक्रामकता देते हुए आगे बढ़े।
वैसे तो नीतीश कई बार यह कह चुके हैं कि वह पीएम पद की रेस में शामिल नहीं हैंए लेकिन दिल्ली के बैठक स्थल कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के बाहर लगे एक पोस्टर से कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। इस पोस्टर में नीतीश कुमार को एनडीए के रथ पर सवार दिखाया गया है और शरद यादव इस रथ के सारथी हैं। नीतीश के सामने पोस्टर पर मनमोहन सिंह यूपीए के रथ पर सवार हैं और सोनिया उस रथ की सारथी हैं। इस पोस्टर पर तमाम सियासी अटकलें शुरू हो गई हैं।
जदयू को पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम को लेकर ऐतराज है। जेडी;यूद्ध नरेंद्र मोदी को 2002 के गुजरात दंगों के लिए दोषी मानता है। हालांकिए 2002 में जब गुजरात में दंगे हुए थे तब नीतीश कुमार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेल मंत्री थेए लेकिन तब भी नरेंद्र मोदी को लेकर रिश्तों में कोई खटास नहीं आई थी। जब से मोदी का नाम पीएम को लेकर सामने आया है तब से दोनों दलों के रिश्तों में दूरियाँ बनती हुई दिखाई दे रही है।