पृथ्वी की तीसरी आंख कहे जाने वाले केपलर स्पेस टेलीस्कोप ने धरती से 500 प्रकाश वर्ष दूर दूसरी धरती को खोजा है। यानी उतनी दूरी जितनी एक सेकंड में 3 लाख किलोमीटर चलने वाला प्रकाश एक साल में तय करता है। यानी एक साल में 9 खरब किलोमीटर। अब इसे 500 से गुणा कर दें तो इतनी ही दूर है दूसरी धरती।
नीले ग्रह पृथ्वी की तरह ही नजर आने वाला भूरे रंग का ग्रह केपलर -186f एक एक्जोप्लैनेट है। यानी ऐसा ग्रह जो हमारे सौरमंडल से नहीं है लेकिन सौरमंडल के 9 ग्रहों की तरह ही वो भी सूरज जैसे तारे का चक्कर लगाता हो, क्योंकि ब्रह्मांड में ऐसे आजाद ग्रह भी हैं जो किसी सौर परिवार के सदस्य नहीं हैं, लेकिन ऐसे आवारा ग्रहों पर जीवन की संभावना भी नहीं है। इसलिए नासा ने ब्रह्मांड में जीवन की खोज के लिए केपलर स्पेस टेलीस्कोप को अंतरिक्ष में स्थापित किया तो लक्ष्य था एक्सोप्लैनेट की खोज।
माना जाता है कि सिर्फ हमारी आकाशगंगा में ही 40 अरब ऐसे ग्रह हो सकते हैं, जो अपने सूरज का चक्कर हैबिटेबल जोन में लगा रहे हैं। यानी आकाशगंगा में केपलर-186f जैसे 40 अरब ऐसे ग्रह हैं, जिन पर जीवन की संभावना है। लिहाजा, केपलर के लिए पृथ्वी जैसे ही एक और धरती की तलाश आसान नहीं थी। फिर भी जनवरी 2015 तक केपलर टेलीस्कोप 440 सौरमंडलों के 1,013 एक्जोप्लैनेट की खोज कर चुका है।
एक्जोप्लैनट की खोज में केपलर को टक्कर हब्बल टेलीस्कोप ही दे रहा है जो उसके जोड़ीदार से कम नहीं है। दिव्यदर्शन पुरोहित, खगोलशास्त्री ने कहा है कि केपलर उस क्षेत्र में भी देख सकता है कि जहां हब्बल नहीं देख सकता है, स्पेसफिकली अब तक हब्बल और केपलर मिलकर 2000 से ज्यादा एक्जोप्लैनेट खोज चुके हैं।
जी हां, हब्बल और केपलर टेलीस्कोप की मदद से दुनिया अब 2000 ऐसे ग्रहों के बारे में जानती है, जहां धरती की तरह ही जीवन की संभावना है, लेकिन इसमें केपलर सौर मंडल के तीन ग्रह सबसे अहम हैं। इनमें ये तीन केपलर-186f, केपलर-438b और केपलर-442b शामिल हैं। इन तीनों ग्रहों पर जब आगे रिसर्च होगा तो मुमकिन है इनमें से कोई भी ग्रह दूसरी धरती निकल जाए। यानी वहां पर जीवन का पता चल जाए।
जब कभी भी इंसान को ये सफलता मिलेगी तो उसमें केपलर का किरदार सबसे अहम माना जाएगा, क्योंकि वो धरती की इकलौती तीसरी आंख है जो इतनी दूर तक किसी दूसरी पृथ्वी को देख सकता है। अंतरिक्ष में स्थापित केपलर की तीसरी आंख के काम करने का तरीका भी बहुत दिलचस्प है। केपलर की तीसरी आंख उसका फोटोमीटर है। ये फोटोमीटर आकाश गंगा के करोड़ों तारों की रोशनी पर निगाह रखता है। जैसे ही किसी तारे की रोशनी फीकी पड़ती है। केपलर समझ जाता है कि उसके सामने से कोई ग्रह गुजरा है।
ये तारे की रोशनी में आई गिरावट के आधार पर ग्रह का आकार भी पता लगा लेता है। अंतरिक्ष में लगी इस तीसरी आंख से धरती जैसे ग्रहों को तलाशने का ये तरीका बेहद सटीक है।
दिव्यदर्शन पुरोहित, खगोलशास्त्री ने बताया कि उसके एक्सरे पर जैसे ही कोई इन्फ्रारेड और अल्ट्रा वायलेट वेरिएशन होता है उसे केपलर देख लेता है। केपलर के ज्यादातर सिस्टम अब भी शानदार ढंग से काम कर रहे हैं, जबकि जब इसे केपलर अंतरिक्ष यान से स्पेस में स्थापित किया गया था, तब इसकी मियाद नवंबर 2012 तक ही थी।