ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर किस प्रकार के अवैध कृत्यों पर रोक लगाने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि अवैध तस्करी कर ले जाए जा रहे मवेशी अथवा नशीले पदार्थों की खेप तो पुलिस द्वारा पकड़ ली जाती है परंतु उन्हें ले जाने वाले तस्कर पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ते बल्कि फरार हो जाते हैं। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि पाकिस्तान के तस्कर नशीले पदार्थों की खेप जम्मू-कश्मीर में बैठ अपने एजेंट के लिए ही भेजते हैं फिर आखिर क्या कारण है कि इन एजेंट पर शिकंजा नहीं कसा जा रहा है। क्यों इन्हें प्रदेश में नशीले पदार्थ लाने और युवा पीढ़ी को नशे की गर्त में पहूँचाने की छूट मिली हुई है। यह मामला सिर्फ प्रदेश से ही जुड़ा हुआ नहीं है बल्कि पंजाब से होते हुए ही पूरे देश में नशीले पदार्थ पहुंचाए जाते हैं।
कई बार तो ऐसा करते हुए कुछ तस्करों को पकड़ा भी जा चुका है लेकिन इसकी जड़ तक कभी नहीं पहुंचा जा सका इसका एक कारण यह भी है कि प्रदेश में नशीले पदार्थों की खपत है और इसके खिलाफ समाज को उस हद तक जागरूक नहीं किया जा सका है जिस हद तक किया जाना चाहिए। प्रदेश सरकार ने कुछ एजेंसियों का नशीले पदार्थों की रोकथाम के लिए नियुक्त जरूर कर रखा है, लेकिन उनकी हालत यह है कि इन एजेंसियों के कर्मचारी ही नशीले पदार्थ बेचने के आरोप में पकड़े जाते है। राज्य के युवा नशे के इस कदर आदी हो चुके हैं कि खुद अपने अभिभावकों से छुपकर घोषित व अघोषित रूप से इन तस्करों की मदद कर उन्हें सहायता प्रदान करते हैं। उन्हें अपने नशे की लत को पूरा करने क लिए न तो अपने ही अच्छे-बुरे का ख्याल रहता है और न ही वे राज्य या देश के भविष्य के बारे में कुछ सोचते हैं।
राज्य में नशे का प्रचलन इतना बढ़ चुका है कि यदि युवाओं को आम नशे की चीजों जैसे शराब, भांग, चरस, तम्बाकू असादि नहीं मिलती तो वे विक्षिप्तों की तरह हरकतें करने लगते हैं, और किसी भी तरह नशे की व्यवस्था करते हैं, तभी उन्हें चैन मिलता है। कई बार यह भी देखने में आया है कि लोग नशीले पदार्थों को न मिल पाने की स्थिति में विभिन्न प्रकार की दवाईयों अथवा अन्य पदार्थों का इस्तेमाल अपने नशे की लत को पूरा करने के लिए करते हैं।
कुछ स्याही, पेट्रोल, केरोसिन को सूंध कर अपना नशा पूरा करते हैं तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो आयोडेक्स जैसी दवाईयों का सेवन कर अपने नशें की लत को पूरा कर रहे हैं। नशे की तलब को पूरा करने के लिए खांसी के सीरप का इस्तेमाल तो बहुत पुरानी बात हो चुकी है, क्योंकि उसमें भी हल्की मात्रा में अल्कोहल होता है। बिना बिमारी के होम्योपैथिक दवाइयों केसेवन का प्रचलन भी इनमें अल्कोहल की मात्रा होने के कारण आजकल के युवाओं में बढ़ता जा रहा है, आखिर प्रशासन या सरकार किस-किस वस्तुओं पर रोक लगाए? नशीले पदार्थों की तस्करी बंद कराने के लिए सबसे पहले खुद को नशे का त्याग करना होगा, तभी इस पर प्रतिबंध लगाष जा सकता है। समाज के ठेकेदार कहे जाने वाले राजनीतिक और सामाजिक नेताओं के साथ-साथ अभिवाकों का भी कर्तव्य है कि वे युवाओं को नशे की इस लत से दूर रखने की पूरी कोशिश करें।