इधर बिहार सरकार भी बिहार सरकार आबादी के हिसाब से सबसे ताकतवर जाति यादव को रिझाने के लिए अब यादव आयोग बनाने पर विचार कर रही है। इसके लिए व्यापक स्तर पर विचार मंथन भी किया जा रहा है। बिहार में यादवों की आबादी करीब 15 फीसदी बतायी जाती है। यह किसी भी जाति समूह से अधिक है।
वहीँ भूराबाल की समग्र आबादी भी 15 फीसदी से अधिक नहीं पार कर पाती है। मुसलमान भी 15 फीसदी से कम हैं। इसी बात को ध्यान में रखकर राज्य सरकार ने यादव आयोग बनाने पर विचार कर रही है। इस आयोग के बनने से यादव जाति का झुकाव जदयू की ओर हो सकता है और इसका फायदा उसे चुनाव में मिल सकता है।
यह तो वक्त ही बताएंगा कि चुनाव के वक्त निर्णायक भूमिका अदा करने वाले यादव किधर जाएंगे? वैसे तो सभी यादवों पर डोरा डालने लगे हैं। वैसे तो प्रारंभ में यादव लाप्रया के साथ थे। लाप्रया और रादे से मोहभंग करवाने के लिए गांधी मैदान में 27 अक्तूबर,2013 को नमो ने यादवों को अपनी ओर खींचने का मंत्र कर डाला है।
जेल में लाप्रया के चले जाने से रादे यादव को एकत्रित करने में लग गयी हैं। इसमें रादे के दोनों सुपुत्रों के साथ राविपा भी सहयोग दे रहे हैं। यह तय है कि इस समय यादव किधर जाएंगे। वह निश्चित नहीं है। ऐसे में यादवों के विखंडित ताकत दलों को प्राप्त होगा। अभी चुनाव होने में वक्त है। तबतक किसी का धुव्रीकरण हो सकता है।