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पेड न्यूयज की शिकायतों की जांच कर सकता है चुनाव आयोग: सुप्रीम कोर्ट

 

2 - Copyकांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी चुनाव आयोग के खिलाफ याचिका खारिज करते हुए सोमवार को कहा कि पेड न्यूज की जांच के लिए चुनाव आयोग के पास पूरे अधिकार हैं।

कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग को किसी उम्मीदवार के खिलाफ पैसे देकर छपवाई गई खबर की शिकायत की जांचकरने का अधिकार है। इसके साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को आदेश दिए हैं कि वह चव्हाण के खिलाफ 45  दिन में जांच पूरी करे और अपनी रिपोर्ट दे।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि यदि चव्हाण इस मामले में दोषी पाए जाते हैंए तो चुनाव आयोग उनकी सदस्यता भी रद्द कर सकता है। इस ऐतिहासिक फैसले के तहत जहां चव्हाण की मुश्किलें बढ़ना तय हैए वहीं झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा भी इस मामले में घिर सकते हैं। बता दें कि मौजूदा लोकसभा चुनावों में ही कोड़ा को पेड न्यूज के मामले में नोटिस जारी किया गया है।

गौरतलब है कि अशोक चव्हाण को 2010 में भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर महाराष्ट्र सीएम का पद छोड़ना पड़ा था। 2009  में भोकर विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने वाले माधव किन्हालकर ने चव्हाण के उस दावे को चुनौती दी थी कि उन्होंने अपने चुनाव अभियान के विज्ञापन पर 11  हजार रुपए खर्च किए हैं।

शिकायत में यह भी कहा गया था कि चव्हाण ने वर्ष 2009 के चुनाव के दौरान अपने पक्ष में खबरें छापने के लिए कुछ मराठी और हिंदी समाचार पत्रों को राशि का भुगतान किया थाए लेकिन अपने चुनावी खर्च ब्यौरे में इसका उल्लेख नहीं किया। तब चव्हाण ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि समाचार पत्रों ने उनके कार्यों का स्वयं विश्लेषण कर खबरें प्रकाशित की थीं। किन्हालकर की शिकायत पर चुनाव आयोग ने चव्हाण को नोटिस जारी किया थाए जिसके खिलाफ वे सुप्रीम कोर्ट चले गए।

2011 में चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण से संबंधित पेड न्यूज के मामले की सुनवाई करने का फैसला किया था। आयोग ने उनकी यह दलील भी खारिज कर दी थी कि उसे ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है। चुनाव आयोग ने अपने आदेश में कहा था कि वह इस मामले की जांच कर सकता है। ऐसा करते हुए उसने चव्हाण के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की यह दलील खारिज कर दी थी कि उसे इस मुद्दे में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है क्योंकि मामला पहले ही बंबई उच्च न्यायालय में लंबित है।