इस वर्ष मानसून ने उत्तर भारत में जो कहर बरपाया है वैसा अभी तक सौ वर्षों में सिर्फ एक बार ही देखने को मिलता है। लेकिन,
अब ऐसा कर दस वर्ष में देखने को मिल सकता है। मानसून के इस बदले मिजाज का अंदाजा विश्व बैंक की तरफ से जारी किया एक रिपोर्ट में लगाया गया है। रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और इसके क्षेत्रवार असर का आकल किया गया है जो काफी भयभीत करने वाला है।
रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत को बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। वर्ष 2040 तक भारत के खाद्यान्न उत्पादन में काफी गिरावट आ सकती है। देश का 60 फीसदी खाद्यान्न उत्पादन में काफी गिरावट आ सकती है। देश का 60 फीसदी खाद्यान्न उत्पदान मानसून पर आधारित है।
2050 तक अगर वैश्विक तापमान में दो से ढाई फीसद तक अगर वृद्धि होती है तो गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदियों के जलस्तर में काफी गिरावट आ सकती है। इससे 6.3 करोड़ लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा पर संकट पैदा हो सकता है। जलस्तर में कमी कई अन्य समस्याओं को भी पैदा करेगा। विश्व बैंक ने एक बेहद प्रतिष्ठि संस्थान से यह अध्ययन करवाया है और रिपोर्ट तैयार करने में 25 वैज्ञानिकों की मदद ली गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2090 तक वैश्विक तापमान में अगर चार फीसद की वृद्धि होतजी है तो इससे दक्षिण एशिया क्षेत्र पर काफी असर पड़ेगा। इस हिस्से में बाढ़, सूखा, समुद्र स्तर में वृद्धि, ग्लेशियर के पिघलने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ेंगा। पूरे दक्षिण एशिया में 2040 तक खाद्यान्न उत्पादन में 40 फीसद तक गिरावट आ सकती है। तापमान में बढ़ोतरी कई तरह की स्वास्थ्य परेशानियों को भी जन्म देगी।
रिपोर्ट में बांग्लादेश के साथ मुंबई और कोलकाता पर सबसे विपरित असर पड़ने की आशंका भी जताई गई है। विश्व बैंक के निदेशक (भारत) ओनो रूहल का कहना है कि, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ सकता है। इससे भारत में पिछले कई वर्षों से हो रही प्रगति पर पानी फिर सकता है।
ऐसे में सरकार को इन हालातों से निपटने के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले दिनों की तमाम समस्याएं दूर करने के लिए मौजूदा वैश्विक तापमान में दो फीसदी की गिरावट लाना जरूरी है। इसके लिए सरकार को कार्बन उत्सर्जन कम करने की व्यापक रणनीति बनानी होगी।