देश में चुनावी जंग शुरू हो चुका है। कांग्रेस और भाजपा समेत सभी दलों के राजनीतिक योद्धा चुनाव मैदान में उतर गए हैं। आइए, नजर डालते हैं उन 25 सीटों पर जिसे जीतने के लिए जंग जारी है।
वाराणसी : वाराणसी वह सीट है जिस पर इस बार पूरे देश की निगाहें टिकी हुई हैं। इस सीट पर अपनी पार्टी के अंदर मचे घमासान के बाद भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी घोषित हुए हैं। पिछली लोकसभा में इस सीट से भाजपा के मुरली मनोहर जोशी जीते थे और इस बार भी वे यहीं से लड़ना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें कानपुर भेजकर मोदी को लड़ाया। मोदी अपने राज्य गुजरात की वडोदरा सीट से भी लड़ रहे हैं। इस कारण विरोधियों को उन पर उंगली उठाने का मौका भी मिला कि जब देश में मोदी की लहर है तो वे सुरक्षित सीट क्यों तलाश रहे हैं।
अमेठी : यहाँ राहुल गांधी अपनी पारंपरिक सीट अमेठी में ही टिके हुए हैं। इस सीट को हमेशा से ही गांधी परिवार के लिए सुरक्षित माना जाता है। इस परिवार के संजय गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी अमेठी का प्रतिनिधित्व संसद में कर चुके हैं और अब राहुल गांधी कर रहे हैं। राहुल को चुनौती देने के लिए ‘आप’ की ओर से कुमार विश्वास ने कमान संभाली है। उनका विश्वास देखिए कि वे चुनाव की घोषणा के पूर्व से ही अमेठी से ताल ठोंकने पहुंच गए थे।
रायबरेली : उत्तरप्रदेश की रायबरेली सीट पर भी कांग्रेस ही छाई रही है। कांग्रेस की लौह महिला इंदिरा गांधी की इस सीट पर कांग्रेस ने अब तक कुल 13 बार कब्जा किया है। रायबरेली पर अपना परचम फहराने की शुरुआत इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी से हुई थी।
वतर्मान में उनकी बहू सोनिया गांधी यहां का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। इस बार भी सोनिया गांधी यहां से मैदान में उतरी हैं और पिछले चुनाव की तरह इस बार भी कोई बड़ी चुनौती फिलहाल नजर नहीं आ रही है। अभी तक सिर्फ बसपा ने सोनिया के विरुद्ध अपना उम्मीदवार (प्रवेश सिंह) घोषित किया है।
चांदनी चौक : दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) को मिली सफलता के बाद दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों के चुनाव में इस बार जनता की रुचि जगा दी है। खासतौर पर चांदनी चौक सीट पर मुकाबला ज्यादा रोचक हो गया है। यहां पिछले दो चुनाव से कांग्रेस के दिग्गज कपिल सिब्बल चुनाव जीत रहे हैं। इस बार भी वे मैदान में हैं, जबकि भाजपा ने दिल्ली के लिए मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी रहे डॉ. हर्षवर्धन को उतारा है और ‘आप’ की उम्मीदवारी पत्रकार से नेता बने आशुतोष को दी गई है। ऐतिहासिक रूप से देखें तो चांदनी चौक सीट पर 9 बार कांग्रेस ने फतह हासिल की है, 4 बार भाजपा (1 बार जनसंघ) और 1 बार जनता पार्टी का कब्जा इस सीट पर रहा।
लखनऊ: लखनऊ सीट पर हुए शुरुआती विवाद से यह पहले से ही सुर्खियाँ बटोरे हुए है । पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी को 5 बार जिताकर संसद में भेजने वाली इस सीट को सुरक्षित मानकर वर्तमान भाजपा अध्यक्ष राजनाथसिंह ने इसे अपना रणक्षेत्र चुना हैं जबकि पिछली लोकसभा में यहां से प्रतिनिधित्व करने वाले लालजी टंडन इसे छोड़ना नहीं चाहते थे।
लखनऊ से राजनाथ का मुकाबला उत्तराखंड की पूर्व मुख्यमंत्री रीता बहुगुणा जोशी से है। आपको याद दिला दें रीता बहुगुणा हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी हैं, जिन्होंने एक बड़े क्षत्रप के रूप में उप्र के मुख्यमंत्री के रूप में राज किया है। उनके नाम की चमक को 1984 में अमिताभ बच्चन ने राजीव गांधी की आंधी में ध्वस्त किया था।
इन्ही आंकड़ो के साथ बात की जाए तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा और बसपा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। राज्य में सरकार चला रही सपा की ओर से विजय प्रताप सिंह तो बसपा की ओर से नकुल दुबे मैदान में हैं। लेकिन सीट का इतिहास कांग्रेस और भाजपा के पक्ष में ही आंकड़े दिखाता है। शुरुआती दौर में 6 बार कांग्रेस ने लखनऊ सीट पर कब्जा किया तो बाद के 6 अवसर भाजपा के पक्ष में रहे। बीच में 1-1 बार निर्दलीय, जनता पार्टी और जनता दल ने भी यहां से जीत का स्वाद चखा है।
मथुरा : सभी के साथ इस बार मथुरा भी राजनीतिक एजेंडे में आ गया। अभी तक राज्यसभा में भाजपा का प्रतिनिधित्व करने वाली अभिनेत्री हेमामालिनी इस बार लोकसभा में प्रवेश के लिए मथुरा सीट से मैदान में उतरी हैं। उनका मुकाबला राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी जयंत चौधरी से है।सपा के चंदन सिंह और बसपा के योगेश कुमार द्विवेदी की उम्मीदवारी को भी यहां से कमतर नहीं आंका जा सकता। कुल मिलाकर रालोद के प्रभाव वाली इस सीट का परिणाम कोई भी मोड़ ले सकता है।
नागपुर : यहाँ के सीट को कांग्रेस का पारंपरिक गढ़ माना जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय वाली सीट पर कांग्रेस का लगातार जीतना बड़ी बात मानी जानी चाहिए। अभी तक के 15 चुनावों में से 12 बार यहां से कांग्रेस ही जीती है। 1 बार निर्दलीय, 1 बार फॉरवर्ड ब्लॉक और 1 बार ही भाजपा यहां जीत का स्वाद चख सकी है।
पिछले लगातार 4 चुनावों से कांग्रेस के विलास मुत्तेमवार नागपुर सीट से लोकसभा पहुंच रहे हैं। विलास इस बार भी दौड़ में शामिल हैं, जबकि भाजपा ने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को भाग्य आजमाने का मौका दिया है।
‘आप’ ने अंजलि दमानिया को चुनावी मैदान में उतारकर मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश की है। यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि अंजलि पिछले काफी समय से गडकरी के खिलाफ मुहिम चलाए हुए हैं जिसका भाजपा के पूर्व अध्यक्ष को नुकसान भी हो सकता है।
बेंगलुरु दक्षिण : कर्नाटक की इस हाईप्रोफाइल सीट पर इस बार देशभर की नजर है। भाजपा ने एक बार फिर दिग्गज अनंत कुमार को यहां से उतारा है तो कांग्रेस ने देश को ‘आधार’ की सौगात देने वाले नंदन निलेकणी को टिकट देकर मुकाबले को रोचक बना दिया। अनंत ने 2009 के चुनाव में कांग्रेस के कृष्ण बायरे गौड़ा को 37 हजार वोटों से हराया था। नंदन निलेकणी हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुए हैं और यह उनका पहला चुनाव है। इंफोसिस के संस्थापक सदस्यों में से एक निलेकणी के ‘आधार’ पर केंद्र सरकार की मनरेगा समेत कई योजनाएं चल रही हैं। निलेकणी के सहारे ही कांग्रेस दक्षिण में भाजपा के इस मजबूत गढ़ को ढहाना चाहती है।
8 विधानसभा क्षेत्रों में बंटी इस सीट पर 1996 से ही भाजपा का ही दबदबा रहा है। अनंत कुमार यहां से 5 बार चुनाव जीत चुके हैं। उनसे पहले इस सीट पर 6 बार कांग्रेस और 3 बार जनता पार्टी का कब्जा रहा।
पटना साहिब : लोकप्रिय अभिनेता और दिग्गज भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा के कारण यह सीट चर्चा का विषय बनी हुई है। भाजपा इस बार शत्रुघ्न को यहां से चुनाव नहीं लड़वाना चाहती थी, पर उन्होंने एक बार पार्टी को विश्वास में लेकर एक बार फिर यहां से टिकट हासिल कर ही लिया।
पिछले चुनाव में राजद के विजय को हराने वाले शत्रुघ्न का मुकाबला इस बार भोजपुरी स्टार कुणाल सिंह से है। कांग्रेस उम्मीदवार शेखर सुमन 2009 के चुनावों में तीसरे स्थान पर रहे थे। राजद से समझौते के तहत यह सीट कांग्रेस के खाते में आई है और उसे उम्मीद है कि भोजपुरी फिल्मों का स्टार कुणाल मोदी लहर के बाद भी शत्रुघ्न जैसी कद्दावर शख्सियत को हरा पाने में सफल होगा।
टोंक-सवाई माधोपुर : 2008 में अस्तित्व में आई टोंक-सवाई माधोपुर सीट इस बार पूर्व क्रिकेटर अजहरुद्दीन के कारण चर्चा में है। मुरादाबाद से सांसद अजहर को कांग्रेस ने नमोनारायण मीणा की जगह यहां से चुनाव मैदान में उतारा है।
2009 में इस सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा था। उस समय नमोनारायण मीणा ने दिग्गज गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैसला को पटखनी दी थी। अजहर के सामने बड़ी चुनौती मोदी लहर के बीच इस सीट को बचाए रखने की है। भाजपा ने भी सुखवीर सिंह जोनपुरिया के रूप में नए चेहरे पर दांव लगाया है।
सासाराम : देश के उपप्रधानमंत्री रहे बाबू जगजीवनराम के दबदबे वाली इस सीट पर लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इस सीट पर 1984 तक जगजीवनराम का ही कब्जा रहा और 2004 के बाद से उनकी बेटी मीरा कुमार यहां से सांसद हैं।
बसपा ने मीरा की भतीजी मेधावी कीर्ति को उनके मुकाबले चुनाव मैदान में उतारा था, पर तकनीकी आधार पर उनका नामांकन रद्द कर दिया गया। भाजपा-लोजपा गठबंधन ने उनके सामने छेदी पासवान को टिकट दिया है। वे भी दो बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं। केपी रमैया जदयू के टिकट पर चुनाव मैदान में है।
अमृतसर : अमृतसर में इस बार कड़ा और रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने यहां से कद्दावर नेताओं को उतारा है। फिलहाल इस सीट पर भाजपा के नवजोतसिंह सिद्धू सांसद हैं, लेकिन पार्टी ने उनका टिकट काटकर राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली को उतारा है।
जेटली की गिनती अच्छे वक्ताओं में होती है, साथ ही राज्य के मुख्यपमंत्री प्रकाशसिंह बादल ने हाल ही में एक चुनावी सभा में यह भी कहा कि जेटली केंद्र में उपप्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं और इसका पंजाब को पूरा फायदा मिलेगा। इसी के साथ कांग्रेस ने यहां से पंजाब के पूर्व मुख्यिमंत्री कैप्टन अमरिंदर को मैदान में उतारा है। पिछला विधानसभा चुनाव भी पार्टी ने कैप्टन सिंह के नेतृत्व में ही लड़ा था, लेकिन राज्य की सत्ता फिर से भाजपा-अकाली गठबंधन की झोली में ही चली गई। यहां पार्टी और अमरिंदर दोनों की ही प्रतिष्ठा दांव पर है, अत: वे जीत के लिए पूरा जोर लगा देंगे।
जयपुर ग्रामीण : जयपुर ग्रामीण लोकसभा क्षेत्र में इस बार दोनों ही पार्टी के उम्मीदवार ‘खास’ हैं। भाजपा ने जहां निशानेबाजी में ओलंपिक पदक विजेता राज्यवर्धनसिंह राठौड़ को टिकट दिया है, वहीं कांग्रेस ने वर्तमान सांसद लालचंद कटारिया का टिकट काटकर रेलमंत्री और राहुल ब्रिगेड के प्रमुख सदस्यों में से एक सीपी जोशी पर भरोसा किया है। चूंकि जोशी राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं इसलिए उनके सामने पहचान का संकट तो नहीं है, लेकिन कटारिया की नाराजी और मोदी लहर उनके लिए मुश्किल पैदा कर सकती है।
दूसरी ओर कुछ समय पहले भाजपा की सदस्यता लेकर राजनीति में आए पूर्व सैन्य अधिकारी राठौड़ लोकप्रियता के मामले में सीपी जोशी से बीसा ही ठहरेंगे, लेकिन राजनीतिक अनुभव की बात की जाए तो जोशी उन पर भारी पड़ते हैं।
बागपत : यूपीए-2 में मंत्री चौधरी अजीतसिंह अपनी परंपरागत और जाट बहुल सीट बागपत से एक बार फिर मैदान में हैं। उनका कांग्रेस के साथ गठजोड़ भी है।
इस सीट से 6 बार सांसद रहे सिंह ने पिछली बार बसपा के मुकेश शर्मा को हराया था, लेकिन इस बार भाजपा ने मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह को टिकट देकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। लंबे समय तक बाहर रहे सत्यपाल इसी इलाके से आते हैं। बसपा और समाजवादी पार्टी भी यहां दमदार उपस्थिति दर्ज कराएंगी। बसपा ने यहां से प्रशांत चौधरी को मैदान में उतारा है।
झांसी : महान क्रांतिकारी वीरांगना लक्ष्मीबाई की नगरी झांसी लोकसभा सीट पर 1989 से 1998 तक 4 बार काबिज रही भाजपा ने इस बार अपनी फायर ब्रांड नेता उमा भारती को टिकट दिया, वहीं कांग्रेस ने एक बार फिर केंद्र में मंत्री अपने वर्तमान सांसद प्रदीप जैन आदित्य पर दांव लगाया है। 2009 में उन्होंने सपा के चंद्रपालसिंह यादव को हराया था। यादव एक बार फिर उनके सामने हैं।
उमा भारती के मैदान में उतरने से इस बार मुकाबला त्रिकोणीय या फिर चतुष्कोणीय होने की पूरी उम्मीद है, क्योंकि बसपा भी पूरी ताकत से इस सीट पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगी। जैन को जहां यूपीए सरकार की नाकामियों का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है, वहीं उमा भारती मोदी लहर पर सवार होकर सफलता की उम्मीद लगा सकती हैं।
गाजियाबाद : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) का महत्व इस बार इसलिए भी बढ़ गया है कि यहां से पिछले सांसद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी इस बार इस सीट को अपने लिए सुरक्षित नहीं माना और गाजियाबाद की तुलना में लखनऊ को अपने लिए चुना। इस सीट का दूसरा रोचक तथ्य है यहां से पार्टियों द्वारा चुने गए उम्मीदवार।
भाजपा ने हाल ही में पार्टी में शामिल हुए पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने अभिनेता से नेता बने राज बब्बर की सीट बदलकर गाजियाबाद का मोर्चा उन्हें सौंपा तो ‘आप’ की कमान शाजिया इल्मी के हाथ में है। बसपा और सपा उम्मीदवार भी इस सीट के परिणाम को रोचक बना सकते हैं।
चंडीगढ़ : भारत के खूबसूरत शहरों में शुमार होने वाले शहर चंडीगढ़ को इस बार राजनीतिक दलों ने भी खूबसूरत प्रत्याशी उतारकर सम्मान प्रदान किया है। प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के साथ ये चटखारे लिए जाने लगे हैं कि कोई भी जीते, चंडीगढ़ से एक डिंपल वाला सदस्य लोकसभा में पहुंचेगा ही।
चंडीगढ़ से कांग्रेस ने पवन बंसल पर पुन: दांव लगाया है जिन्हें रेलवे प्रमोशन घोटाले के आरोप के चलते रेलमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। दूसरी ओर भाजपा और ‘आप’ ने बॉलीवुड की दो मंजी हुई अदाकाराओं किरण खेर और गुल पनाग को प्रत्याशी बनाया है। हालांकि अनुपम खेर की पत्नी किरण खेर को बाहरी प्रत्याशी बताकर स्थानीय जनता का विरोध झेलना पड़ रहा है जबकि वे सफाई दे रही हैं कि वे यहीं की बेटी हैं और यहीं पढ़ी हैं।
गुड़गांव : सन 2009 से अस्तित्व में आई गुड़गांव लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व अभी तक कांग्रेस के राव इंद्रजीतसिंह यादव कर रहे थे, लेकिन इस बार मामला बदल गया है। राव इंद्रजीत इस बार कांग्रेस छोड़कर भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
इंद्रजीत को टक्कर देने के लिए इस बार कांग्रेस के धर्मपाल के अलावा ‘आप’ के योगेंद्र यादव भी मैदान में हैं। हालांकि राव इंद्रजीत को वर्तमान सांसद होने के साथ ही मोदी लहर का भी फायदा मिल सकता है। दूसरी ओर कांग्रेस से नाराज वोटर योगेन्द्र यादव की झोली में जा सकते हैं।
विदिशा : विदिशा सीट को निर्विवाद रूप से भाजपा का गढ़ कहा जा सकता है। इस सीट के लिए अभी तक हुए 14 चुनावों में से 12 बार भाजपा (2 बार जनसंघ, 1 बार जनता पार्टी) जीती है। सिर्फ 2 बार 1980 और 1989 में कांग्रेस के प्रतापभानु शर्मा यहां से जीत सके हैं। वर्तमान में भाजपा की स्टालवर्ट सुषमा स्वराज विदिशा सीट का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। इस बार भी वे ही भाजपा की उम्मीदवार हैं।
कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को उम्मीदवार बनाया है। आपको याद दिला दें ये वे ही लक्ष्मण सिंह हैं, जो दिग्गी सरकार के पतन के बाद भाजपा में शामिल हो गए थे। हालांकि बाद में उनका मोहभंग हुआ और वे लौटकर कांग्रेस में आ गए।
कानपुर : कानपुर सीट का इतिहास बड़ा ही रोचक रहा है। यहां से पहला चुनाव प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने जीता। इसके बाद लगातार 4 बार निर्दलीय प्रत्याशी कानपुर से जीतता रहा। 1977 में जनता लहर के दौरान जनता पार्टी जीती, इसके बाद जाकर 1980 में पहली बार कांग्रेस को जीत का स्वाद चखने को मिला। देश के चुनावी इतिहास में यह बिरला ही अवसर होगा, जब आजादी के पूर्व की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को किसी सीट पर विजय के लिए इतना लंबा इंतजार करना पड़ा हो।
पिछले 3 चुनावों से कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल कानपुर से सांसद बनते आ रहे हैं और वे ही पुन: चुनाव मैदान में हैं। जायसवाल के पहले 3 चुनाव भाजपा ने जीते थे। इस बार उनकी राह को वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने कठिन बना दिया है। जोशी को अपनी पिछली सीट वाराणसी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी मोदी के लिए छोड़कर कानपुर आना पड़ा है। एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि उप्र में सत्तारूढ़ सपा ने स्टैंड अप कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव को कानपुर सीट की उम्मीदवारी का प्रस्ताव दिया था, लेकिन वे यह प्रस्ताव ठुकराकर भाजपा में शामिल हो गए।
मुंबई उत्तर-मध्य : मुंबई उत्तर-मध्य से पूर्व सांसद अभिनेता सुनील दत्त की बेटी प्रिया दत्त दूसरी बार लोकसभा में प्रवेश करने का मन बना रही हैं। 2009 के चुनाव में उन्होंने भाजपा के राम जेठमलानी के पुत्र महेश जेठमलानी को पराजित किया था। इस बार भाजपा ने पूर्व दिग्गज स्व. प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन को मैदान में उतारकर मुकाबले को रोचक और प्रिया के लिए मुश्किल बना दिया है। 2 नेता पुत्रियों की चुनाव रणनीति में आम आदमी की रुचि होना लाजिमी है।
मुंबई उत्तर-मध्य सीट का इतिहास दिलचस्प रहा है। इस सीट को अपना गढ़ बताने का दावा कोई पार्टी नहीं कर सकती। हालांकि सबसे पुरानी पार्टी होने की वजह से सर्वाधिक बार जीतने का दावा कांग्रेस का स्वाभाविक है। लेकिन समय-समय पर माकपा, जनता पार्टी और शिवसेना भी यहां से जीतती रही हैं।
पाटलीपुत्र : 2009 के लोकसभा चुनाव से ही अस्तित्व में आई बिहार की पाटलीपुत्र सीट इस बार भी राजद सुप्रीमो लालू यादव के लिए संकट लेकर आई। पिछला चुनाव लालू यहां से जनता दल (यू) के रंजन प्रसाद यादव के मुकाबले हार गए थे। इस बार उन्होंने अपनी बेटी मीसा को पाटलीपुत्र का टिकट दिया, जो उनके वरिष्ठ सहयोगी रहे रामकृपाल को रास नहीं आया और वे पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए।
इसी के साथ बिहार में अपनी शक्ति बढ़ाने की ताक में बैठी भाजपा ने रामकृपाल को हाथोहाथ लिया और तुरंत टिकट भी दे दिया। उनका मुकाबला राजद की मीसा से है, जो अभी तक उन्हें अपना ‘चाचा’ कहती आई हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि रामकृपाल के विद्रोही तेवर के मद्देनजर मीसा ने अपना दावा छोड़ने का प्रस्ताव भी किया था, लेकिन पिता लालू ने मीसा के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और रामकृपाल भाजपा में शामिल हो गए।
मैनपुरी-आजमगढ़ : समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव इस बार 2 सीटों पर अपना जोर दिखा रहे हैं। पिछले 6 लोकसभा चुनाव से सपा को जिताने वाली सीट मैनपुरी से एक बार फिर मुलायम खड़े हुए हैं, जबकि मोदी के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से इस बार उन्होंने आजमगढ़ को भी अपनी रणभूमि बनाया है। तीसरे मोर्चे के गठन को लेकर उत्साहित मुलायम के मन में एक आस पल रही है और वे भी प्रधानमंत्री पद की लालसा दिल में संजोए बैठे हैं। मुजफ्फरनगर दंगों के दाग धोने के उद्देश्य से भी उन्होंने इस बार आजमगढ़ सीट से लड़ने का निर्णय लिया है।
फूलपुर : फूलपुर को अगर उत्तरप्रदेश की सर्वाधिक सम्मानित सीट कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस सीट को पहले 3 चुनाव भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जिताने का सौभाग्य प्राप्त है। नेहरू के बाद भी विजयलक्ष्मी पंडित और विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसी शख्सियतों ने संसद में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है।
हालांकि बाद में इस सीट से कांग्रेस की पकड़ छूटती गई और यह जनता पार्टी, जनता दल, सपा, बसपा के हाथों में आ गई। यह जानना भी रोचक होगा कि भाजपा ने इस सीट पर कभी भी जीत हासिल नहीं की है। इस बार कांग्रेस ने पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को टिकट दिया है। अन्य पार्टियों की ओर से उम्मीदवारों की घोषणा होना अभी शेष है।